Talatal Ghar Secrets: असम की इस गुफा में छिपे हैं कई राज, जानें पूरा रहस्य

Edited By Prachi Sharma,Updated: 18 Aug, 2024 09:06 AM

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ऊपरी असम में स्थित जीवंत शहर शिवसागर (गुवाहाटी से लगभग 360 किलोमीटर उत्तर-पूर्व) में असम के राजनीतिक इतिहास के एक शानदार

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Talatal Ghar Secrets: ऊपरी असम में स्थित जीवंत शहर शिवसागर (गुवाहाटी से लगभग 360 किलोमीटर उत्तर-पूर्व) में असम के राजनीतिक इतिहास के एक शानदार अध्याय के अवशेष पाए जाते हैं। इस शहर में, ब्रह्मपुत्र घाटी में 600 साल तक शासन करने वाले, शक्तिशाली और उद्यमशील, अहोम राजवंश द्वारा निर्मित कई  उल्लेखनीय स्मारक हैं।

इस राजवंश के अधीन ही इस क्षेत्र की राजनीति, अर्थव्यवस्था, समाज, कला और संस्कृति का महत्वपूर्ण विकास हुआ। अहोम शासकों की वास्तुशिल्पीय विरासत उनकी शक्ति, उनके द्वारा नियंत्रित संसाधनों एवं उनकी सौन्दर्यपरक दृष्टि और संवेदनाओं की साक्षी है। शिवसागर जिले के डिशियल धूलिया गांव में स्थित तलातल घर अहोम स्मारकों में सबसे भव्य और सबसे बड़ा है और अहोम शक्ति के शिरोबिंदू का प्रतीक है।

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तलातल घर की वास्तुकला
तलातल घर अहोम स्मारकों में सबसे विशाल है। वास्तव में, इस स्मारक का नाम इस इमारत के संरचनात्मक सार को प्रदर्शित करता है। ‘तलातल’ शब्द का अर्थ है ‘बहु-मंजिला’। वर्तमान में खड़ी संरचना में उत्तर-दक्षिणी सीध में एक लंबी इमारत शामिल है, जिसके दोनों तरफ और बीच में उपभवन बने हैं। भूतल में अर्ध-गोलाकार मेहराब वाले स्तंभों की पंक्तियां हैं और खुले और बंद दोनों प्रकार के कक्ष सम्मिलित हैं।

ऐसा माना जाता है कि इस मंजिल में अस्तबल और भंडारण कक्ष हुआ करते थे। ऊपरी मंजिल मुख्य रूप से एक खुली छत है परंतु छत के फर्श में काटे गए कई गोलाकार छिद्रों को लकड़ी के स्तंभों के लिए पद छिद्रों के रूप में समझा गया है, जो लकड़ी से निर्मित, ऊपरी मंजिलों के होने का सुझाव देते हैं।  उपभवनों में, विशेष रूप से बीच में बनी छत वाली बहु-मंजिली संरचनाएं शामिल हैं। छत वाली कुछ संरचनाएं दो-चला या झोंपड़ी शैली में निर्मित हैं, जो कि इस क्षेत्र की एक विशेष वास्तुशिल्पीय परंपरा है। माना जाता है कि एक मेहराबदार प्रवेश द्वार सहित छत वाली अष्टकोणीय संरचना मंदिर के रूप में इस्तेमाल की जाती थी।

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मुख्य परिसर के पास गोला घर या शाही शस्त्रागार है और इसका निर्माण भी दो-चला शैली में किया गया है। पूरा परिसर एक ईंट की दीवार या गढ़ (जिसके अब केवल अवशेष ही मिलते हैं), एवं एक गढ़ खावोई या खाई, जिसमें कभी पानी हुआ करता था, से घिरा हुआ है। तलातल घर में, अहोम वास्तुशिल्पीय प्रतिभा न केवल संरचनात्मक भव्यता में, बल्कि स्थानीय तौर पर उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल करके सरलता से तैयार की गई निर्माण सामग्री में भी दिखाई पड़ती है। संरचना में उपयुक्त ईंटें, विविध आकृतियों और आकारों की थीं। संरचना के कुछ स्तंभों में, कोणीय टेढ़े-मेढ़े डिजाइन के साथ, गोल सजावटी गोलाकार आधार हैं।

एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि शायद इन पैट्रनों को स्तंभों को स्थापित करने के बाद नहीं तराशा गया था, बल्कि ये पैट्रन, विशेष रूप से ढाली गईं और इस उद्देश्य के लिए कोणीय आकार में तैयार की गई ईंटों से बने थे। इसके निर्माण के लिए उड़द (मटीमाह), बत्तख के अंडों, चिपचिपे चावल (बोरा साऊल), जलिखा (एक स्थानीय फल), राल, घोंघा चूना, आदि से तैयार करल या करहल नामक एक विशेष सीमेंट पदार्थ का उपयोग किया गया था। घोंघे के खोल के चमचमाते टुकड़े अभी भी दीवारों में दिखाई देते हैं।

यह भी माना जाता है कि अहोमों ने इन दीवारों को जल-रोधक बनाने के लिए किसी तकनीक का उपयोग किया होगा क्योंकि पानी के संपर्क में आने वाली ईंटों की सतह एक तैलीय बनावट प्रदर्शित करती है। इमारत के अंदर के हिस्सों को नाजुक फूलों के पैट्रन से सजाया गया है, जो कि कंक्रीट में निपुणता से उत्कीर्ण किए गए हैं।

इतिहासकारों द्वारा यह सुझाव दिया गया है कि तलातल घर एक आवासीय महल की बजाय एक प्रशासनिक और सैन्य केंद्र के रूप में बनाया गया था। माना जाता है कि खुली छतों पर जहां पहले लकड़ी की संरचनाएं खड़ी थीं, वहां राजा अपना दरबार और अन्य सभाएं आयोजित किया करते थे। परंतु कुछ इतिहासकारों का अभी भी यह मानना है कि ऊपरी मंजिलों में शायद आवासीय कक्ष थे। इसलिए इमारत के ऊपरी हिस्से को अक्सर करेंग घर कहा जाता है (जो गढ़गांव का करेंग घर नहीं था, क्योंकि करेंग एक शाही महल के लिए अहोम द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला सामान्य शब्द है)।

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लोक धारणा में तलातल घर
समय के साथ तलातल घर ने लोगों के बीच, बीते युग के रहस्यों और धन को समेटे हुए, एक रहस्यमय संरचना के रूप में एक पौराणिक स्तर प्राप्त कर लिया है। एक लोकप्रिय कथा के अनुसार, तलातल घर में 4 भूमिगत मंजिलें और दो गुप्त सुरंगें हैं। माना जाता है कि ये सुरंगें अक्रमण के दौरान भाग निकलने का जरिया हैं, जिनमें से एक दिखो नदी की ओर जाती है और दूसरी गढ़गांव महल की ओर।

ऐसा माना जाता था कि ये दुश्मन के आक्रमण की स्थिति में शाही परिवार के लिए भागने के लिए सुरक्षित मार्ग प्रदान करती थीं। भूलभुलैयां जैसे भूमिगत कक्षों में लोगों के सदैव के लिए खो जाने की कहानियां भी हैं, जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेजों ने भूमिगत प्रवेश द्वार को बंद कर दिया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (गुवाहाटी सर्कल) के सहयोग से आई.आई.टी. कानपुर द्वारा 2015 में किए गए एक ग्राऊंड पेनेट्रेटिंग राडार (जी.पी.आर.) सर्वेक्षण द्वारा किसी गुप्त सुरंग के अस्तित्व में होने का कोई प्रमाण नहीं मिला। परंतु इस अध्ययन द्वारा स्मारक के बाएं कोने की ओर, बगीचे में, लगभग 1.9 मीटर से लेकर 4 मीटर गहरी संरचनाओं की संभावित उपस्थिति का संकेत मिला है। यह अनुमान लगाया गया है कि यह उप-संरचना भूकंप प्रतिरोध के रूप में निर्मित एक दोहरी नींव हो सकती है। स्मारक से जुड़ी एक और लोकप्रिय कथा के मुताबिक, इमारत के एक बंद कक्ष में (भूमि के ऊपर) राजभरल या अहोम शाही राजकोष छुपा हुआ है, जो आज भी अनगिनत धन से भरा हुआ है।

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अपने नाम पर खरा उतारता तलातल घर
परंतु ये सिर्फ कहानियां और कथाएं ही नहीं हैं, जिनसे तलातल घर के बारे में रहस्य और जिज्ञासा उत्पन्न होती है, यह अविश्वसनीय रूप से डिजाईन किया गया स्मारक कई तरीकों से अपने नाम पर खरा उतरता है। असमिया में, ताल नाल हेरुआ का मतलब भ्रमित या विचलित होना है। पहली बार आने वाले आगंतुक के लिए, बिना उचित मार्गदर्शन के, तलातल घर की भूलभुलैयां जैसे अंदरूनी हिस्सों का भ्रमण करना कठिन साबित हो सकता है।

इस संरचना के डिजाइन में कई दृष्टि-भ्रम (ऑप्टिकल इलूजन) किसी को भी रास्ता भटकाने और अस्त-व्यस्त करने का काम करते हैं। स्मारक की निचली मंजिल में कई समरूप द्वार और मेहराबें हैं। मेहराबों के कई समूह जान-बूझकर ऐसे कोणीय तरीके से स्थित किए गए हैं ताकि जब किसी को ऐसा लगे कि वह दीवार तक पहुंच गया है (और मार्ग समाप्त हो गया है), तब एक तरफ से द्वारों और मार्गों की एक नई संरचना खुल जाती है, जिससे संरचना के सीमारहित और अटूट होने का आभास मिलता है।

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खिड़कियां थोड़ी हैं, दरवाजे ऊंचाई में कम हैं, जिसके कारण हर बार प्रवेश करने पर इंसान को झुकना पड़ता है। एक दृष्टि-भ्रम में एक अर्ध-खुला द्वार शामिल है, और जैसे ही कोई दरवाजे की ओर बढ़ता है, तो उसकी दरार जादुई रूप से सिकुड़ती हुई प्रतीत होती है। इमारत के कुछ हिस्सों में, एक अंतर्निहित ध्वनिक प्रभाव है, जिसके कारण हल्की सी खुसफुसाहट भी कई गुना शोर के रूप में सुनाई देती है।

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