Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 Apr, 2025 06:25 AM
Tantrik Powers: समर्थ गुरु राम दास जी का एक शिष्य एक दिन भिक्षा लेने एक गांव में गया। वह घर-घर जाकर भिक्षा मांगने लगा। समर्थ गुरु की जय! भिक्षा देही-समर्थ गुरु जी की जय। भिक्षा देही। भीतर से जोर से दरवाजा खुला और एक बड़ी दाढ़ी वाला तांत्रिक बाहर...
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Tantrik Powers: समर्थ गुरु राम दास जी का एक शिष्य एक दिन भिक्षा लेने एक गांव में गया। वह घर-घर जाकर भिक्षा मांगने लगा। समर्थ गुरु की जय! भिक्षा देही-समर्थ गुरु जी की जय। भिक्षा देही। भीतर से जोर से दरवाजा खुला और एक बड़ी दाढ़ी वाला तांत्रिक बाहर निकला और चिल्लाते हुए बोला, ‘‘मेरे दरवाजे पर आकर किसी और का गुणगान करता है। कौन है, यह समर्थ? इतना दु:साहस, देखता हूं कितना समर्थ है तेरे गुरु में? मेरा श्राप है तू कल का उगता सूरज नहीं देख पाएगा, अर्थात तेरी मृत्यु हो जाएगी।’’
शिष्य ने तांत्रिक से यह सुना तो देखता ही रह गया और आसपास के भी गांव वाले कहने लगे कि इस तांत्रिक का दिया हुआ श्राप कभी भी व्यर्थ नहीं जाता। बेचारा युवावस्था में ही अपनी जान गंवा बैठा। शिष्य उदास चेहरा लिए वापस आश्रम की ओर चल दिया और सोचते-सोचते जा रहा था कि उसका आज अंतिम दिन आ गया। आश्रम में जैसे ही पहुंचा, गुरु समर्थ राम दास जी हंसते हुए बोले, ‘‘ले आया भिक्षा?’’ बेचारा शिष्य क्या बोले।
शिष्य, ‘‘जी गुरुदेव, भिक्षा में अपनी मौत ले आया।’’ और सारी घटना सुना दी तथा एक कोने में चुपचाप बैठ गया।
गुरुदेव बोले, ‘‘अच्छा भोजन कर ले।’’
शिष्य, ‘‘गुरुदेव, आप भोजन करने की बात कर रहे हैं, यहां मेरे प्राण सूख रहे हैं। भोजन तो दूर की बात, एक दाना भी मुंह में न जा पाएगा।’’
गुरुदेव बोले, ‘‘अभी तो पूरी रात बाकी है, अभी से चिंता क्यों कर रहे हो, चल ठीक है तेरी इच्छा।’’ यह कह कर गुरुदेव भोजन करने चले गए।
फिर सोने की बारी आई। तब गुरुदेव शिष्य को बुला कर बोले, ‘‘हमारे चरण दबा दे।’’
शिष्य मायूस होकर बोला, ‘‘जी गुरुदेव, जो कुछ क्षण बचे हैं जीवन के उन क्षणों में आपकी सेवा करके प्राण त्याग करूं, यही अच्छा होगा।’’ और फिर गुरुदेव के चरण दबाने की सेवा शुरू की।
गुरुदेव बोले, ‘‘चाहे जो भी हो, चरण छोड़ कर मत जाना कहीं।’’
शिष्य बोला, ‘‘जी गुरु जी, कहीं नहीं जाऊंगा।’’
गुरुदेव ने अपने शब्दों को तीन बार दोहराया कि चरण मत छोड़ना, चाहे जो भी हो जाए। यह कह कर गुरुदेव सो गए। शिष्य पूरी भावना के साथ गुरुजी के चरण दबाने लगा। रात्रि का पहला पहर बीतने को था। तांत्रिक ने अपने श्राप को पूरा करने के लिए एक देवी को भेजा जो सोने, चांदी, हीरे, मोती से भरी थी। वह दरवाजे में प्रकट हुई और उस शिष्य से कहने लगी कि इधर आओ और यह सारा धन ले लो। शिष्य बोला, ‘‘मुझे लेने में कोई आपत्ति नहीं, पर जो कुछ देना है यहां आकर दे दो, मैं गुरु जी के चरणों को छोड़ कर नहीं आ सकता।’’
उसने फिर वही बात दोहराई पर शिष्य ने मना कर दिया।
तब तांत्रिक ने पहला पांसा असफल देख दूसरा पांसा फैंका। रात्रि का दूसरा पहर बीत जाने पर तांत्रिक ने उस शिष्य की मां का रूप धारण कर किसी को भेजा। शिष्य तो गुरु के पांव दबा रहा था तो दरवाजे पर आवाज आई, ‘‘बेटा कहां हो? आओ मेरे गले लग जाओ बहुत दिन हो गए हैं।’’
शिष्य बोला, ‘‘मैं गुरु के चरण दबा रहा हूं इसलिए यहां से जाओ।’’ उस मां बनी औरत ने देखा कि यह चाल भी सफल नहीं हुई और चली गई।
रात्रि का तीसरा पहर बीता तो इस बार तांत्रिक ने यमदूत रूप में राक्षस भेजा।
राक्षस बोला, ‘‘चल मैं तुम्हें लेने आया हूं।’’ शिष्य झट से बोला, ‘‘काल हो या महाकाल, अगर मेरी मृत्यु आई है तो यहीं आकर ले जाओ, मगर मैं गुरु जी के चरण नहीं छोड़ सकता।’’
बस, फिर वह राक्षस भी चला गया। सुबह हुई चिड़िया अपने घोंसले से निकल कर चहचहाने लगीं। सूरज भी उदय हो गया। गुरुदेव राम दास भी नींद से उठे और बोले, ‘‘सुबह हो गई।’’
शिष्य बोला, ‘‘जी गुरुदेव सुबह हो गई।’’
‘‘अरे तुम्हारी तो मृत्यु होने वाली थी न। तुमने कहा था कि तांत्रिक का श्राप कभी व्यर्थ नहीं जाता, लेकिन तुम तो जीवित हो।’’ गुरुदेव हंसते हुए बोले।
शिष्य भी सोचते हुए बोला, ‘‘जी गुरुदेव लग तो यही रहा है कि मैं जीवित हूं।’’
फिर रात्रि वाली सारी घटना याद की। तब समझ आ गया कि गुरुदेव ने क्यों कहा था कि चाहे जो भी हो जाए, चरण मत छोड़ना।
शिष्य गुरु जी के चरणों को पकड़ कर खूब रोने लगा और बार-बार यही कह रहा था कि जिस के सिर पर आप जैसे गुरु का हाथ हो, उसे काल भी कुछ नहीं कर सकता। गुरु जी की आज्ञा पर जो शिष्य चलता है, उसे तो मौत भी आने से एक बार नहीं, अनेक बार सोचती है।