Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Sep, 2023 03:43 PM
भोलेनाथ के कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनका इतिहास महाभारत और रामायण से जुड़ा है। इनमें से भगवान शिव का एक ऐसा ही प्राचीन मंदिर देवभूमि उत्तराखंड में है, जिसका
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Tapkeshwar Mahadev: भोलेनाथ के कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनका इतिहास महाभारत और रामायण से जुड़ा है। इनमें से भगवान शिव का एक ऐसा ही प्राचीन मंदिर देवभूमि उत्तराखंड में है, जिसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। पौराणिक मान्यता के अनुसार आदिकाल में भोले शंकर ने यहां देवेश्वर के रूप में दर्शन दिए थे। इस मंदिर के शिवलिंग पर एक चट्टान से पानी की बूंदें टपकती रहती हैं।
How the temple got its name Tapkeshwar मंदिर का नाम टपकेश्वर कैसे पड़ा
भोलेनाथ को समर्पित इस मंदिर का मुख्य गर्भगृह एक गुफा के अंदर है, जिसमें शिवलिंग पर पानी की बूंदें लगातार गिरती रहती हैं। इसी कारण भगवान शिव के इस मंदिर का नाम टपकेश्वर पड़ा। टपक एक हिंदी शब्द है, जिसका अर्थ है बूंद-बूंद गिरना।
This is the mythological story behind the name of the temple मंदिर के नाम के पीछे है यह पौराणिक कथा
टोंस नदी के तट पर स्थित टपकेश्वर मंदिर की एक पौराणिक कथा के अनुसार, यह गुफा द्रोणाचार्य (महाभारत के समय कौरवों और पांडवों के गुरु) का निवास स्थान मानी जाती है। इस गुफा में उनके बेटे अश्वत्थामा पैदा हुए थे। बेटे के जन्म के बाद उनकी मां दूध नहीं पिला पा रही थी। उन्होंने भोलेनाथ से प्रार्थना की, जिसके बाद भगवान शिव ने गुफा की छत पर गऊ थन बना दिए और दूध की धारा शिवलिंग पर बहने लगी, जिसकी वजह से प्रभु शिव का नाम दूधेश्वर पड़ा। कलियुग में इस धारा ने पानी का रूप ले लिया, इस कारण इस मंदिर को टपकेश्वर कहा जाता है।
Significance of Tapkeshwar Mahadev Temple टपकेश्वर महादेव मंदिर का महत्व
इस मंदिर में भगवान शिव टपकेश्वर के नाम से जाने जाते हैं। यहां दो शिवलिंग हैं। ये दोनों गुफा के अंदर स्वयं प्रकट हुए थे। शिवलिंग को ढकने के लिए 5151 रुद्राक्षों का इस्तेमाल किया गया है। मंदिर के आस-पास मां संतोषी की गुफा भी है। यह मंदिर जिस टोंस नामक नदी के तट पर स्थित है, द्वापर युग में यह नदी तमसा नाम से प्रसिद्ध थी। मंदिर परिसर के आस-पास कई खूबसूरत झरने हैं। यहां शाम को भगवान शिव का शृंगार किया जाता है।
Guru Dronacharya did penance for Lord Shiva in the cave गुरु द्रोणाचार्य ने गुफा में की भगवान शिव की तपस्या
मान्यता है कि इस गुफा में कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य भगवान शिव की तपस्या करने के लिए आए थे। 12 साल तक उन्होंने भोलेनाथ की तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें दर्शन दिए, उनके अनुरोध पर ही भगवान शिव यहां लिंग के रूप में स्थापित हो गए। लोक मान्यता के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य को भगवान शिव ने इसी जगह पर अस्त्र-शस्त्र और धनुविधा का ज्ञान दिया था। इस प्रसंग का महाभारत में उल्लेख है।
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ऐतिहासिक टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून शहर से लगभग 6 किलोमीटर दूर गढ़ी कैंट में है। सावन के महीने में यहां मेला लगता है। दर्शन के लिए लंबी लाइनें लगी रहती हैं। मान्यता है कि मंदिर में सावन के महीने में जल चढ़ाने से भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है। टपकेश्वर मंदिर में देश ही नहीं, विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं। मंदिर जाने के लिए सबसे नजदीक देहरादून रेलवे स्टेशन और बस अड्डा है।
Architecture of Tapkeshwar Temple टपकेश्वर मंदिर की वास्तुकला
प्रसिद्ध टपकेश्वर मंदिर की वास्तुकला प्राकृतिक और मानव निर्मित का खूबसूरत संगम है। यह मंदिर दो पहाड़ियों के बीच है। गुफा की वास्तुकला प्रकृति का अद्भुत नजारा है। महादेव टपकेश्वर का द्वार सुबह 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक और 1:30 से शाम के 5:30 बजे तक खुला रहता है। उत्तराखंड में पहाड़ की गोद में भगवान टपकेश्वर मंदिर स्वयं शिवजी की महिमा का गुणगान करता है।