Edited By Prachi Sharma,Updated: 05 Sep, 2024 06:00 AM
शिक्षक उस माली के समान है, जो एक बगीचे को भिन्न-भिन्न रंग-रूप के फूलों से सजाता है। जो छात्रों को कांटों पर भी मुस्कुराकर चलने को प्रोत्साहित करता है। उन्हें जीने की वजह समझाता
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Teacher’s Day 2024: शिक्षक उस माली के समान है, जो एक बगीचे को भिन्न-भिन्न रंग-रूप के फूलों से सजाता है। जो छात्रों को कांटों पर भी मुस्कुराकर चलने को प्रोत्साहित करता है। उन्हें जीने की वजह समझाता है। सही-गलत का फर्क शिक्षक ही हमें सिखाते हैं, जिससे हमारा चरित्र निर्माण तो होता ही है, साथ ही साथ सही मार्गदर्शन भी मिलता है, जो हमारे उज्ज्वल भविष्य के लिए बेहद जरूरी है।
किताबी ज्ञान के साथ नैतिक मूल्यों व संस्कार रूपी शिक्षा के माध्यम से एक गुरु ही शिष्य में अच्छे चरित्र का निर्माण करता है। जिस समाज में रहना है, उसके योग्य हमें केवल शिक्षक ही बनाते हैं। शिक्षक उस कुम्हार की तरह है जो अपने छात्र रूपी घड़े की कमियों को दूर करने के लिए भीतर से हाथ का सहारा देकर बाहर से थापी से चोट करता है। ठीक इसी तरह शिक्षक भी कभी-कभी छात्रों पर क्रोध करके भी उसके चरित्र का निर्माण तथा उन्हें बेहतर मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। यही वजह है कि शिक्षक और शिक्षक दिवस का महत्व भारतीय संस्कृति में कहीं ज्यादा है।
भारत में ‘शिक्षक दिवस’ 5 सितम्बर को मनाया जाता है, वहीं ‘अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस’ का आयोजन 1994 से 5 अक्टूबर को होता है। यूनेस्को ने 5 अक्टूबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस’ घोषित किया था। भारत में शिक्षक दिवस मनाने की परम्परा साल 1962 में शुरू हुई, जब देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन मनाने के लिए उनके छात्रों ने उनसे स्वीकृति ली थी।
तब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था, ‘मेरा जन्मदिन मनाने की बजाय इस दिन को शिक्षकों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किए गए योगदान और समर्पण को सम्मानित करते हुए मनाएं, तो मुझे सबसे ज्यादा खुशी होगी।’
डॉ. राधाकृष्णन ने करीब 40 वर्ष तक एक शिक्षक के रूप में कार्य किया था। उनका जन्म 5 सितम्बर, 1888 को तमिलनाडु के तिरूतनी नामक एक गांव के मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। उनका बचपन बेहद गरीबी में बीता था। उन्होंने फिलॉसफी में एम.ए की। इसके बाद देश के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाया।
कोलम्बो एवं लंदन यूनिवर्सिटी ने भी उनको मानक उपाधियों से सम्मानित किया। 1949-1952 तक वह मास्को में भारत के राजदूत रहे और 1952 में देश के पहले उपराष्ट्रपति, जबकि 1962 में देश के दूसरे राष्ट्रपति बने।
डॉ. राधाकृष्णन कहा करते थे, ‘‘पुस्तकें वे साधन हैं, जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के मध्य पुल बनाने का कार्य कर सकते हैं।’’
भारत में गुरुओं को हमेशा से विशेष स्थान दिया गया है। यहां तक कि उन्हें भगवान और माता-पिता से भी ऊपर का स्थान दिया गया है। आज हमारा देश तेजी से सफलता के मार्ग पर अग्रसर है, जिसका श्रेय हमारे शिक्षकों को ही जाता है।