Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Sep, 2024 08:37 AM
माता-पिता जहां प्यार और गुण देने के लिए जिम्मेदार हैं वहीं शिक्षक पूरा भविष्य उज्ज्वल और सफल बनाने के लिए जिम्मेदार होते हैं। वे जीवन में शिक्षा के महत्व से अवगत कराते हैं और हमारी प्रेरणा स्रोत बन कर हमें आगे बढ़ने तथा सफलता प्राप्त करने के लिए...
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Happy Teacher's Day 2024: माता-पिता जहां प्यार और गुण देने के लिए जिम्मेदार हैं वहीं शिक्षक पूरा भविष्य उज्ज्वल और सफल बनाने के लिए जिम्मेदार होते हैं। वे जीवन में शिक्षा के महत्व से अवगत कराते हैं और हमारी प्रेरणा स्रोत बन कर हमें आगे बढ़ने तथा सफलता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं। वे हमें संसार भर के महान व्यक्तित्वों का उदाहरण देकर शिक्षा की ओर प्रोत्साहित करते हैं। वे हमें बहुत मजबूत और जीवन में आने वाली हरेक बाधा का सामना करने के लिए तैयार करते हैं तथा अपार ज्ञान और बुद्धि से हमारे जीवन को पोषित करते हैं। यदि हमें जीवन में सफल होना है तो हमेशा अपने शिक्षकों के आदेशों का पालन करना चाहिए और देश का योग्य नागरिक बनने के लिए उनकी सलाह का अनुकरण करना चाहिए।
डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे कौन
डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद् तथा महान दार्शनिक थे। राजनीति में आने से पहले वह एक सम्मानित अकादमिक थे। वह कई कॉलेजों में प्रोफैसर रहे। वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में 1936 से 1952 तक प्राध्यापक रहे। कलकत्ता विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले जॉर्ज पंचम कॉलेज के प्रोफैसर के रूप में 1937 से 1941 तक कार्य किया। 1946 में यूनैस्को में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। वह शिक्षा में बहुत विश्वास रखते थे और उन्हें अध्यापन से गहरा प्रेम था। एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण उनमें विद्यमान थे।
डा. राधाकृष्णन जी का करियर
डा. राधाकृष्णन जी का करियर 1908 में तब शुरू हुआ, जब उन्हें मद्रास प्रैजीडैंसी कालेज में दर्शनशास्त्र का सहायक अध्यापक चुना गया। इसके बाद वह सन 1921 तक मैसूर विश्वविद्यालय में रहे और 1921 में कोलकाता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र की ‘पीठ’ के गौरवमय पद पर नियुक्त हुए। 1931 में आंध्र विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी चुने गए। शिक्षा के क्षेत्र में विशिष्ट कार्य करने पर उन्हें डी-लिट की उपाधि से भी विभूषित किया गया। 1939 में महामना मदन मोहन मालवीय जी के आग्रह पर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति बने और इस पद पर 1948 तक रहते हुए विश्वविद्यालय के विकास हेतु अनेक कार्य किए।
देश की आजादी के बाद 1949 में डा. राधाकृष्णन को रूस में भारत का राजदूत बनाकर भेजा गया, जहां उन्होंने विद्वता से वहां के लोगों में भी अमिट जगह बना ली। 1952 में सवसम्मति से भारत के उपराष्ट्रपति पद पर आसीन हुए। अपने उपराष्ट्रपति काल में रूस, चीन, जापान आदि देशों की यात्रा करके उनसे मधुर संबंध स्थापित किए।
मई 1962 में जब भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने अवकाश ग्रहण किया तो डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति पद पर नियुक्त किए गए। एक महान दार्शनिक, शिक्षक, लेखक का बाद में राष्ट्रपति पद पर सुशोभित होना न केवल भारत अपितु विश्व के लिए गौरव की बात थी।
डा. राधाकृष्णन जीवन पर्यंत शिक्षा सुधार तथा समाज सुधार के कार्यों में लगे रहे। उन्होंने स्वयं को अन्य लोगों की तरह समझकर सादा जीवन व्यतीत किया। आज के शिक्षक वर्ग को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए और अपने स्तर में सुधार लाना चाहिए ताकि एक अच्छे राष्ट्र का निर्माण हो सके।
शिक्षक दिवस की स्थापना
उनके जन्मदिन को शिक्षक दिन बनाए जाने की कहानी यह है कि देश का राष्ट्रपति बनने के बाद उनके कुछ दोस्तों और शिष्यों ने उनसे उनका जन्मदिन मनाने की अनुमति मांगी थी। इस पर उन्होंने कहा, ‘‘मेरे जन्मदिन का जश्न मनाने की बजाय 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस (Teachers Day In Hindi) के रूप में मनाया जाए तो मुझे गर्व महसूस होगा।’’
तब से डा. राधाकृष्णन के जन्मदिन को भारत में टीचर्स डे के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन समस्त देश में भारत सरकार द्वारा श्रेष्ठ शिक्षकों को पुरस्कार भी प्रदान किए जाते हैं।
हालांकि, हर देश में शिक्षक दिवस अलग-अलग तारीखों को मनाया जाता है। जैसे चीन में यह 10 सितम्बर को मनाया जाता है तो पाकिस्तान में 5 अक्तूबर को मनाया जाता है।