हर रोज आप भी कर सकते हैं मृत्यु से एक छोटी सी मुलाकात

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Aug, 2019 08:59 AM

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कबीर साहब का एक बड़ा प्यारा, बहुत प्यारा शब्द है- ‘अमर भए अब काहे को मरिहै।’  अब नहीं मौत मुझको आने वाली!

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कबीर साहब का एक बड़ा प्यारा, बहुत प्यारा शब्द है- ‘अमर भए अब काहे को मरिहै।’ 

अब नहीं मौत मुझको आने वाली! यह ज्ञान तुमको मृत्यु के भय से ऊंचा उठा देता है। इतनी बड़ी बात है यह और तुम कहते हो, ‘‘ज्ञान लेकर क्या करें।’’ 

इसी ज्ञान के बलबूते पर अभय, निर्भय हो जाता है मनुष्य। मौत उसके लिए खेल हो जाती है। वह फिर कहता है मौत को, ‘देखेंगे, जब तू आएगी न, तो देखेंगे।’’

ज्ञानी के लिए मौत खेल जैसी क्यों हो जाती है? क्योंकि वह रोज ध्यान में एक छोटी-सी ही सही लेकिन मौत ही तो मरता है। एक शिष्य ने यह मेरे पास पत्र भेजा है। वह कहते हैं कि ‘‘ध्यान में उतरते हैं, तो कभी-कभी ऐसा लगता है कि बिल्कुल खो ही जाएं, बाहर आएं ही नहीं।’’ 

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गए, तो बस गए। जो ध्यान में रोज मृत्यु से मुलाकात करता है, वह असली मौत से क्या डरेगा। देह की मौत के साथ वह ही मरता है जिसने मृत्यु की असलियत को नहीं समझा। जिसने मौत की असलियत को समझा वह खूब जानता है कि मौत तो देह तक आती, प्राण हर लेती है बस! और तो कुछ भी नहीं। मुझ पर तो मौत आ ही नहीं सकती।

देखो, सूर्य की रोशनी आ रही है। तुम कहो, ‘‘मुझे नहीं चाहिए सूर्य की रोशनी, मैं सूर्य की रोशनी को खत्म कर दूंगा। तो तलवार लेकर तुम उस रोशनी को काटने लग जाओ! पागल लगोगे! वह कहते हैं न ‘खाली हवा में तलवार मत चलाओ’, वह इसी को कहते हैं।

हवा को कोई कूटे, डंडा मारे तो क्या हवा मर जाएगी या कट जाएगी? अच्छा, अब इसमें एक और बात समझने की है। बल्ब के अंदर रोशनी है। बल्ब में बिजली जब आती है तो फिलामैंट जलता है और बाहर कांच का बना जो बल्ब होता है वह प्रकाशित हो जाता है। अब तुम डंडा मारो बल्ब पर, तो बल्ब टूटेगा कि जिसकी वजह से रोशनी आ रही थी वह बिजली?

सोचिए! बल्ब टूटेगा कि बिजली? क्या रोशनी पर तुमने डंडा मार लिया? नहीं सिर्फ बल्ब के कांच को डंडा लगा। फिलामैंट टूट गया कोई बात नहीं!  जिस बिजली से फिलामैंट जल रही थी तुम उस बिजली को नहीं मार सकते हो।

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बल्ब फ्यूज हो जाए, नया बल्ब आता है, पर रिश्तेदार कोई फ्यूज हो जाए तो क्या नया लाते हो? मृत्यु क्या है? इस शरीर के बाहरी कांच जैसे टुकड़े का टूट जाना। सूक्षम देह बनी रहती है। अब यह सूक्ष्म शरीर क्या है? मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, ज्ञानेंद्रियां और पंच प्राण। ये सभी मिल कर होता है सूक्ष्म शरीर। यह बना रहता है। नया शरीर फिर बन जाता है यानी बाहरी खोल बदल गया अंदर वाला सब वैसा ही है।

अत: अंत में कहा जा सकता है की देह मरती है, आत्मा नहीं   

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