Edited By Prachi Sharma,Updated: 08 Sep, 2024 07:00 AM
भगवान श्री राम जी से जुड़े ऐसे कई प्राचीन मंदिर है जिसके बारे में बहुत बार सुना होगा। आज जानेंगे भगवान श्री राम जी के ऐसे ऐतिहासिक मंदिर के बारे में
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Teda Mandir: भगवान श्री राम जी से जुड़े ऐसे कई प्राचीन मंदिर है जिसके बारे में बहुत बार सुना होगा। आज जानेंगे भगवान श्री राम जी के ऐसे ऐतिहासिक मंदिर के बारे में जिसके बारे में जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे। हम बात कर रहे हैं प्राचीन रघुनाथेश्वर मंदिर की। जिस मंदिर को अब टेढ़ा मंदिर के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि इस मंदिर के दर्शन मात्र से भक्तों के कष्ट दूर हो जाते हैं।
भगवान श्री राम के नाम से प्रसिद्ध रघुनाथेश्वर मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में ज्वालामुखी के पास स्थित है। ज्वालामुखी के मां ज्वाला मंदिर की बगल से ही इसके लिए रास्ता जाता है। ज्वाला जी से इसकी दूरी करीब दो किलोमीटर है। पूरा रास्ता उबड़-खाबड़ पत्थरों से युक्त चढ़ाई भरा है।
माना जाता कि भगवान श्री राम और माता सीता जी ने वनवास के समय में इस मंदिर में कुछ समय गुजारा था। ये मंदिर भगवान श्रीराम व मां सीता जी के वनवास का प्रतीक माना जाता है। इस मंदिर में माता सीता जी ने रसोई बनाई थी। वहीं इस मंदिर के बाहर लक्ष्मण जी ने हर बार की तरह माता सीता की रक्षा के लिए पहरा दिया था। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण द्वापर युग में पांडवों द्वारा किया गया था। शुरुआत में इस मंदिर में पीने के लिए पानी तक नहीं था। फिर यहां के रहने वाले महात्मा लोगों ने जो वैरागी पंथ के थे उन्होंने चिमटे मारकर पानी निकाला, जो आज भी इस मंदिर में चल रहा है।
क्यों कहा जाता है टेढ़ा मंदिर
सन् 1905 में 04 अप्रैल को कांगड़ा में एक भूकंप आया था। जिस कारण से ये मंदिर टेढ़ा हो गया और तभी से ही इस मंदिर को लोग टेढ़ा मंदिर बुलाने लगे। रामनवमी और सावन के महीने में इस मंदिर में मेला लगता है और रोजाना सुबह-शाम इस मंदिर में पूजा होती है और दोपहर के समय यहां भगवान को भोग लगाया जाता है। भक्तों के लिए ये मंदिर पूरा साल खुला रहता है।
इस मंदिर से जुड़ी एक और पौराणिक कथा है जो 700 साल पहले अकबर से जुड़ी है। कहा जाता है कि अकबर ने इस मंदिर से लेकर ज्वाला जी तक एक नहर बनाई थी। अकबर द्वारा ये नहर माता की ज्योत बुझाने के लिए बनाई गई थी। राजा अकबर ने इस नहर के जल से माता की ज्योत को बुझाने की पूरी कोशिश की थी लेकिन वह असफल रहा। फिर अकबर ने दिल्ली से सोने का छतर लाकर देवी मां को चढ़ाया। कहते हैं कि छतर चढ़ाने के बाद अकबर में इतना घमंड आ गया कि उसको लगता था कि जितना दान उसने किया है उतना दान कोई भी नहीं कर सकता है। फिर माता ने अकबर का अहंकार तोड़ने के लिए उस सोने के छत्तर को नष्ट कर दिया। नष्ट होने के बाद यह सोने का छतर अन्य पदार्थ में तब्दील हो गया। अब वैज्ञानिक भी इस बात को साबित नहीं कर पाएं कि वो छतर किस धातु का था।