Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Oct, 2023 09:35 AM
सनातन धर्म में 33 कोटी देवी-देवताओं को पूजने का विधान है लेकिन उत्तराखंड में इससे भी अधिक देवों को पूजने का विधान है जैसे ग्वेल देवता, ग्राम देवता, कुल देवता
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Duryodhana and Karna Temple in Uttarkashi: सनातन धर्म में 33 कोटी देवी-देवताओं को पूजने का विधान है लेकिन उत्तराखंड में इससे भी अधिक देवों को पूजने का विधान है जैसे ग्वेल देवता, ग्राम देवता, कुल देवता आदि शायद इसलिए इसे देवभूमि भी कहा जाता है। इस पावन धरती पर 'खलनायक' दुर्योधन और दानवीर कर्ण का भी पूजन होता है। इन दोनों के उत्तरकाशी जिले में अलग-अलग मंदिर भी हैं। दुर्योधन मंदिर नेतवार से औसतन 12 किमी दूर ‘हर की दून’ रोड पर सौर गांव में है। जबकि कर्ण मंदिर नेतवार से लगभग डेढ़ मील दूर सारनौल गांव में है।
सारनौल और सौर गांव की धरती पाताललोक के राजा भुब्रूवाहन नामक शूरवीर की धरती है। कहते हैं भुब्रूवाहन महाभारत युद्ध में भाग लेने के लिए आया था और वह कौरवों की तरफ से युद्ध करना चाहता था लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसा होने नहीं दिया क्योंकि वो जानते थे कि भुब्रूवाहन अर्जुन को चुनौती देने में सक्षम है।
इससे पहले की वो अर्जुन को चुनौती देता उन्होंने उसे चुनौती दे डाली और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। उसने भगवान से युद्ध देखने की इच्छा व्यक्त की तो उन्होंने उसका सिर एक पेड़ पर टांग दिया वहीं से उसने युद्ध देखा।
वहां के आम जनमानस का कहना है जब कौरव कोई गलत कदम उठाते तो भुब्रूवाहन जोर-जोर से रोने लगता और उन्हें अपनी रणनीति बदलने के लिए कहता। वो तब से लेकर आज तक रो रहा है। उसी के आंसूओं से यहां तमस अथवा टोंस नामक नदियां बह रही हैं लेकिन इनका पानी कोई नहीं पीता।
दुर्योधन और कर्ण भुब्रूवाहन को बहुत पंसद करते थे। यहां के स्थानीय लोगों में भुब्रूवाहन की वीरगाथाएं बहुत प्रचलित हैं। दुर्योधन और कर्ण इस इलाके के क्षेत्रपाल माने जाते हैं, तभी तो इनके मंदिर यहां स्थापित हैं।