Edited By Jyoti,Updated: 03 Aug, 2019 09:35 AM
“सावन” भगवान शिव प्रिय माह कहलाता है। ग्रंथों के अनुसार इस पावन महीने में भोलेनाथ का जलाभिषेक अधिक लाभदायक होता है। इस दौरान भगवान शंकर का विभिन्न नदियों के
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“सावन” भगवान शिव प्रिय माह कहलाता है। ग्रंथों के अनुसार इस पावन महीने में भोलेनाथ का जलाभिषेक अधिक लाभदायक होता है। इस दौरान भगवान शंकर का विभिन्न नदियों के पवित्र जल से भी अभिषेक किया जाता है। तो वहीं ज्योतिष शास्त्र में सावन में किए जाने वाले विभिन्न अभिषेकों के बारे में बताया गया है। जिसमें से एक है रुद्राभिषेक। अक्सर देखा जाता है मंदिरों में इस दौरान लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए शिवलिंग का रुद्राभिषेक करवाते हैं। मान्यता है जो भी जातक भगवान शंकर के प्रिय माह श्रावण में उनका रुद्राभिषेक करता है उसके सभी इच्छाएं तो पूर्ण होती ही हैं साथ ही उसकी कुंडली के सभी ग्रह दोष भी दूर होते हैं।
आज हम आपके लिए रुद्राभिषेक से जुड़ी ही ऐसी बातें बताने वाले हैं जिससे शायद ही कोई वाकिफ़ हो। तो आइए देर न करते हुए बताते हैं इससे जुड़ी कुछ खास बातें-
सबसे पहले बता दें अभिषेक शब्द का तात्पर्य स्नान कराना से है। तो वहीं रुद्राभिषेक का अर्थ भगवान रुद्र का अभिषेक यानि कि शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों का उच्चारण करते हुए अभिषेक करना है। आज के समय में अभिषेक रुद्राभिषेक के रूप में ही विश्रुत है। इसके कई रूप व प्रकार होते हैं। मगर कहा जाता है अगर कोई शिव जी को खुश करना चाहता हो तो उसे श्रेष्ठ ब्राह्मणों द्वारा ही शिवलिंग का रुद्राभिषेक करवाना चाहिए, ताकि अभिषेक में कोई भूल न हो और शिव शंभूनाथ का आशीर्वाद प्राप्त हो।
सावन में इसलिए ज़रूरी है रुद्राभिषेक-
ग्रंथों में बताया गया है शिव ही रुद्र हैं और रुद्र ही शिव हैं। रुद्राष्टाध्यायी में एक श्लोक है जिसके अनुसार रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र।
अर्थात- रुद्र रूप शिव हमारे सभी दुखों को जल्द ही खत्म कर देते हैं। यानि कि शिवलिंग का रुद्राभिषेक करने पर हमारे दुख खत्म होते हैं।
किसके द्वारा शुरु हुई रुद्राभिषेक की परंपरा-
धार्मिक ग्रंथों में वर्णित पौराणिक कथाओं के मुताबिक श्री हरि विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्माजी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी जब विष्णु भगवान के पास अपने जन्म का कारण पूछने गए तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया। साथ ही यह भी बताया कि उनके कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है। लेकिन ब्रह्माजी इस बात को मानने के तैयार नहीं थे। जिसके कारण दोनों में खतरनाक युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध को रोकने ले लिए भगवान रुद्र यानि शिव शंकर लिंग रूप में प्रकट हुए। जब दोनों यानि ब्रह्मा और विष्णु को इस लिंग का आदि और अंत कहीं से भी पता नहीं चल सका तो उन्होंने हार मान ली और लिंग का अभिषेक किया। जिससे भगवान रुद्र प्रसन्न हो गए। ऐसी मान्यता है इसी घटना से रूद्राभिषेक की परंपरा आरंभ हुई थी।
बता दें जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है उसे उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करना चाहिए। अर्थात अगर कोई वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए।