Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Jul, 2020 07:59 AM
1 करोड़ साल तक स्वर्ग सुख भोगने के लिए इस मंदिर में अर्पित करें बेलपत्र
भगवान शिव पूर्ण विश्वास हैं। विश्वास ही जीवन है और अविश्वास मृत्यु। जो टूट जाए वह श्वास है जो कभी न टूटे वह विश्वास है। यह विश्वास की डोर हमें भगवान शिव तक
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भगवान शिव पूर्ण विश्वास हैं। विश्वास ही जीवन है और अविश्वास मृत्यु। जो टूट जाए वह श्वास है जो कभी न टूटे वह विश्वास है। यह विश्वास की डोर हमें भगवान शिव तक पहुंचा सकती है। भोलेनाथ रसेश्वर हैं, रस का अर्थ है अमृत। बाबा भोलेनाथ ने समुद्र मंथन से निकला विष पीकर हमें अमृत प्रदान किया है। उसी प्रकार श्रावण का महीना भी रस से भरा है जो हमें वर्षा की बूंदों के रूप में जल देकर हमारे भीतर जीवन का संचार करता है। इस मास में प्रकृति का अलग ही नजारा देखने को मिलता है। इस मास में होने वाली रिमझिम से पृथ्वी पर उत्सव का वातारण बन जाता है।
सावन मास में पृथ्वी लोकवासियों को उस असहनीय ताप से ठंडक पहुंचने से नव जीवन का संचार होने लगता है। भू-मंडल में चारों ओर हरे-भरे पत्ते, नई कोपलें आती हैं। नदी-नाले, कूपों में जल भर जाता है। मानो पृथ्वी भी तृप्त होकर हरी ओढऩी ओढ़ आनंद से झूमने लगती है। ऐसा ही भगवान शिव का प्रिय रमणीय स्थल है हरिद्वार के पास स्थित बिल्व पर्वत। यहां मां पार्वती ने कठोर तप के बल पर भगवान शिव को पति रूप में पाया था।
भोले बाबा को एक नहीं दो बार इस पवित्र स्थल पर अपनी अर्द्धांगिनी की प्राप्ति हुई थी। प्रथम बार दक्षेश्वर के राजा दक्ष की पुत्री सती के रूप में और दूसरी बार हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में।
देव ऋषि नारद के कहने पर हरिद्वार से पश्चिम में हर की पौड़ी से कुछ दूरी पर स्थित बिल्व पर्वत पर आकर देवी पार्वती ने कठोर तप किया था। आज इस स्थान पर बिल्वकेश्वर महादेव का प्रतिष्ठित मंदिर स्थित है। भोले बाबा शेषनाग के नीचे लिंग रूप में विराजते हैं।
मान्यता है की देवी पार्वती इस स्थान पर बेलपत्र खाकर अपनी भूख शांत करती थी। उनकी प्यास को बुझाने के लिए ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से गंगा की जलधारा प्रकट की थी। आज के समय में यह स्थान बिल्वकेश्वर मंदिर से करीब 50 कदम की दूरी पर गौरी कुंड के नाम से विख्यात है। जानकार कहते हैं कि मां पार्वती तप के दौरान इसी गौरी कुंड में स्नान करती थी और इसी कुंड का जल को ग्रहण करती थी। आज गौरी कुंड में स्नान करने के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं। सावन और मकर संक्रान्ति पर श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है।
इस स्थल पर आने वाला भोलेभंडारी से मुंह मांगा वर प्राप्त करता है। कुंवारी कन्याएं अभिषेक करने के बाद बेलपत्र चढ़ाएं तो उन्हें मन पसंद जीवनसाथी की प्राप्ति होती है। जो भी जातक प्रेम और श्रद्धा भाव से बिल्वकेश्वर महादेव पर केवल बेलपत्र अर्पित कर दे, उसे 1 करोड़ साल तक मिलता है स्वर्ग के ऐश्वर्य भोगने का सुख।
बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर में दो बार होता है भोले बाबा का पूजन। प्रात: 5 बजे गौरी कुंड से पवित्र जल लाकर शिवलिंग का जलाभिषेक किया जाता है। फिर उनके गले के हार नाग देवता को प्रतिष्ठित कर श्रृंगार किया जाता है। शाम 6 बजे मंदिर के पुजारी पूजन के उपरांत श्रृंगार कर अंत में धूप-बत्ती करते हैं। भगवान शिव की सवारी नंदी के कान में लोग अपनी मनोकामनाएं बताते हैं। जो वह भोलेनाथ तक पहुंचाते हैं। बिल्व पर्वत का सारा वातावरण सदा शिवमय रहता है।