Edited By ,Updated: 11 May, 2017 12:24 PM
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जिसकी तुलना संभव न हो ऐसी ‘तुलसी’ का नाम उसकी अतिशय उपयोगिता को सूचित करता है। तुलसी जी का पूजन, दर्शन, सेवन व रोपण आधिदैविक, आधिभौतिक और
जिसकी तुलना संभव न हो ऐसी ‘तुलसी’ का नाम उसकी अतिशय उपयोगिता को सूचित करता है। तुलसी जी का पूजन, दर्शन, सेवन व रोपण आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक-तीनों प्रकार के तापों का नाश कर सुख-समृद्धि देने वाला है। अत: विश्व मानव तुलसी के अद्भुत गुणों का लाभ लेकर स्वस्थ, सुखी, समानित जीवन की ओर चले और वृक्षों के अंदर भी उसी एक परमात्मा-सत्ता को देखने के भारतीय संस्कृति के महान दृष्टिकोण से अपने भावों को दिव्य बनाएं। तुलसी पूजन से बुद्धिबल, मनोबल, चारित्र्यबल व आरोग्यबल बढ़ता है। मानसिक अवसाद, आत्महत्या की प्रवृत्ति आदि से रक्षा होती है और समाज को भारतीय संस्कृति के इस सूक्ष्म ऋषि विज्ञान का लाभ मिलता है।
तुलसी एक, नाम अनेक
हर जगह आसानी से उपलब्ध होने से इसे ‘सुलभा’ भी कहा जाता है। यह गांवों में अधिक मात्रा में होती है अत: ‘ग्राया’ भी कहलाती है। शूल का नाश करने वाली होने से इसे ‘शूलघ्नी’ भी कहा जाता है।
तुलसी नामाष्टक
वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनीं विश्वपूजिताम्।
पुष्पसारां नन्दिनीं च तुलसीं कृष्णजीवनीम्।।
एतन्नामाष्टकं चैतत्स्तोत्रं नामार्थसंयुतम्।
य: पठेत्तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत्।।
भगवान नारायण देवर्षि नारद जी से कहते हैं : ‘वृंदा, वृंदावनी, विश्वपावनी, विश्वपूजिता, पुष्पसारा, नंदिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी- ये तुलसी देवी के आठ नाम हैं। यह सार्थक नामावली स्रोत के रूप में परिणत है। जो पुरुष तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करता है उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।