Tirupati Balaji Temple: संसार का सबसे धनी मंदिर है लक्ष्मीपति तिरूपति-बालाजी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Jul, 2024 08:26 AM

tirupati balaji temple

भारत और संसार के सबसे धनी मंदिरों में आंध्र प्रदेश में तिरूपति नामक स्थान पर भगवान विष्णु (वैंकटेश) का मंदिर है। वैंकटेश भगवान को कलियुग में बालाजी

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Tirupati Balaji Temple: भारत और संसार के सबसे धनी मंदिरों में आंध्र प्रदेश में तिरूपति नामक स्थान पर भगवान विष्णु (वैंकटेश) का मंदिर है। वैंकटेश भगवान को कलियुग में बालाजी नाम से भी जाना गया है। तमिल भाषा में तिरू अथवा थिरू शब्द का वही अर्थ है जो संस्कृत में श्री का है। श्री शब्द, धन-समृद्धि की देवी लक्ष्मी के लिए प्रयुक्त होता है। तीर्थयात्रियों की संख्या की दृष्टि से रोम (वैटिकन), मक्का और यरूशलम की तुलना में अधिक संख्या में श्रद्धालु तिरूपति-बालाजी की तीर्थयात्रा प्रतिवर्ष करते हैं। तिरूपति देवस्थान बोर्ड में लगभग पच्चीस हजार कर्मचारी नियुक्त हैं।

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इस मंदिर में सर्वाधिक चढ़ावा आना अपने आप में व्यक्त करता है कि जनसाधारण की मनोकामनाएं और कष्ट निवारण हेतु इसकी महत्ता स्वयंसिद्ध है। प्रसंगवश भारत में जनआस्था से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण स्थान भी हैं जो क्रमश: चार धाम, बारह ज्योतिर्लिंग, इक्यावन शक्तिपीठ, श्री राम और श्री कृष्ण की जन्मभूमि अयोध्या तथा मथुरा इत्यादि हैं लेकिन इनकी तुलना में चढ़ावा अधिक तिरूपति मंदिर में ही चढ़ाया जाता है।  

एक पौराणिक कथा
विष्णुजी और लक्ष्मी से जुड़ा एक संक्षिप्त पौराणिक इतिहास यहां प्रस्तुत है :    
एक पौराणिक गाथा के अनुसार जब सागर मंथन किया गया तब कालकूट विष के अलावा चौदह रत्न निकले थे। इन रत्नों में से एक देवी लक्ष्मी भी थीं। लक्ष्मी के भव्य रूप और आकर्षण के फलस्वरूप सारे देवता, दैत्य और मनुष्य उनसे विवाह करने हेतु लालायित थे, किन्तु देवी लक्ष्मी को उन सबमें कोई न कोई कमी लगी। अत: उन्होंने समीप निरपेक्ष भाव से खड़े हुए विष्णुजी के गले में वरमाला पहना दी।

विष्णुजी ने लक्ष्मी जी को अपने वक्ष पर स्थान दिया। यह रहस्यपूर्ण है कि विष्णुजी ने लक्ष्मीजी को अपने हृदय में स्थान क्यों नहीं दिया। कहते हैं कि अपने हृदयरूपी मानसरोवर में राजहंस रूपी श्री राम को बसा रखा था, उसी समानांतर आधार पर विष्णु जी के हृदय में संसार के पालन हेतु उत्तरदायित्व छिपा था। उस उत्तरदायित्व में कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं हो इसलिए संभवतया लक्ष्मीजी का निवास वक्षस्थल बना।  

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तिरूमला पहाड़ी पर बसा है मंदिर
जिस नगर में यह मंदिर बना है उसका नाम तिरूपति है और नगर की जिस पहाड़ी पर मंदिर बना है उसे तिरूमला (श्री+मलय) कहते हैं। तिरूमला को वैंकट पहाड़ी अथवा शेषांचलम भी कहा जाता है। यह पहाड़ी सर्पाकार प्रतीत होती है जिसकी सात चोटियां हैं जो आदि शेष के फनों की प्रतीक मानी जाती हैं। इन सात चोटियों के नाम क्रमश:  शेषाद्रि, नीलाद्रि, गरूड़ाद्रि, अंजनाद्रि, वृषभाद्रि, नारायणाद्रि और वैंकटाद्रि हैं। यह मंदिर प्राचीन दक्षिण भारतीय वास्तुशिल्प का अनुपम उदाहरण है। इस मंदिर को प्राचीनकाल से पल्लव, पांड्या, चोल, विजयनगर और मैसूर के शासकों का संरक्षण प्राप्त रहा है। इस मंदिर में प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु अपने केश कटवाकर भगवान को मनौती हेतु प्रस्तुत करते हैं। तिरूपति के लड्डू प्रसाद भी विश्व प्रसिद्ध हैं। यहां लगभग 25 हजार श्रद्धालु तीर्थयात्री प्रतिदिन भोजन तथा यह अनूठा प्रसाद नि:शुल्क पाते हैं।

तिरूपति में स्थित अन्य प्रसिद्ध स्थल
तिरूपति के समीप अनेक मंदिर, उपासना स्थल तथा पर्यटन स्थल हैं। जैसे कि संत रामानुजाचार्य द्वारा 1130 ई. में बनवाया श्री गोविंदराज स्वामी मंदिर, कपिलेश्वर स्वामी मंदिर, देवी पद्मावती मंदिर, श्री कल्याण वैंकटेश्वर स्वामी मंदिर, श्री कालहस्ती मंदिर और अगस्त्य स्वामी मंदिर इत्यादि। आकाशगंगा, शिला तोरणम, स्वामी पुष्करणी (तालाब) और प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी चंद्रगिरि के पुरावशेष भी दर्शनीय हैं।

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