पत्नी की फटकार ने बनाया विद्वान

Edited By Jyoti,Updated: 30 May, 2018 04:08 PM

tulsidas interesting facts

तुलसीदासजी एक महान कवि थे। अपने जीवनकाल में तुलसीदास जी ने 12 ग्रंथ लिखे। उन्हें संस्कृत विद्वान होने के साथ ही हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ कवियों में एक माना जाता है। तुलसीदासजी को महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है।

ये नहीं देखा तो क्या देखा (देखें VIDEO)

तुलसीदासजी एक महान कवि थे। अपने जीवनकाल में तुलसीदास जी ने 12 ग्रंथ लिखे। उन्हें संस्कृत विद्वान होने के साथ ही हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ कवियों में एक माना जाता है। तुलसीदासजी को महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। श्रीरामचरितमानस के बाद विनय पत्रिका तुलसीदासकृत एक अन्य महत्वपूर्ण काव्य है। ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास जी ने राम-लक्ष्मण और हनुमान जी के साथ ही भगवान शिव-पार्वती के साक्षात दर्शन प्राप्त किए थे। इस संबंध में एक दोहा भी प्रचलित है-

PunjabKesari
श्लोक-
चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।
तुलसीदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥
 

भगवान श्रीराम की महिमा का वर्णन जिस प्रकार श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने किया है, वैसा वर्णन किसी अन्य ग्रंथ में नहीं मिलता। यही कारण है श्रीरामचरितमानस को हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र ग्रंथ माना जाता है। गोस्वामी तुलसीदास को भी हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।


भगवान श्रीराम के जीवन का वर्णन अनेक ग्रंथों में मिलता है, लेकिन गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी गई श्रीरामचरितमानस उन सभी ग्रंथों में बेजोड़ है। धर्म ग्रंथों के अनुसार संवत् 1633 के अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को गोस्वामी तुलसीदास ने ये ग्रंथ संपूर्ण किया था। तो जानते हैं गोस्वामी तुलसीदास तथा श्रीरामचरितमानस के संबंध में कुछ रोचक बातें, जिसके बारे में शायद ही किसी को पता होगा-
 

गोस्वामी तुलसीदास का जन्म संवत् 1554 में हुआ था। कहा जाता है कि अपने जन्म लेने के बाद बालक तुलसीदास रोए नहीं बल्कि उनके मुख से राम नाम निकला। जन्म से ही उनके मुख में बत्तीस दांत थे। बाल्यवास्था में इनका नाम रामबोला था। काशी में शेषसनातनजी के पास रहकर तुलसीदासजी ने वेद-वेदांगों का अध्ययन किया।
PunjabKesari

शास्त्रों के अनुसार संवत् 1583 में तुलसीदास जी का विवाह हुआ। वे अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे। एक बार जब उनकी पत्नी अपने मायके गईं तो वे भी उनके पीछे-पीछे वहां पहुंच गए। पत्नी ने जब यह देखा तो उन्होंने तुलसीदासजी से कहा कि जितनी तुम्हारी मुझमें आसक्ति है, उससे आधी भी यदि भगवान में होती तो तुम्हारा कल्याण हो जाता। पत्नी की यह बात तुलसीदासजी को चुभ गई और उन्होंने गृहस्थ आश्रम त्याग दिया और साधुवेश धारण कर लिया।
 

एक रात जब तुलसीदासजी सो रहे थे तो उन्हें सपना आया। सपने में भगवान शंकर ने उन्हें आदेश दिया कि तुम अपनी भाषा में काव्य रचना करो। तुरंत ही तुलसीदासजी की नींद टूट गई और वे उठकर बैठ गए। तभी वहां भगवान शिव और पार्वती प्रकट हुए और उन्होंने कहा- तुम अयोध्या में जाकर रहो और हिंदी में काव्य रचना करो। मेरे आशीर्वाद से तुम्हारी कविता सामवेद के समान फलवती होगी। भगवान शिव की आज्ञा मानकर तुलसीदासजी अयोध्या आ गए।
PunjabKesari

संवत् 1631 को रामनवमी के दिन वैसा ही योग था जैसा त्रेतायुग में रामजन्म के समय था। उस दिन प्रात:काल तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारंभ की। दो वर्ष, सात महीने व छब्बीस दिन में ग्रंथ की समाप्ति हुई। संवत् 1633 के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में रामविवाह के दिन इस ग्रंथ के सातों कांड पूर्ण हुए और भारतीय संस्कृति को श्रीरामचरितमानस के रूप में अमूल्य निधि प्राप्त हुई।
 

यह ग्रंथ लेकर तुलसीदासजी काशी गए। रात को तुलसीदासजी ने यह पुस्तक भगवान विश्वनाथ के मंदिर में रख दी। सुबह जब मंदिर के पट खुले तो उस पर लिखा था- सत्यं शिवं सुंदरम् और नीचे भगवान शंकर के हस्ताक्षर थे। उस समय उपस्थित लोगों ने सत्यं शिवं सुंदरम् की आवाज़ भी अपने कानों से सुनी।
 

अन्य पंडितों ने जब यह बात सुनी तो उनके मन में तुलसीदासजी के प्रति ईर्ष्या होने लगी। उन्होंने दो चोरों को श्रीरामचरितमानस ग्रंथ को चुराने के लिए भेजा। चोर जब तुलसीदासजी की कुटिया के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि दो वीर पुरुष धनुष बाण लिए पहरा दे रहे हैं। वे बड़े ही सुंदर और गौर वर्ण के थे। उनके दर्शन से चोरों की बुद्धि शुद्ध हो गई और वे भगवान का भजन करने लग गए।
 

कुछ पंडितों ने एक बार श्रीरामचरितमानस की परीक्षा लेने की सोची। उन्होंने भगवान काशी विश्वनाथ के मंदिर में सामने सबसे ऊपर वेद, उनके नीचे शास्त्र, शास्त्रों के नीचे पुराण और सबसे नीचे श्रीरामचरितमानस ग्रंथ रख दिया। मंदिर बंद कर दिया गया। सुबह जब मंदिर खोला गया तो सभी ने देखा कि श्रीरामचरितमानस वेदों के ऊपर रखा हुआ है। यह देखकर पंडित लोग बहुत लज्जित हुए। उन्होंने तुलसीदासजी से क्षमा मांगी और श्रीरामचरितमानस के सर्वप्रमुख ग्रंथ माना।
 

इस ग्रंथ में रामलला के जीवन का जितना सुंदर वर्णन किया गया है उतना अन्य किसी ग्रंथ में पढ़ने को नहीं मिलता। यही कारण है कि श्रीरामचरितमानस को सनातन धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। रामचरित मानस में कई ऐसी चौपाई भी तुलसीदास ने लिखी है जो विभिन्न परेशानियों के समय मनुष्य को सही रास्ता दिखाती है तथा उनका उचित निराकरण भी करती हैं।
PunjabKesari
फ्री देसी घी लेना है तो 'उनाव' जाएं 

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!