Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Aug, 2023 09:55 AM
हिन्दी साहित्य के क्षितिज पर सूर्य समान चमकने वाले गोस्वामी तुलसीदास भक्तिकाल के महान संत कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। 1532 ई. को ‘सोरो’ ग्राम राजापुर में इनका जन्म ब्राह्मण परिवार में
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Tulsidas Jayanti 2023: हिन्दी साहित्य के क्षितिज पर सूर्य समान चमकने वाले गोस्वामी तुलसीदास भक्तिकाल के महान संत कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। 1532 ई. को ‘सोरो’ ग्राम राजापुर में इनका जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ। पिता आत्माराम तथा माता हुलसी थीं। कहा जाता है कि इन्होंने जन्म लेते ही ‘राम’ नाम बोला था, इसलिए इनका नाम ‘रामबोला’ रखा गया। बाद में ये गोस्वामी तुलसीदास के रूप में प्रसिद्ध हुए।
बाल्यकाल से ही असाधारण प्रतिभा के धनी तुलसीदास जी ने अनेक ग्रंथों, पुराणों को कंठस्थ कर लिया। माता-पिता के शीघ्र निधन के बाद इनका जीवन साधु-संतों की संगति में व्यतीत हुआ। स्वामी नरहरिदास से गुरु दीक्षा प्राप्त कर इनके जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया तथा वह एकमत से प्रभु श्री राम के अनन्य उपासक बन गए और राम भक्ति में सराबोर रहते हुए जीवन व्यतीत करने लगे। इनका विवाह रत्नावली नामक युवती से हुआ।
वैवाहिक जीवन में अधिक आसक्ति के कारण कुछ समय भक्ति से अलग भी हुए, परन्तु पत्नी के ताने ने इनका जीवन परिवर्तन कर दिया तथा राम नाम में लीन रहने लगे। हिन्दू संस्कृति तथा सभ्यता को चिरंजीव रखने में गोस्वामी जी का योगदान अतुलनीय है।
इन्होंने दस प्रकार की प्रामाणिक रचनाएं लिखीं लेकिन ‘श्रीरामचरितमानस’ इनका गौरव ग्रंथ है, जिसे साहित्य में महाकाव्य की संज्ञा दी गई है।
लोक सामंजस्य की भावना को आधार बनाकर लिखा गया ‘श्रीरामचरितमानस’ भारत ही नहीं, अपितु विश्व की सर्वोत्तम रचना माना जाता है, जिसे संपूर्ण करने में गोस्वामी जी को लगभग तीन वर्षों का समय लगा और यह उस काल में रचित हुआ, जब देश में इस्लाम का प्रबल बोलबाला था। ऐसे समय में भी गोस्वामी तुलसीदास जी निर्भीकता पूर्वक राम भक्ति में तल्लीन होकर इनकी रचना में लगे रहे।
गोस्वामी जी ने ‘श्रीरामचरितमानस’ के अतिरिक्त ‘बरवै रामायण’, ‘रामलला नहछू’, ‘विनय पत्रिका’, ‘गीतावली’, ‘दोहावली’, ‘जानकी मंगल’, ‘पार्वती मंगल’ आदि रचनाएं भी रचीं, परन्तु सर्वाधिक प्रसिद्धि इन्हें ‘श्रीरामचरितमानस’ से प्राप्त हुई। दोहा, छन्द, सोरठा, चौपाइयों से अलंकृत ‘श्रीरामचरितमानस’ घर-घर में पढ़ा जाता है तथा विशेष शुभ अवसरों पर प्राय: इसका पाठ करने की परम्परा सैंकड़ों वर्षों से जारी है।
गोस्वामी जी के शब्दों में ‘जब तक इस धरा पर गंगा की अविरल धारा, आकाश में सूर्य, चांद, सितारे विद्यमान हैं, तब तक प्रभु श्रीराम का नाम और उनकी र्कीत, यश और विजय पताका फहराती रहेगी।’ 1623 ई. में अस्सी घाट पर राम-राम कहते हुए इन्होंने अपने नश्वर शरीर का त्याग किया। इस वर्ष गोस्वामी जी को श्रद्धांजलि रूप में समर्पित 400वां पुण्य स्मृति वर्ष भारतवर्ष में विभिन्न स्थानों पर भक्ति सम्मेलनों के माध्यम से आयोजित किया जा रहा है।