Types of Karma: 3 प्रकार के होते हैं कर्म, जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाने के लिए करें ये काम

Edited By Prachi Sharma,Updated: 25 Sep, 2024 10:50 AM

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मान लो हजारों मन अनाज का ढेर पड़ा है, उसमें से आपने 10 किलो अनाज पीस कर आटा बना लिया, तो जितने समय आप अनाज को संभाल कर रख सकते हैं, उतने समय तक आटे को संभाल कर नहीं रख सकते।

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कर्म  ‘प्रारब्ध कर्म’, ‘संचित कर्म’ और ‘क्रियमाण कर्म’।

Types of Karma: मान लो हजारों मन अनाज का ढेर पड़ा है, उसमें से आपने 10 किलो अनाज पीस कर आटा बना लिया, तो जितने समय आप अनाज को संभाल कर रख सकते हैं, उतने समय तक आटे को संभाल कर नहीं रख सकते। आटा जल्दी खराब हो जाता है। अत: उसका सदुपयोग करना पड़ता है। उसे खाकर आप में शक्ति आएगी, उससे आप काम करेंगे।

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तो अनाज का जो ढेर है वह है ‘संचित कर्म’। आटा है ‘प्रारब्ध कर्म’ और वर्तमान में जो आप कर रहे हैं वह है ‘क्रियमाण कर्म’। कर्मों के बड़े संचय में से अपने जरा से कर्मों को लेकर आपने इस देह को धारण किया है। बाकी के ‘संचित कर्म’ संस्कार के रूप में पड़े हैं।

किसके घर में जन्म, किसके साथ विवाह और कब मृत्यु होगी, यह सब आप ‘प्रारब्ध’ से ही लेकर आए हैं। जन्म ‘प्रारब्ध’ के अनुसार  हुआ है, शादी भी जिसके साथ होनी है, हो ही जाएगी और मृत्यु भी जब आनी होगी, आ जाएगी। ‘संचित कर्म’ संस्कार के रूप में पड़े हैं, आप वर्तमान में जो कर रहे हैं, वे हैं आपके ‘क्रियमाण कर्म’।

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ज्ञानी हो या अज्ञानी ‘प्रारब्ध’ का प्रभाव सबके जीवन पर पड़ता है। जैसे किसी का ‘प्रारब्ध’ बढिय़ा है, फिर वह भले ही दसवीं पढ़ा हुआ क्यों न हो महीने में हजारों-लाखों कमा लेता है। दूसरी ओर कई होशियार हैं, पढ़े-लिखे भी हैं परंतु ‘प्रारब्ध’ साथ नहीं देता तो सर्टीफिकेट लेकर घूमते हैं, फिर भी नौकरी नहीं मिलती और मन इच्छाओं की तृप्ति में ही लगा रहता है।

हमें अपने वास्तविक लक्ष्य शाश्वत सुख को पाना है। मन को इच्छा तृप्ति में ही लगाए रखें और मति को भी उसी तरह निर्णय करने दें तो फिर चौरासी के चक्र में न जाने कब तक भटकना पड़े इसलिए मन-मति को सदैव परमात्मा में ही लगाने का यत्न करना चाहिए।

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