Edited By Prachi Sharma,Updated: 15 Jan, 2025 01:03 PM
दक्षिण भारत के कर्नाटका राज्य के उडुपी नगर में उडुपी श्री कृष्ण मंदिर स्थित है। यह एक प्रमुख हिन्दू तीर्थ स्थल और धार्मिक केंद्र है।
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Udupi Sri Krishna Temple: दक्षिण भारत के कर्नाटका राज्य के उडुपी नगर में उडुपी श्री कृष्ण मंदिर स्थित है। यह एक प्रमुख हिन्दू तीर्थ स्थल और धार्मिक केंद्र है। यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है और इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है। उडुपी श्री कृष्ण मंदिर का धार्मिक, ऐतिहासिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से विशेष स्थान है और यह दक्षिण भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इस मंदिर की प्रसिद्धि मुख्य रूप से इसकी अद्भुत वास्तुकला और समृद्ध इतिहास से है।
मंदिर का इतिहास
उडुपी श्री कृष्ण मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है। इसे 13वीं शताब्दी में द्रविड़ियन शैली में बनाया गया था। किंवदंती के अनुसार यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने के लिए रचनात्मक रूप से प्रतिष्ठित किया गया था। इस मंदिर का निर्माण एक महान संत और धार्मिक गुरू श्री माधवाचार्य ने किया था। इस मंदिर को लेकर एक कहानी है कि श्री कृष्ण के एक भक्त को मंदिर में अंदर आने की मनाही थी। भक्त कनकदास इस बात से दुःखी हो गए और मंदिर में पीछे बैठ कर भगवान की तपस्या करने लगे। भक्ति के पूजा-पाठ को देख कर भगवान खुश हो गए और दर्शन देने के लिए मठ में स्थित मंदिर के पीछे एक छोटी सी खिड़की बना दी। आज भी भक्त इस खिड़की से भगवान के दर्शन करते हैं।
मंदिर का निर्माण और वास्तुकला
उडुपी श्री कृष्ण मंदिर का निर्माण कर्नाटकी शैली में किया गया है, जो दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला का एक विशिष्ट रूप है। मंदिर का मुख्य गर्भगृह काफी विशाल है और यहां भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति स्थापित है। मूर्ति का आकार छोटा और मनोहक है। यह मूर्ति भगवान श्री कृष्ण के बालरूप को दर्शाती है, जिसमें भगवान की एक छोटी और आकर्षक छवि है। यह मूर्ति भक्तों के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि लाती है।
मंदिर के गर्भगृह के आसपास सुंदर और महीन शिल्पकारी के साथ संगमरमर और पत्थरों से बनी हुई दीवारें हैं। मंदिर के शिखर में एक चमकदार स्वर्णकुंडल है, जो मंदिर की भव्यता को और बढ़ाता है। मंदिर के आसपास की दीवारों पर हिन्दू धार्मिक चित्रकला और शिल्प का अद्भुत मिश्रण देखा जा सकता है।
भक्त फर्श पर खाते है खाना
इस मंदिर को लेकर एक मान्यता है कि भक्त फर्श पर खाना खाते हैं। ऐसा कोई व्यक्ति जब करता है जब उसकी मन्नत पूरी हो जाती है। भगवान के प्रति अपना आभार व्यक्त करने के लिए व्यक्ति ऐसा करता है।
यह प्रथा भक्त के ऊपर निर्भर करती है। इस प्रथा को लेकर यहां किसी भी भक्त को जबरदस्ती नहीं की जाती यह पूरी तरह स्वेच्छा से की जाने वाली प्रथा है।