Edited By Sarita Thapa,Updated: 11 Mar, 2025 04:51 PM

Udupi Sri Krishna Math: कर्नाटक के उडुपी में श्रीकृष्ण मठ बहुत प्रसिद्ध है। यहां भगवान श्रीकृष्ण की एक सुंदर प्रतिमा है जिसे कनकधारा के नाम से जाना जाता है। यहां पर होली का त्यौहार भी बहुत खास अंदाज में मनाया जाता है और भक्त भगवान श्रीकृष्ण का...
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Udupi Sri Krishna Math: कर्नाटक के उडुपी में श्रीकृष्ण मठ बहुत प्रसिद्ध है। यहां भगवान श्रीकृष्ण की एक सुंदर प्रतिमा है जिसे कनकधारा के नाम से जाना जाता है। यहां पर होली का त्यौहार भी बहुत खास अंदाज में मनाया जाता है और भक्त भगवान श्रीकृष्ण का पूजन-अर्चन करने व आशीर्वाद लेने के लिए बड़ी सं या में पहुंचते हैं।
खिड़की से होते हैं दर्शन
यहां भगवान श्रीकृष्ण बालरूप में विराजमान हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार से पहले, एक विशाल गोपुरम वाली एक खिड़की दिखाई देती है, जो द्रविड़ वास्तुकला शैली में निर्मित है। इस खिड़की से भक्त भगवान के दर्शन कर सकते हैं। यहां कोई भी श्रद्धालु सीधा मूर्ति के दर्शन नहीं कर सकता, बल्कि उसे भगवान के दर्शन इसी 9 छिद्रों वाली खिड़की से होते हैं।
माना जाता है कि भगवान ने अपने एक भक्त की भक्ति से खुश होकर यह खिड़की बनाई थी, जिससे वह उनके दर्शन कर सके। इससे जुड़ी पौराणिक कथा दिलचस्प है। किंवदंती के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के एक परम भक्त को मूॢत दर्शन नहीं करने दिया जाता था। तब भक्त मंदिर के बाहर प्रार्थना करने लगा। उससे खुश होकर भगवान ने दीवार में एक छेद बना दिया, जिसके द्वारा भक्त हर रोज मूॢत का दर्शन करता था। बाद में छेद वाले स्थान पर ही खिड़की बना दी गई। होली तथा जन्माष्टमी के मौके पर इस मंदिर की सजावट देखने लायक रहती है। मंदिर को फूलों, दीपों और रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है, भक्तों को भगवान की एक झलक पाने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है।
13वीं शताब्दी में हुई स्थापना
दक्षिण भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक इसको 13वीं शताब्दी में श्री वैष्णव संत श्री माधवाचार्य ने स्थापित किया था। वे द्वैतवेदांत स प्रदाय के संस्थापक थे।
एक बार श्री माधवाचार्य ने समुद्री तूफान में फंसे एक जहाज को अपनी दिव्य शक्तियों से बचाया था। जब जहाज किनारे आया तो उसमें श्रीकृष्ण की मूर्ति मिली। यह समुद्री मिट्टी से ढकी थी। इसके बाद माधवाचार्य ने उस मूर्ति को उडुपी लाकर मंदिर में स्थापित कर दिया।

मनोकामना पूर्ण होने पर जमीन पर रखा प्रसाद खाते हैं श्रद्धालु
मान्यता के अनुसार कई श्रद्धालु फर्श पर प्रसाद परोसने की मांग करते हैं। दरअसल, जिन भक्तों की मनोकामना पूरी हो गई होती है, वे मंदिर के फर्श पर रख कर इसको खाते हैं। इसे प्रसादम या नैवैद्यम कहा जाता है।
श्रद्धालुओं के लिए मंदिर सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है। मठ का क्षेत्र रहने और भक्ति के लिए एक पवित्र स्थान है। इसके आसपास कई मंदिर हैं। सबसे प्राचीन मंदिर 1500 वर्ष पुराने हैं जो लकड़ी और पत्थर से बने हैं।
कुल 8 मठ
मंदिर के चारों ओर 8 मठ स्थित हैं। ये चक्रीय क्रम में बारी-बारी से मंदिर की देखभाल करते हैं। पहले हर एक मठ मंदिर की 2 महीने तक देखभाल करता था लेकिन बाद में स्वामी वदिराज ने इस नियम को संशोधित कर इसे दो साल के लिए कर दिया।
कैसे पहुंचें : मंदिर का करीबी एयरपोर्ट करीब 59 किलोमीटर दूर मेंगलुरु है। करीबी उडुपी रेलवे स्टेशन मंदिर से केवल 3.2 किलोमीटर दूर है। आप टैक्सी या ऑटो किराए पर ले सकते हैं या सरकारी और प्राइवेट बसों से भी मंदिर पहुंच सकते हैं।
