Utpanna Ekadashi: इस विधि से करें उत्पन्ना एकादशी व्रत तभी मिलेगा पूरा पुण्य फल, पढ़ें कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Nov, 2024 06:50 AM

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Utpanna Ekadashi 2024: उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनायी जाती है जो कि 26 नवंबर 2024 के दिन शुक्रवार को मनाई जायेगी। इस दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था। इस रोज श्री हरि विष्णु ने एकादशी को आशीर्वाद देते हुए एक महान व्रत के...

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Utpanna Ekadashi 2024: उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनायी जाती है जो कि 26 नवंबर 2024 के दिन शुक्रवार को मनाई जायेगी। इस दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था। इस रोज श्री हरि विष्णु ने एकादशी को आशीर्वाद देते हुए एक महान व्रत के रूप में बखान किया था। हर माह दो एकादशियों का महत्व हमारे पुराणों में बताया जाता है। जो भी भक्तजन हर महीने आने वाली एकादशी का व्रत आरम्भ करना चाहते हैं तो वह इस उत्पन्ना एकादशी व्रत की श्रृंखला का आरम्भ कर सकते हैं। उत्पन्ना एकादशी के दिन ही श्री हरि विष्णु ने राक्षस मुरा सुर का वध किया था। जिसके बाद उनकी विजय के हर्ष में इस एकादशी को उत्सव के रूप में मनाया गया।

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Utpanna Ekadashi: इस व्रत का फल हजारों यज्ञों से भी अधिक है, पढ़ें कथा

Utpanna Ekadashi Katha: भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी माता की जन्म कथा सुनाई जो कि इस प्रकार है- सतयुग के समय मुर नामक राक्षस ने सभी देवलोक के देवों को परास्त कर स्वर्गलोक को जीत लिया था। तब देवराज इन्द्र ने भगवान श्री हरि विष्णु के समक्ष उस राक्षस के हत्यारों से मुक्ति दिलवाने की प्रार्थना की और श्रीविष्णु व मुर राक्षस के मध्य बहुत वर्षों तक युद्ध चलता रहा तथा महाभयंकर अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग हुआ। फिर इसके बाद दोनों में मल्ल युद्ध हुआ व इस दौरान विष्णु जी को निद्रा आने लगी। श्री हरि बद्रिकाश्रम चले गये और शयन के लिये हेमवती नामक गुफा में चले गये और मुर भी उनके पीछे चला गया व भगवान को शयनावस्था में देखकर प्रहार करने का प्रयास किया। श्रीहरि में से एक सुंदर कन्या निकली व उस कन्या ने मुर राक्षस से युद्ध किया और मुर मूर्छित हो गया, बाद में मुर का सर धड़ से अलग कर दिया गया।

मुर के मरते ही सारे राक्षस भाग गये व सभी देवता इंद्रलोक को गमन कर गये। जब श्रीहरि निद्रा से बाहर आये तो उन्हें युद्ध के बारे में विस्तार से बताया गया व श्रीहरि प्रसन्न हुए और उन्होंने कन्या को वर मांगने को कहा- तब श्रीहरि ने अपने में से उत्पन्न उस कन्या को उत्पन्न नाम से घोषित किया और वरदान दिया कि कोई भी एकादशी तिथि पर तुम्हारा व्रत का पालन विधि पूर्वक करेगा तो मनुष्य के पापों का नाश होकर वह विष्णु लोक को प्राप्त होगा। आज के दिन तेरे और मेरे भक्त समान होंगे यह व्रत मुझे सबसे अधिक प्रिय होगा। तभी से एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के रूप में मनाया जाता है व एकादशी व्रत का पालन किया जाता है।

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Utpanna ekadashi vrat vidhi उत्पन्ना एकादशी व्रत विधि व महत्व: एकादशी का व्रत दशमी की रात्रि से ही आरम्भ हो जाता है तथा द्वादशी के सूर्योदय तक चलता है। इस व्रत के प्रभाव से अश्वमेध यज्ञ के बराबर का पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन चावल, दाल इत्यादि किसी भी प्रकार का अन्न ग्रहण नहीं किया जाता। जल्दी स्नान से निर्वित होकर श्री कृष्ण पूजन किया जाता है फिर भगवान श्री विष्णु जी व एकादशी माता का पूजन किया जाता है। रात्रि में भजन, गायन व सारी रात जागकर प्रभु भक्ति करने का भी विधान है। इस दिन दीप दान व यथाशक्ति अन्नदान का भी विधान है एवं जरूरतमंदों को यथाशक्ति वस्त्र, भोजन व जरूरत का सामान दान देने का भी विधान है। उपरोक्त कथा को पढ़ने व सुनने का भी महत्व होता है, जिससे कि भक्त में भाव उत्पन्न हों तथा उसे पूर्ण फल की प्राप्ति हो सके।

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Sanjay Dara Singh
AstroGem Scientists
LLB., Graduate Gemologist GIA (Gemological Institute of America), Astrology, Numerology and Vastu (SSM)

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