Vaishakh Amavasya: पौराणिक कथा से जुड़ी परंपरा, वैशाख अमावस्या पर पिंडदान क्यों है इतना जरूरी ?

Edited By Prachi Sharma,Updated: 27 Apr, 2025 11:18 AM

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हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख साल का दूसरा महीना होता है। मान्यता है कि इसी माह से त्रेता युग की शुरुआत हुई थी  इसलिए वैशाख अमावस्या का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस दिन धर्म-कर्म, स्नान, दान और पितरों के तर्पण को बहुत ही पुण्यकारी माना जाता...

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Vaishakh Amavasya: हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख साल का दूसरा महीना होता है। मान्यता है कि इसी माह से त्रेता युग की शुरुआत हुई थी  इसलिए वैशाख अमावस्या का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस दिन धर्म-कर्म, स्नान, दान और पितरों के तर्पण को बहुत ही पुण्यकारी माना जाता है।

साल 2025 में वैशाख अमावस्या 27 अप्रैल को आ रही है। इस खास दिन पर पितरों को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न उपाय किए जाते हैं, जिससे उनका आशीर्वाद घर-परिवार पर बना रहता है।

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अमावस्या के दिन व्रत रखकर पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है। विशेषकर वैशाख अमावस्या पर नदी, तालाब या कुंड में स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करें और बहते जल में तिल प्रवाहित करें। साथ ही पितरों के लिए विधिपूर्वक तर्पण करें और ज़रूरतमंदों को दान-दक्षिणा दें।

इसके अतिरिक्त, इस दिन सुबह पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाना चाहिए और शाम को दीपक जलाकर भगवान और पितरों का स्मरण करना चाहिए।

प्राचीन समय की बात है, धर्मवर्ण नाम के एक ब्राह्मण हुआ करते थे। वे बेहद धार्मिक स्वभाव के थे और साधु-संतों की सेवा करना अपना धर्म समझते थे। एक दिन उन्होंने एक महात्मा से भगवान विष्णु की महिमा के बारे में सुना। उन्हें बताया गया कि संसार में कोई भी पुण्य कार्य, भगवान विष्णु के नाम के स्मरण से बड़ा नहीं है। धर्मवर्ण ने इस बात को दिल से स्वीकार कर लिया और सांसारिक जीवन त्याग कर संन्यास ले लिया।

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संन्यास धारण करने के बाद, धर्मवर्ण भटकते-भटकते पितृलोक जा पहुंचे। वहां उन्होंने अपने पितरों को अत्यंत कष्ट में देखा। पितरों ने धर्मवर्ण को बताया कि उनके दुखों का कारण वही हैं क्योंकि अब उनके लिए कोई पिंडदान और तर्पण करने वाला शेष नहीं रहा। पितरों ने उनसे आग्रह किया कि वे फिर से गृहस्थ जीवन अपनाएं, संतान उत्पन्न करें और वैशाख अमावस्या के दिन विधिपूर्वक पिंडदान करें। तभी उनके पितरों को मुक्ति मिल सकेगी।

धर्मवर्ण ने अपने पितरों से वचन लिया कि वे उनकी बात का पालन करेंगे। उन्होंने संन्यास त्यागकर गृहस्थ जीवन में वापस प्रवेश किया, परिवार बसाया और फिर वैशाख अमावस्या के दिन सभी धार्मिक विधियों के साथ पिंडदान कर अपने पितरों को शांति प्रदान की।

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