Valmiki Jayanti: जानें, भगवान वाल्मीकि ने कैसे की महाकाव्य रामायण की रचना

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Oct, 2024 08:11 AM

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Valmiki Jayanti 2024: सामर्थ्यशाली, युग दृष्टा, सर्वशक्तिमान, महाज्ञानी, परमबुद्धिमान वाल्मीकि भगवान को सम्पूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति के नाविक, महाकाव्य रामायण के रचयिता, आदि कवि, महर्षि, दयावान व संस्कृत कविता के पितामह के रूप में जाना व माना...

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Valmiki Jayanti 2024: सामर्थ्यशाली, युग दृष्टा, सर्वशक्तिमान, महाज्ञानी, परमबुद्धिमान वाल्मीकि भगवान को सम्पूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति के नाविक, महाकाव्य रामायण के रचयिता, आदि कवि, महर्षि, दयावान व संस्कृत कविता के पितामह के रूप में जाना व माना जाता है। महाकाव्य रामायण में इन्होंने 24000 श्लोक, 100 आख्यान, 500 सर्ग और उत्तरकांड सहित 7 कांडों का प्रतिपादन किया है। इसमें भारतीय संस्कृति, सभ्यता और समाज की अमूल्य निधियों, महापराक्रम, लोकाचार, क्षमा, सौम्यता तथा सत्यशीलता का वर्णन है। दयावान वाल्मीकि भगवान जी ने सर्वप्रथम विश्व को दया और अहिंसा का पाठ पढ़ाया और शांति का संदेश दिया। वह किसी को दुखी नहीं देख सकते थे। एक दिन जब तमसा नदी के घाट पर नित्य की तरह स्नान के लिए गए तो पास ही क्रौंच पक्षियों का जोड़ा, जो कभी एक-दूसरे से अलग नहीं रहता था, विचरण कर रहा था। 

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उसी समय एक निषाद ने उस जोड़े में से नर पक्षी को बाण से मार डाला। यह देखकर महर्षि का हृदय बहुत दुखी हुआ। उन्होंने निषाद से कहा, ‘‘यह अधर्म हुआ है। हे निषाद तुम्हें अनंत काल तक शांति न मिले क्योंकि तुमने बिना किसी अपराध के इसकी हत्या कर डाली।’’

ऐसा कह कर जब महर्षि ने अपने कथन पर विचार किया तब उनके मन में बड़ी चिंता हुई कि पक्षी के शोक से पीड़ित होकर उन्होंने क्या कह डाला। अंतत: उनकी इस करुणा से महाकाव्य ‘रामायण’ का उदय हुआ।

‘रामायण’ विश्व का अकेला ऐसा ग्रंथ है, जिसमें मानवीय जीवन के प्रभावशाली आदर्श हैं। भगवान वाल्मीकि जी ने रामकथा के माध्यम से मानव संस्कृति के शाश्वत और स्वर्णिम तत्वों का ऐसा चित्र प्रस्तुत किया, जो अनुपम और दिव्य है।

समाज और राष्ट्र को उन्नत तथा स्वस्थ बनाने के लिए व्यक्ति का चरित्र विशेष महत्व रखता है। चरित्र के निर्माण के लिए परिवार के महान योगदान को ‘श्रीमद् वाल्मीकि रामायण’ ने स्वीकार किया है। परिवार एक ऐसा शिक्षा केंद्र है, जहां व्यक्ति स्नेह, सौंदर्य, गुरुजनों के प्रति श्रद्धा, आस्था एवं समाज के सामूहिक कल्याण के लिए व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के त्याग की शिक्षा पाता है।

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महत्वपूर्ण शिक्षाएं व संदेश 
भगवान वाल्मीकि जी की शिक्षाओं का महाकाव्य ‘रामायण’ में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है, जिनमें कर्तव्य परायणता, आज्ञा पालन, वचन पालन, भाई का भाई के प्रति अथाह प्रेम, दुखियों व पीड़ितों के प्रति दया और मानवता व शांति का संदेश देने के साथ-साथ अपने अंदर अहंकार, ईर्ष्या, क्रोध व लोभ रूपी राक्षस को मार कर सहनशीलता अपनाना शामिल है।

भगवान वाल्मीकि जी के अनुसार संसार का मूल आधार ज्ञान ही है। अर्थात शिक्षा के बिना मानव जीवन व्यर्थ और अर्थहीन है क्योंकि जीवन की भूल-भुलैया के चक्रव्यूह से शिक्षित व्यक्ति का ही बाहर निकलना संभव तथा आसान होता है। इनकी शिक्षाओं में अस्त्र-शस्त्र, ज्ञान, विज्ञान, राजनीति तथा संगीत के अलावा आदर्श सेवक, आदर्श राजा, आदर्श प्रजा का ही नहीं, आदर्श शत्रु का भी वर्णन मिलता है।

आज भी इनकी शिक्षाएं पूरी दुनिया को मानवता, प्रेम व शांति तथा सहनशीलता का संदेश देती हैं और हिंसा, शत्रुता व युद्ध से होने वाले भयंकर विनाश के दुष्टपरिणामों से बचने का संकेत कर रही हैं। 

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