Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Sep, 2024 08:28 AM
15 सितम्बर 2024, रविवार भाद्रपद शुक्ल तिथि द्वादशी है। इस दिन को वामन द्वादशी के नाम से जाना जाता है। भगवान की लीला अनंत है और उसी में से एक वामन अवतार है। इसके विषय में श्रीमद् भागवद पुराण में विस्तार से उल्लेख है।
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Vaman Dwadashi 2024: 15 सितम्बर 2024, रविवार भाद्रपद शुक्ल तिथि द्वादशी है। इस दिन को वामन द्वादशी के नाम से जाना जाता है। भगवान की लीला अनंत है और उसी में से एक वामन अवतार है। इसके विषय में श्रीमद् भागवद पुराण में विस्तार से उल्लेख है। हरदोई को हरिद्वेई भी कहा जाता है क्योंकि भगवान ने यहां दो बार अवतार लिया। एक बार हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए नरसिंह भगवान रूप में तथा दूसरी बार भगवान वामन का रूप धारण कर। वामन अवतार को भगवान विष्णु का महत्वपूर्ण अवतार माना जाता है।
वामन अवतार की कथा
वामन अवतार की कथानुसार देव और दैत्यों के युद्ध में दैत्य पराजित होने लगे थे। पराजित दैत्य मृत एवं आहतों को लेकर अस्ताचल चले जाते हैं और दूसरी ओर दैत्यराज बलि इंद्र के वज्र से मृत हो जाते हैं। तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य अपनी मृत संजीवनी विद्या से बलि और दूसरे दैत्यों को भी जीवित एवं स्वस्थ कर देते हैं। राजा बलि के लिए शुक्राचार्य एक यज्ञ का आयोजन करते हैं तथा अग्नि से दिव्य रथ, बाण, अभेद्य कवच पाते हैं। इससे असुरों की शक्ति में वृद्धि हो जाती है और असुर सेना अमरावती पर आक्रमण कर देती है।
देवताओं के राजा इंद्र को दैत्य राज बलि की इच्छा का ज्ञान होता है कि बलि सौ यज्ञ पूरे करने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करने में सक्षम हो जाएगा। इंद्र भगवान तब विष्णु की शरण में जाते हैं। भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और वामन रूप में माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं। दैत्यराज बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद ऋषि कश्यप के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं, जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। तब भगवान विष्णु भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन माता अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं तथा ब्रह्मचारी ब्राह्मण का रूप धारण करते हैं।
महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ उनका उपनयन संस्कार करते हैं। वामन बटुक को महर्षि पुलह ने यज्ञोपवीत, अगस्त्य ने मृगचर्म, मरीचि ने पलाश का दंड, आंगिरस ने वस्त्र, सूर्य ने छत्र, भृगु ने खड़ाऊं, गुरु देव ने जनेऊ तथा कमंडल, माता अदिति ने कोपीन, सरस्वती ने रुद्राक्ष की माला तथा कुबेर ने भिक्षा पात्र प्रदान किए। तत्पश्चात भगवान वामन पिता से आज्ञा लेकर बलि के पास जाते हैं। उस समय राजा बलि नर्मदा के उत्तर-तट पर अंतिम यज्ञ कर रहे होते हैं। वामन अवतारी श्री हरि राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंच जाते हैं। ब्राह्मण बने भगवान विष्णु भिक्षा में तीन पग भूमि मांगते हैं। राजा बलि दैत्यगुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी अपने वचन पर अडिग रहते हुए विष्णु को तीन पग भूमि दान में देने का वचन कर देते हैं।
वामन रूप में भगवान विष्णु एक पग में स्वर्गादि उर्ध्व लोकों को और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लेते हैं। अब तीसरा पग रखने को कोई स्थान नहीं रह जाता। बलि के सामने संकट उत्पन्न हो जाता है कि वामन के तीसरा पग रखने के लिए स्थान कहां से लाए। ऐसे में राजा बलि यदि अपना वचन नहीं निभाए तो अधर्म होगा।
आखिरकार बलि अपना सिर भगवान के आगे कर देते हैं और कहते हैं तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ठीक वैसा ही करते हैं और बलि को पाताल लोक में रहने का आदेश देते हैं। बलि सहर्ष भवदाज्ञा को शिरोधार्य करता है। बलि के द्वारा वचन पालन करने पर भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं और दैत्यराज बलि को वर मांगने को कहते हैं। इसके बदले में बलि रात-दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन मांग लेते हैं, श्री विष्णु अपने वचन का पालन करते हुए पाताल लोक में राजा बलि का द्वारपाल बनना स्वीकार करते हैं।