Edited By Prachi Sharma,Updated: 24 Mar, 2024 10:59 AM
बाबा महाश्मशान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने इस प्राचीन परम्परा को पुनर्जीवित किया, जो पिछले 23 वर्षों से इसे भव्य रूप देकर दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचा
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Varanasi Masan Holi: बाबा महाश्मशान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने इस प्राचीन परम्परा को पुनर्जीवित किया, जो पिछले 23 वर्षों से इसे भव्य रूप देकर दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचा रहे हैं। उन्होंने बताया कि काशी में मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना (विदाई) करा कर अपने धाम काशी लाते हैं। इस दिन को काशीवासी उत्सव के रूप में मनाते हैं और रंगों का त्यौहार होली शुरू हो जाता है।
मणिकर्णिका घाट पर गुलाल की तरह उड़ी चिताओं की राख
बाबा भोलेनाथ की नगरी में सब कुछ अलौकिक, अद्भुत और दुर्लभ ही होता है। रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म होली का पारम्परिक पर्व हजारों आस्थावानों के साथ मनाया गया। हर तरफ चिताओं की राख को अबीर-गुलाल की तरह उड़ाकर भक्तों ने होली खेली। सुबह से ही भक्तजन तैयारी में लग गए थे।
जहां एक तरफ चिताएं जल रही थीं और जीवन के अंतिम सत्य के दर्शन हो रहे थे, वहीं दूसरी तरफ चिता भस्म होली के लिए शहनाई की मंगल ध्वनि बजाई जा रही थी। एक तरफ मौत का शोक, दूसरी तरफ शहनाई की धुन, यह दुर्लभ जुड़ाव काशी की धरती पर ही दिखाई देता है।
मणिकर्णिका घाट पर पहुंचते हैं बाबा भोलेनाथ
बाबा भोलेनाथ भगवान शंकर, जिनको औघड़ की उपाधि दी गई है, को भभूती से अति प्रेम है। मणिकर्णिका तीर्थ पर दोपहर के समय स्नान करते भक्तों का उत्साह देखते ही बन रहा था। माना जाता है कि बाबा दोपहर में स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर पहुंचते हैं। इस मान्यता से यहां पर स्नान का महात्म्य और भी बढ़ जाता है। मान्यता यह भी है कि स्नान के बाद बाबा महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर पहुंचकर चिता भस्म से होली खेलते हैं। यह परम्परा अनादि काल से यहां भव्य रूप से चली आ रही है।
माता मशान काली को चढ़ता है नीला गुलाल
बाबा महाश्मशान नाथ और माता मशान काली (शिव शक्ति) की मध्याह्न आरती कर बाबा को जया, विजया, मिष्ठान व सोमरस का भोग लगाया गया। बाबा व माता को चिता भस्म व नीला गुलाल चढ़ाया गया।
गणों के लिए भगवान शंकर खेलते हैं भस्म होली
रंगभरी एकादशी के उत्सव में सभी शामिल होते हैं, जैसे देवी-देवता, यक्ष, गंधर्व, मनुष्य और जो शामिल नहीं होते, वे हैं बाबा के प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच, किन्नर, दृश्य-अदृश्य शक्तियां, जिन्हें स्वयं बाबा मनुष्यों के बीच जाने से रोक कर रखते हैं। काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच मनाए जाने वाले इस पारम्परिक उत्सव को देखने दुनिया भर से लोग काशी पहुंचते हैं।