वास्तु गुरु कुलदीप सलूजा: वास्तु से जानें, भूस्खलन में किन क्षेत्रों में होती हैं अधिक जान-माल की हानि ?

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Aug, 2024 02:14 PM

vastu guru kuldeep saluja

इन दिनों भारत में उत्तर दिशा से लेकर दक्षिण दिशा तक भारी बारिश के कारण कई स्थानों पर बादल फटने और भूस्खलन (लैण्ड स्लाइड) जैसी प्राकृतिक आपदाएं बहुत अधिक देखने में

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इन दिनों भारत में उत्तर दिशा से लेकर दक्षिण दिशा तक भारी बारिश के कारण कई स्थानों पर बादल फटने और भूस्खलन (लैण्ड स्लाइड) जैसी प्राकृतिक आपदाएं बहुत अधिक देखने में आ रही हैं। इनमें केरल का वायनाड, हिमाचल में मंडी और कुल्लू तथा उत्तराखंड के घनसाली और केदारनाथ आदि शामिल हैं। इन प्राकृतिक आपदाओं से इन क्षेत्रों में जान और माल की भारी तबाही हुई है।

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केरल का वायनाड एक पहाड़ी जिला, जो पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला का ऊंचे-नीचे टिलों वाला हिस्सा है। यहां 29-30 जुलाई, 2024 की रात भारी बारिश के कारण कई भूस्खलन हुए, अभी तक मिली जानकारी के अनुसार, भूस्खलन में 313 लोगों की मृत्यु हुई, कई लोग घायल हैं और करीब 240 से ज्यादा लोग लापता हैं। यहां पहला भूस्खलन मुंदक्कई गांव में, उसके बाद दूसरा भूस्खलन पास के चूरलमाला में हुआ। कुल मिलाकर चार गांव, मुंदक्कई, अट्टामाला, चूरलमाला और कुनहोम, भूस्खलन से प्रभावित हुए। अधिकांश पीड़ित इस क्षेत्र में स्थित चाय और इलायची बागानों के श्रमिक थे। प्राकृतिक सौंदर्य को समेटे रहने वाले इन पहाड़ी क्षेत्रों में अब चारों तरफ दिख रहा है तो सिर्फ और सिर्फ बर्बादी का मंजर। 5 वर्ष पूर्व 2019 में भी वायनाड के इन्हीं इलाकों में भूस्खलन की घटना हुई थी, जिसमें 17 लोगों की मृत्यु हुई थी और कई लोग लापता हुए थे।

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Himachal Pradesh हिमाचल प्रदेश, 31, जुलाई 2024 की रात हिमाचल प्रदेश में 5 जगह बादल फटने से मंडी जिले की उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर बह रही पार्वती नदी में बाढ़ आ गई, इस कारण 5 लोगों की मृत्यु हुई और लगभग 50 लोग अभी भी लापता है। कुल्लू और मंडी में भी भारी तबाही हुई है। रामपुर में भी कई लोगों के लापता होने की खबर है।

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Uttarakhand उत्तराखंड- 31, जुलाई 2024 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के घनसाली में भी बादल फटने के कारण भूस्खलन हुआ, इस कारण यहां भी अब तक 16 लोगों की मृत्यु हुई। बादल फटने से केदारनाथ यात्रा रूट पर 30 मीटर की सड़क मंदाकिनी नदी में समा गई। इस भारी बारिश से उत्तर भारत के कई इलाकों में तबाही मच गई।

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भारी बारिश और बादल फटने के कारण देश के अलग-अलग हिस्सों में प्राकृतिक आपदाएं तो हमेशा से आती रहती हैं, लेकिन सभी जगह जान-माल की ऐसी हानि नहीं होती है, जैसी इन क्षेत्रों में हुई है। इन क्षेत्रों में भारी तबाही और जान-माल की हानि का कारण है इन सभी क्षेत्रों की एक जैसी वास्तु विपरीत भौगोलिक स्थिति।

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जैसे पिछले वर्ष भी 19 जुलाई 2023 को पहाड़ी ढलान पर स्थित महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के इरशालवाड़ी में एक आदिवासी गांव भूस्खलन की चपेट में आ गया था। जहां मूसलाधार बारिश के कारण हुए भूस्खलन में 85 लोगों की मृत्यु हुई थी।  

इसी प्रकार हमारे इन दो पवित्र धार्मिक स्थलों पर भी समय-समय पर ऐसी प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं।

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Amarnath Cave अमरनाथ गुफा- इस गुफा की खोज होने के बाद जब से अमरनाथ यात्रा प्रारंभ हुई है तब से यहां भी प्राकृतिक आपदाएं समय-समय पर आती रही हैं। 1928 में, गुफा के रास्ते में 500 से अधिक तीर्थयात्रियों और खच्चरों की मौत हुई। 1969 में बादल फटने से 40 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई। 1996 में जबरदस्त बर्फबारी के कारण सैंकड़ों तीर्थयात्रियों की मृत्यु हुई। 2012 में सड़क दुर्घटना में 130 यात्रियों की मृत्यु हुई। 2015 में बालटाल में बादल फटने से कई लोगों की मृत्यु हुई। 8 जुलाई, 2022 को पवित्र गुफा मंदिर के बाहर नैऋत्य कोण में लगे तंबुओं में स्थानीय बारिश के कारण आई अचानक बाढ़ ने सैकड़ों तीर्थयात्रियों को बहा दिया। इस हादसे में 16 श्रद्धालुओं के शव मिले और 40 से अधिक तीर्थयात्री लापता हुए।

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Kedarnath Dham केदारनाथ धाम- केदारनाथ धाम में भी सदियों से समय-समय पर प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं। 2013 को उत्तराखण्ड के चौराबाड़ी ग्लेशियर के कुण्ड से निकलती मंदाकिनी नदी में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहा। इस भारी तबाही में मंदिर के आसपास के मकान और कई गांव के गांव बह गए, जिसमें सैकड़ो लोग मारे गए और हजारों लोग लापता हो गए।  

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दुनिया के किसी भी कोने में जहां-जहां ऐसी प्राकृतिक आपदाएं आई हैं, जहां भारी मात्रा में जान और माल की हानि हुई है, उन सभी स्थानों का वास्तु विश्लेषण करने पर एक जैसी ही भौगोलिक स्थितियां देखने को मिलती हैं, जोकि इस प्रकार हैं-
उन सभी स्थानों पर जहां एक ओर उत्तर दिशा या पूर्व दिशा या ईशान कोण में ऊंचे पहाड़, टीले इत्यादि होते हैं अर्थात वहां किसी न किसी प्रकार की ऊंचाई होती है, वहीं दूसरी ओर दक्षिण दिशा या पश्चिम दिशा और नैऋत्य कोण में ढलान होता है, खाई होती है या नदी-नाला होता है अर्थात किसी भी प्रकार से यह क्षेत्र नीचा होता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार, यदि दक्षिण दिशा या पश्चिम दिशा और नैऋत्य कोण में नीचाई हो तथा उत्तर या पूर्व दिशा और ईशान कोण ऊंचे हो तो वहां संतान और सम्पत्ति नष्ट होती है जैसा कि इन क्षेत्रों में हुआ।

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यदि इसके विपरीत भौगोलिक स्थिति होती है, जहां उत्तर या पूर्व दिशा तथा ईशान कोण नीचा हो तथा दक्षिण या पश्चिम दिशा और नैऋत्य कोण में ऊंचाई हो तो वहां ऐसी आपदा आने पर भी जान और माल की ऐसी तबाही नहीं होती है। न तो प्राकृतिक आपदाओं को रोका जा सकता है और न ही भौगोलिक स्थिति बदली जा सकती है। प्रशासन को चाहिए कि ऐसी भौगोलिक स्थिति वाले क्षेत्रों में केवल सुरक्षित स्थान पर ही आबादी को बसने की अनुमति दें, जहां प्राकृतिक आपदा आने पर कम से कम जान और माल की हानि हो।

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