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वासुदेव द्वादशी : इस विधि से करें श्री हरि व देवी लक्ष्मी की साधना, होगी संतान की प्राप्ति

Edited By Jyoti,Updated: 12 Jul, 2019 05:58 PM

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हिंदू धर्म में जिस तरह एकादशी तिथि का अधिक महत्व है। ठीक उसी प्रकार द्वादशी का भी अधिक महत्व है। शास्त्रों में इन दोनों तिथियों की महिमा भी वर्णित है।

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हिंदू धर्म में जिस तरह एकादशी तिथि का अधिक महत्व है। ठीक उसी प्रकार द्वादशी का भी अधिक महत्व है। शास्त्रों में इन दोनों तिथियों की महिमा भी वर्णित है। कल यानि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादवशी तिथि को वासुदेव द्वादशी पर्व के रूप में मनाया जाएगा। बता दें वासुदेव द्वादशी यह देवसयानी एकादशी के ठीक एक दिन बाद मनाई जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन श्रीकृष्‍णा के साथ भगवान विष्‍णु और माता लक्ष्‍मी की पूजा की जाती है। कहा जाता है अषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और अश्विन मास में जो भी यह पूजा करता है उसे मोक्ष की प्राप्‍ति होती है। इसमें देवता वासुदेव की पूजा के साथ-साथ उनके कई विभिन्न नामों, उनके व्यूहों के साथ पाद से सिर तक के सभी अंगों का पूजन होता है।
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ज्योतिष विद्वानों के अनुसार पूजन करने से वासुदेव की स्वर्णिम प्रतिमा को सबसे पहले जलपात्र में रखकर इसो दो वस्त्रों से ढककर पूजन करें और बाद में दान करें। खासतौर पर ध्यान रखें कि इस दिन विष्‍णु सहस्‍त्रनाम का जाप ज़रूर करें, इससे आप की हर समस्‍या का समाधान होगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह व्रत नारद जी ने वसुदेव व उनकी पत्नी देवकी को बताया था। उन्होंने बताया था इस करने से कर्ता के पाप कट जाते हैं और उसे पुत्र की प्राप्ति होती है व नष्ट हुआ राज्य पुन: प्राप्त हो जाता है। इस दिन खासतौर पर भगवान श्रीकृष्‍ण एवं मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत रखने से जाने-अनजाने में हुए पापों का नाश होता है। निसंतानों को संतान की प्राप्ति हो जाती है।
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ऐसे करें मां लक्ष्मी का पूजन-
इस दिन व्रत रखकर दोनों संध्याओं में कमल के पुष्पों के द्वारा षोडषोपचार विधि से मां लक्ष्मी का पूजन कर- लक्ष्मी मंत्रों का कम से कम एक हज़ार बार जप करना चाहिए।

श्रीकृष्ण की पूजन विधि-
वासुदेव द्वादशी के दिन प्रात: जल्द स्नान करके श्वेत वस्त्र धारण कर भगवान श्रीकृष्ण का 16 प्रकार के पदार्थों से पूजन करना चाहिए। मान्यता है इस दिन भगवान को विशेष रूप से हाथ का पंखा और फल-फूल चढ़ाने चाहिए और पंचामृत भोग लगाना चाहिए।
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