Vat Savitri Vrat 2024: सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास है आज का दिन, पति की लंबी उम्र के लिए इस मुहूर्त में करें पूजा

Edited By Prachi Sharma,Updated: 06 Jun, 2024 06:38 AM

Vat Savitri: जैसा कि ज्येष्ठ माह चल रहा है और इस महीने में कई व्रत-त्यौहार पड़ते हैं। जिसमें से एक है वट सावित्री व्रत ये व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास माना गया है। बता दें कि वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को पड़ता है और

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Vat Savitri: जैसा कि ज्येष्ठ माह चल रहा है और इस महीने में कई व्रत-त्यौहार पड़ते हैं। जिसमें से एक है वट सावित्री व्रत ये व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास माना गया है। बता दें कि वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को पड़ता है और ये व्रत आज रखा जा रहा है। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती है। बता दें कि वट सावित्री व्रत का महत्व करवा चौथ के जितना ही होता है। .

सबसे पहले आपको बता दें कि हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ अमावस्या का आरंभ 5 जून को रात 7 बजकर 54 मिनट पर होगा और इसका समापन अगले दिन 6 जून को शाम 6 बजकर 7 मिनट पर होगा। बता दें कि उदया तिथि के चलते वट सावित्री व्रत 6 जून, दिन गुरुवार को रखा जाएगा।

अभिजीत मुहूर्त सुबह- 11 बजकर 52 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक रहेगा।

पूजन का शुभ मुहूर्त- सुबह 5 बजकर 23 मिनट से लेकर 07 बजकर 07 मिनट तक रहेगा और सुबह 10 बजकर 36 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 20 मिनट तक रहेगा।

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आगे आपको बता दें कि वट सावित्री का व्रत विवाहित महिलाएं पति की लम्बी आयु के लिए रखती हैं।  पौराणिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से पति की आयु लम्बी होने के साथ रोग मुक्त जीवन के साथ सुख-समृद्धि की प्राप्ति भी होती है। बता दें कि वट सावित्री के दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और अखंड सौभाग्य के लिए व्रत रखकर वट वृक्ष की पूजा करने के साथ व्रत सावित्री की कथा भी सुनती है। माना जाता है कि वट वृक्ष की पूजा करने से लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य का फल प्राप्त होता है।  यही नहीं अगर दांपत्य जीवन में कोई परेशानी चल रही हो तो वह भी इस व्रत के प्रताप से दूर हो जाते हैं।

तो चलिए आगे जानते हैं, वट सावित्री व्रत की पूजा विधि

इस दिन महिलाएं प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करके लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें।

फिर पूजन सामग्री को एक स्थान पर एकत्रित कर लें और  थाली सजा लें।

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किसी वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की प्रतिमा  स्थापित करें।

फिर बरगद के वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें और पुष्प, अक्षत, फूल, भीगा चना, गुड़ व मिठाई चढ़ाएं।

वट के वृक्ष पर सूत लपेटते हुए सात बार परिक्रमा करें और अंत में प्रणाम करके परिक्रमा पूर्ण करें।

अब हाथ में चने लेकर वट सावित्री की कथा पढ़ें या सुनें।

इसके बाद पूजा संपन्न होने पर ब्राह्मणों को फल और वस्त्रों का दान करें।

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