क्यों ‘विराध’ का वध करने में असमर्थ हो गए थे भगवान श्री राम?

Edited By Jyoti,Updated: 27 May, 2021 11:59 AM

viradh kund in chitrakoot

राम की वनवास यात्रा से जुड़े जिन स्थलों के दर्शन इस बार आपको करवाने जा रहे हैं, उनमें वह स्थान विशेष रूप से शामिल है, जहां राक्षस विराध को ब्रह्मा जी से प्राप्त

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राम की वनवास यात्रा से जुड़े जिन स्थलों के दर्शन इस बार आपको करवाने जा रहे हैं, उनमें वह स्थान विशेष रूप से शामिल है, जहां राक्षस विराध को ब्रह्मा जी से प्राप्त वरदान के कारण उसका वध करने में असमर्थ श्रीराम-लक्ष्मण ने उसकी भुजाएं काट कर उसे भूमि में दबा दिया था। इसके अलावा अत्रि आश्रम के बारे में- 

विराध कुंड तथा पुष्करणी टिकरिया, अमरावती
अमरावती से 3 कि.मी. दूर घनघोर जंगल में एक भयंकर कुंड है। इस कुंड में झांकने पर भी डर लगता है। यहां राक्षस विराध को दफनाया गया था। दंडकारण्य वन में रहने वाले विराध राक्षस ने वनवास मार्ग में श्रीराम, लक्ष्मण तथा सीता माता पर आक्रमण कर दिया था। श्रीराम व लक्ष्मण के तीरों की बौछार से उसका कुछ नहीं बिगड़ा क्योंकि किसी भी अस्त्र से उसकी मौत न होने का वरदान उसे भगवान ब्रह्मा से मिला था। 

यह देखकर श्रीराम व लक्ष्मण ने अपने दैवीय अस्त्रों से विराध के दोनों भुजाएं काट डालीं और वह धरती पर गिर पड़ा। तब श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा कि यह ऐसे नहीं मर सकता इसलिए इसे दबा देना उचित रहेगा। श्रीराम, लक्ष्मण का विराध से लम्बा संघर्ष चला था और विराध वध में दोनों के हथियार तथा वस्त्र भी खून से सन गए थे। टिकरिया तथा मारकुंडी के बीच एक विशाल पुष्करणी कुंड में उन्होंने अपने हथियार तथा वस्त्र धोए थे।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 3/4/5 से 12 परिस्थितिजन्य)

अत्रि आश्रम, सतना
यहां श्रीराम, मां सीता, अत्रि मुनि तथा मां अनुसूईया की अद्भुत भेंट हुई थी। मां अनुसूईया की तपस्या से मां गंगा मंदाकिनी के रूप में 100 धाराओं में यहां प्रकट हुई थीं। आज भी यह दृश्य देखा जा सकता है। अत्रि आश्रम से अमरावती आश्रम जाने के 3 मार्ग हैं। पहला पैदल पहाड़ी पार कर जाना होता है। यह भयंकर मार्ग है। श्री राम इसी मार्ग से गए थे। दूसरा मार्ग चित्रकूट-करवी-मानिकपुर-टिकरिया-अमरावती लगभग 50 कि.मी. पड़ता है। वाहन इस मार्ग से जा सकते है। तीसरा मार्ग कोटि तीर्थ से होकर जाता है जो इस प्रकार है- मोंगर-कोठार-रामनगर-पिंडर-मनगंवा-टिकरिया-जमुनिहाई। इससे भी वाहन जा सकते हैं। यह मार्ग ठीक रहता है।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/117, 118, 119 पूरे अध्याय, मानस 3/2/2, से 3/6/1)

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