वृंदावन में मीठे आनंद का अनुभव करने वाले अवश्य पढ़ें ये सत्य कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Dec, 2021 11:33 AM

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श्री वृंदावन की ब्रज भूमि में रहने वाला चंदन अपने मां-बाप का इकलौता बेटा था। दिन भर वो ब्रज की रज में लोटपोट होता रहता। अपने सखाओं के साथ अठखेलियां करता, सखाओं के साथ गईया चराने जाता

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Vrindavan Story: श्री वृंदावन की ब्रज भूमि में रहने वाला चंदन अपने मां-बाप का इकलौता बेटा था। दिन भर वो ब्रज की रज में लोटपोट होता रहता। अपने सखाओं के साथ अठखेलियां करता, सखाओं के साथ गईया चराने जाता, शाम होने पर यमुना जी में स्नान करके वापस घर  आकर मां-बाप के चरण छूकर प्रसादी पाता। यही उसकी दिनचर्या थी। चंदन में धीरे-धीरे ठाकुर जी के प्रति सखी भाव जागृत होने  लगा। अब वह ठाकुर जी की सखियों की तरह चलता, कभी-कभी सर पर चुनरी ओढ़ता और कभी आंखों में काजल लगा लेता।

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एक दिन उसके मामा जोकि बनारस शहर में रहने वाले थे वृंदावन आए। जब उन्होंने चंदन को सखी भाव में देखा तो हैरान होकर चंदन की मां से बोले कि चंदन तो आपका इकलौता बेटा है। इसको थोड़ा पढ़ा-लिखा लो ताकि वह कुछ काबिल बन सके। चंदन के माता-पिता उसके मामा की बात सुनकर सोचनेे लगे कि हां कह तो यह ठीक ही रहा है और उन्होंने चंदन को उसके मामा के साथ शहर में पढ़ने के लिए भेज दिया। शहर में पहले तो चंदन का मन नहीं लगा लेकिन धीरे-धीरे उसका मन वहां लग गया और बड़े अच्छे से पढ़ाई करने लगा। चंदन अब बड़ा होने लगा। चंदन चाहे शहर में रहकर वहां रच बस गया था लेकिन उसके अंदर ब्रजरज  का रस कूट-कूट कर उसके प्रत्येक रोम-रोम में बसा हुआ था। जो कि उसको कभी भी ब्रज से दूरी महसूस नहीं कराता था इसलिए वह अपने आपको वहां अकेला नहीं समझता था क्योंकि वह अपने अंदर ही पूरे आनंद में रहता था।

चंदन की कक्षा में एक छात्रा उसकी सखा बन गई जिसका नाम ललिता था। ललिता के माता-पिता का बचपन में ही स्वर्गवास हो चुका था। वह अपने नाना-नानी के साथ रहती थी, वह बहुत ही सीधी-साधी लड़की थी। चंदन और ललिता की खूब बनती थी ।स्कूल खत्म होने पर दोनों इकट्ठे ही आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेज में प्रवेश हुए। वहां पर इकट्ठे पढ़े, चंदन की पढ़ाई अब खत्म हो चुकी थी। वह अपने घर वृंदावन धाम जाने के लिए तैयार हुआ तो उसने ललिता को कहा क्या तुम मेरे साथ वृंदावन धाम चलोगी तो ललिता ने अपने नाना-नानी की आज्ञा लेकर चंदन के साथ जाना स्वीकार कर लिया। जब चंदन अपने मामा जी से विदा लेकर वृंदावन धाम पहुंचा तो वृंदावन में कदम रखते ही चंदन के हावभाव बदल से गए वह तो एकदम से सखी भाव में आ गया। उसकी चाल नर से नारी जैसी हो गई। वह अपनी कमर में हाथ रखकर चलने लगा। अचानक से उसकी चाल में आए परिवर्तन को देखकर ललिता हैरान हो कर उसको देखती रही लेकिन वह बोली कुछ नहीं।

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अब चंदन अपने घर पहुंच चुका था। घर जाकर उसने अपने माता-पिता के चरण छुए और ललिता के बारे में उनको बताया ।ललिता की सुंदरता और सादगी को देखकर चंदन के माता-पिता भी बहुत प्रसन्न हुए। काफी दिन हो चुके थे ललिता को वृंदावन आए हुए तो जब उसने चंदन से जाने की आज्ञा मांगी तो चंदन ने अचानक से उसको कहा कि क्या तुम मेरी जीवनसंगिनी बनोगी। अचानक से यह सुनकर ललिता घबरा और लज्जा सी गई और उसने मुस्कुराकर हां मे हामी भर दी। अब उन दोनों की शादी बड़ी धूमधाम से संपन्न हो गई लेकिन ललिता को कभी-कभी चंदन का व्यवहार अजीब सा लगता था। चंदन  कभी-कभी अपनी आंखों में काजल लगा कर सर पर चुनरी ओढ़ कर कमर पर हाथ रख कर न जाने कौन सा नृत्य करता रहता और किसको रिझाता रहता। ललिता को यह सब समझ नहीं आता।

एक दिन उसने पूछा कि आप कभी-कभी ऐसा रूप क्यों धारण कर लेते हो तो चंदन मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखने लगा और तभी उसने मन में कुछ निश्चय किया और कहा कि प्रिय तुम सुबह तैयार हो जाना मुझे तुम्हें कहीं पर लेकर जाना है। ललिता को कुछ समझ नहीं आया लेकिन पति की आज्ञा को मानकर वह जल्दी सुबह उठकर तैयार हो गई। चंदन उसको बरसाना धाम ले गया और किशोरी जी के निज महल में जाकर उसने अपने पांव में घुंघरू बांधकर आंखों में काजल लगा कर कमर पर चुनरी बांधकर नृत्य करना शुरू कर दिया। ललिता उसको देख कर हैरान हो रही थी कि अचानक से चंदन को क्या हो गया है  वह तो बस अपनी धुन में किशोरी जू के आगे नृत्य करता जा रहा था। उसका नृत्य इतना मंत्रमुग्ध करने वाला था कि वहां पर आए सभी भक्तजन ठिठक कर उसके नृत्य का आनंद ले रहे थे। बाहर से कभी-कभी पवन का एक झोंका आकर चंदन के नृत्य का आनंद ले जाता और कभी-कभी सूरज की किरणें अंदर आ कर चंदन के पैरों में बजते नूपुर से निकली राधे राधे की ध्वनि को सुनकर आनंदित हो जाती।

जब चंदन थोड़ा शांत हुआ तो उसने ललिता को बताया कि यह हमारी लाडली सरकार है इनको नमन करो। ललिता को तब भी   कुछ समझ न आया, वह अभी भी असमंजस में थी किशोरी जी को प्रणाम करके वह वापिस वृंदावन आ गए।

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दूसरी और उसी शाम ठाकुर जी और किशोरी जी यमुना जी में नौका विहार करने के लिए निकले। नौका बहुत ही सुंदर तरीके से सजी हुई थी। नौका में चारो ओर कमल और मोगरे के फूल लगे हुए थे। नौका में ठाकुर जी और किशोरी जू आमने-सामने बैठ कर एक दूसरे के रूप रस का पान कर रहे थे और उनके पीछे बैठी एक सखी हाथ में पतवार को लिए नौका को चला रही थी। तभी अचानक से सखी के हाथ से पतवार छूटकर यमुना में चली गई और वो घबरा सी गई और घबराहट के कारण वह अपने पैरों के नाखून से नौका की भूमि को कुरेदने लगी। तभी अचानक से ठाकुर जी का ध्यान पीछे बैठी सखी पर पड़ा और बोले अरे सखी इतनी घबराई हुई क्यों हो उसने हाथ जोड़कर बड़ी विनम्रता से कहा कन्हैया मेरी पतवार यमुना जी में गिर गई है तो ठाकुर जी मुस्कुरा कर बोले इसमें घबराने की क्या बात है और आंखों ही आंखों में उन्होंने किशोरी जी को कुछ इशारा किया। अब एक तरफ से किशोरी जी ने और दूसरी तरफ से ठाकुर जी ने अपने हाथ को यमुनाजी में डाल दिया और वह दोनों अपने दोनों हाथों को पतवार की तरह चलाने लगे।

झुकने के कारण किशोरी जी के सिर पर ओढ़ी चुनरी यमुना जी में भीग रही थी और उधर दूसरी तरफ ठाकुर जी का गले में पड़ा पितांबर यमुना जी में भीग रहा था। हाथों पर पितांबर और चुनरी पर लगा इत्र यमुना जी में घुल मिल गया था। ठाकुरजी और किशोरी जू ने अपने हाथों से उस नाव को किनारे पर लगाया।

अगले दिन ललिता की सास और ससुर चंदन के मामा के यहां कुछ काम से चले गए। अब घर में ललिता और चंदन अकेले थे। चंदन सुबह-सुबह ही अपने काम पर चला गया और ललिता हाथ में मटकी को लेकर यमुना जी से जल भरकर ले आई। आज घर में कोई नहीं था इसलिए जब ललिता ने मटकी में से जल को थोड़ा सा पिया तो उसमें इतनी सुंदर इत्र की खुशबू को महसूस करके  वह बहुत प्रसन्नता से भर गई। धीरे-धीरे उसने उस मटकी में से काफी जल पी लिया और जब थोड़ा सा जल शेष बचा तो उसका ध्यान मटकी में पढ़ा तो वह क्या देखती है कि नोका में बैठकर विहार करते किशोरी जू और लाल जू नजर आ रहे हैं। ललिता घबरा कर दीवार के सहारे टेक लगा कर खड़ी हो गई। उसको कुछ सूझ नहीं रहा था मटकी से पिया हुआ जल धीरे धीरे अब उसके पूरे शरीर में फैल गया था उसकी आंखों में न जाने कैसे अश्रु धारा बहने लगी।

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इतने में चंदन बाहर से आया और अपनी पत्नी की ऐसी दशा देखकर उसने पूछा प्रिय क्या हुआ, ललिता के मुख से कुछ भी नहीं निकल रहा था परंतु उसके होंठ कुछ कहने के लिए फड़फड़ा रहे थे। सांस जोर-जोर से चल रही थी, आंखों की पलकें हिल भी नहीं रही थी। चंदन ने जब उसको झिंझोड़ कर बार-बार पूछा तो उसने मटकी की तरफ इशारा किया। चंदन ने जब मटकी की तरफ देखा तो उसको भी मटकी में ठाकुर जी और किशोरी जी की नौका विहार की छवि दिखाई दी और वह झूम-झूम कर नाचने लगा और ललिता को पकड़कर उसने खींचकर जोर से अपने अंक में भींच लिया और कहने लगा अरे प्रिय आज तुझे ब्रज ने स्वीकार कर लिया है आज तुझे मेरे श्यामा श्याम जू  ने स्वीकार कर लिया है।

ललिता कुछ समझ नहीं पा रही थी और चंदन की तरफ़ देखी जा रही थी तो चंदन ने उसको समझाते हुए कहा कि तुम्हारे कोई पुण्य कर्म थे। जो तुझे ब्रज में कदम रखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ लेकिन ब्रज में कदम रख कर तुम्हें सुख प्राप्त हो रहा था लेकिन उस सुख को आन्नद में बदलने के लिए तुझे किशोरी जी की आज्ञा की प्राप्ति जरूरी थी इसलिए मैं तुझे बरसाना धाम ले गया था ताकि तूझे भी वहां पर किशोरी जी का आशीर्वाद प्राप्त हो। यह उन्हीं की कृपा प्राप्ति है, जो आज तुम्हें ठाकुर जी और किशोरी जी के नौका विहार के दर्शन इस मटकी में प्राप्त हुए हैं क्योंकि आज तुझे ठाकुर जी और किशोरी जू ने अपना लिया है। जो यमुना जी का जल धीरे-धीरे उसके शरीर में प्रवेश हुआ था, वह ठाकुर और किशोरी जी की कृपा की छलनी से उसके पाप नीचे बैठ गए थे और अब उसके पुण्य कर्म ऊपर थे इसलिए ललिता को इस आनंद की प्राप्ति हो चुकी थी।

ब्रज में तो हर कोई आता-जाता रहता है और उसको सुख की प्राप्ति होती रहती है लेकिन जिस पर ठाकुर जी व किशोरी जी की कृपा हो उसको सुख के साथ-साथ ठाकुर जी के आनंद की भी प्राप्ति होती है इसलिए हमें ठाकुर जी के मीठे आनंद को अपने रोम-रोम में प्रवेश कराके उस आन्नद से प्राप्त प्रेम की मृगतृष्णा को इतना बढ़ाएं कि वह प्रेम आंखों में निकलने वाले नमकीन अश्रुओं के द्वारा  बहकर ठाकुर जी और किशोरी जू की मीठी कृपा से सरोबार हो सके।

- राजूू गोस्वामी
सेवाधिकारी श्री बांके बिहारी मंदिर
श्री वृंदावन धाम 

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