Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 May, 2020 07:02 AM
एकादशी के दिन अन्न (गेहूं, चावल आदि) खाने से पाप क्यों लगता है, इसके लिए शास्त्रों में कहा गया है कि—‘ब्रह्महत्या आदि समस्त पाप एकादशी के दिन अन्न में रहते हैं । अत: एकादशी के दिन जो भोजन करता है, वह पाप-भोजन करता है ।’
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
एकादशी के दिन अन्न (गेहूं, चावल आदि) खाने से पाप क्यों लगता है, इसके लिए शास्त्रों में कहा गया है कि—‘ब्रह्महत्या आदि समस्त पाप एकादशी के दिन अन्न में रहते हैं । अत: एकादशी के दिन जो भोजन करता है, वह पाप-भोजन करता है ।’
यदि एकादशी का व्रत न भी कर सकें तो इस दिन चावल और उससे बने पदार्थ नहीं खाने चाहिए।
एकादशी का व्रत क्यों
यह संसार भोग-भूमि और मानव योनि भोग-योनि है इसलिए मनुष्य की स्वाभाविक रुचि भोगों की ओर ही रहती है। मनुष्य यदि भोगों में ही लिप्त रहेगा तो वह इस संसार में आवागमन के चक्र से मुक्त नहीं हो सकेगा । संसार में सब कार्यों को करते हुए भी कम-से-कम पक्ष में एक बार मनुष्य भोगों से अलग रहकर ‘स्व’ में स्थित रहे और अपने मन एवं चित्त को सात्विक रखकर भगवान की प्राप्ति की ओर मुड़ सके इसके लिए एकादशी व्रत का विधान किया गया है।
एकादशी ‘नित्य व्रत’ है इसलिए नित्य-कर्म की तरह सभी वैष्णवों को इस व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को चंद्रमा की एकादश (11) कलाओं का प्रभाव जीवों पर पड़ता है। चन्द्रमा का प्रभाव शरीर और मन पर होता है, इसलिए इस तिथि में शरीर की अस्वस्थता और मन की चंचलता बढ़ जाती है। इसी तरह कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सूर्य की एकादश कलाओं का प्रभाव जीवों पर पड़ता है।
इसी कारण उपवास से शरीर को संभालने और इष्टदेव के पूजन से चित्त की चंचलता दूर करने और मानसिक बल बढ़ाने के लिए एकादशी के व्रत का नियम बनाया गया है। इस व्रत को करने से वात आदि व्याधियों से रक्षा होती है ।
यदि उदयकाल में थोड़ी-सी एकादशी, मध्य में पूरी द्वादशी और अंत में थोड़ी-सी भी त्रयोदशी हो तो वह ‘त्रिस्पृशा’ एकादशी कहलाती है। यह भगवान को बहुत ही प्रिय है। इसका उपवास करने से एक सहस्त्र एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है। दशमी युक्त एकादशी का व्रत कभी नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से सदगति (विष्णुलोक की प्राप्ति) नहीं होती।