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क्या है गुड़ी पर्व, हिंदू धर्म में क्या है इसकी महत्वता ?

Edited By Jyoti,Updated: 02 Apr, 2019 06:33 PM

what is the importance of gudi parva

6 अप्रैल से हिंदू धर्म के प्रमुख माने जाने वाले पर्व चैत्र नवरात्रि का आरंभ हो रहा है। कुछ महान ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन से ही भारतीय नववर्ष की भी शुरूआत हो रही है। मान्यता है कि हिंदू नववर्ष के साथ ही इस दिन हिंदू कैलेंडर का प्रारंभ हुआ था।

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6 अप्रैल से हिंदू धर्म के प्रमुख माने जाने वाले पर्व चैत्र नवरात्रि का आरंभ हो रहा है। कुछ महान ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन से ही भारतीय नववर्ष की भी शुरूआत हो रही है। मान्यता है कि हिंदू नववर्ष के साथ ही इस दिन हिंदू कैलेंडर का प्रारंभ हुआ था। ये भारतीय नववर्ष चैत्र माह से शुरू होकर फाल्गुन माह पर दा कर समाप्त होता है। अंग्रेजी नव वर्ष की तरह भारतीय नववर्ष में भी कुल 12 महीने होते हैं जो इस प्रकार है- चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन।  कहा जाता है कि चैत्र प्रतिपदा के दिन को लेकर भारत के अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित है। कुछ स्थानों पर इसे गुड़ी पड़वा के नाम से जाना जाता है, कुछ जगहों पर वर्ष प्रतिपदा तो वही कहीं इसे उगादी पर्व के रुप में बड़ी धूमधाम व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
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तो आइए जानते हैं चैत्र प्रतिपदा और हिंदू नववर्ष से जुड़ी मान्यताओं के बारे में-
पौराणिक मान्यता-
गुड़ी पड़वा के दिन को लेकर पौराणिक मान्यता है कि इस दिन ही ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था, जिस कारण इसे नवसंवत्‍सर कहा जाता है। तो वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करते हुए पंचांग की रचना की थी। इसलिए इस दिन का बहुत महत्व है। इन मान्यताओं के अलावा गुड़ी पड़वा से एक और पौराणिक कारण जुड़ा हुआ कि शालिवाहन शक का प्रारंभ भी इसी दिन से होता है। शालिवाहन शक को लेकर एक कहानी प्रचलित है, जिसके अनुसार शालिवाहन नामक एक कुम्‍हार के लड़के ने अपने विरोधियों से लड़ने के लिए मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई थी और मंत्रोच्चारण द्वारा उनपर जल छिड़क कर उनमें प्राण डाल दिए। जिसके बाद उस मिट्टी की सेना ने शक्तिशाली दुश्मनों को पछाड़कर उन पर विजय पाई। इसी विजय के प्रतीक के रूप में 'शालिवाहन शक' की शुरुआत मानी गई है।
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क्या है इसका महत्व
बता दें कि 'गुड़ी' का अर्थ विजय पताका से होता है। शास्त्रों के अनुसार गुड़ी पर्व के दिन रामायण काल में भगवान श्री राम ने वानरराज बाली के अत्‍याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई थी। जिसके वहां की प्रजा ने अपने-अपने घरों में विजय पताका फहराया था, जिसे आज के समय में गुड़ी कहा जाता है। उसके बाद से इस दिन को गुड़ी पड़वा के नाम से मनाया जाने वाला है। कहा जाता है कि गुड़ी पड़वा के पर्व पर आंध्रप्रदेश में एक खास प्रकार का प्रसाद बांटा जाता है। यहां के लोगों का मानना है कि जो भी व्यक्ति निराहार रहकर इस प्रसाद को ग्रहण करता है वह निरोगी रहता है और चर्मरोग से पीड़ित इंसान को उससे मुक्ति मिलती है।
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विभिन्न स्थानों में गुड़ी पड़वा-
गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय के लोग इसे संवत्सर पड़वों नाम से मनाते हैं।
कर्नाटक में इसे युगादी नाम पर्व के नाम से मनाया जाता है।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में गुड़ी पड़वा को उगादी नाम से मनाया जाता है।
इसके अलावा कश्मीरी हिंदू इस दिन को नवरेह कह कर संबोधित करते हैं।
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