Edited By ,Updated: 12 Apr, 2017 02:15 PM
प्रत्येक जन्म लग्न में तीस अंश होते हैं जिन्हें दस-दस के भागों में बांट कर तीन रूप दे दिया जाता है। तो, ना, नी, नू, ने, नो, यो, यु, यू कुल नौ वर्णों को मिलाकर तुला राशि का निर्माण होता है।
प्रत्येक जन्म लग्न में तीस अंश होते हैं जिन्हें दस-दस के भागों में बांट कर तीन रूप दे दिया जाता है। तो, ना, नी, नू, ने, नो, यो, यु, यू कुल नौ वर्णों को मिलाकर तुला राशि का निर्माण होता है। इन वर्णों में से तो, ना, नी को प्रथम दश अंश में, नू, ने, नो को द्वितीय दश अंश में तथा यो, यु, यू को तृतीय अंश मानकर तीनों अंशों के जातकों को अलग-अलग देवों की पूजा करने की सलाह ज्योतिष शास्त्र देता है। 23 अक्तूबर से 20 नवम्बर के मध्य जन्म लेने वाले जातकों की राशि वृश्चिक मानी जाती है। इस अवधि को तीन भागों में बांटकर प्रत्येक दशांश के जातकों का जन्म दिनांक निकालने पर प्रत्येक दशांश का अलग-अलग जन्म दिनांक निकल जाता है। इन्हीं जन्म दिनांकों के अनुसार जातक को अपने ‘इष्टदेव’ मानने की सलाह ज्योतिष शास्त्र देता है। इन तिथियों के दौरान जन्मे फिल्म सितारों में ऐश्वर्य राय बच्चन, शाहरुख खान, सुष्मिता सेन, असिन व रवीना प्रमुख हैं।
23 अक्तूबर से 01 नवम्बर के मध्य में जन्म लेने वाले जातकों का जन्माक्षर तो, ना, नी से प्रारम्भ होता है। इन्हें वृश्चिक राशि के प्रथम दशांश का जातक माना जाता है जिनका नाम तो, ना, नी वर्णाक्षरों से प्रारंभ हो या जिनका जन्म 23 अक्तूबर से 01 नवम्बर के बीच हुआ हो, उन स्त्री-पुरुषों के इष्टदेव ‘हनुमान’ होते हैं। इन्हें हनुमान की आराधना-साधना करते रहने से त्वरित अभीष्ट की प्राप्ति होती है। वृश्चिक राशि के प्रथम दशांश के जातकों को हनुमान चालीसा, हनुमानाष्टक, बजरंगबाण, सुन्दरकांड, आदि का नियमित पाठ करना चाहिए। ॐ हुं हनुमते नम:’, ॐ हुं हुं महावीराय नम:’ या ‘जै जै जै हनुमान गुसाईं, कृपा करहुं गुरू देव की नाईं’ मंत्रों में से किसी एक मंत्र का नियमित जाप करते रहने से हर प्रकार के संकटों का शमन होता है।
मंगलवार एवं शनिवार का व्रत करके पंचमुखी हनुमान जी की मूर्ति के समक्ष सुन्दरकांड का पाठ करना एवं उन्हें सिन्दूर-घृत चढ़ाना अनेक कष्टों को नाश करता है। ऐसे जातकों को चांदी के ताबीज में ‘हनुयंत्र’, ‘दूतयंत्र’, या ‘बजरंग यंत्र’ बनवाकर अवश्य ही धारण करना चाहिए। वृश्चिक राशि के प्रथम दशांश वाले जातकों का मन अत्यंत ही कोमल एवं भावुक होता है, अत: उन्हें दूसरों से सावधान रहना चाहिए। वे शीघ्र ही छले जा सकते हैं। युवतियों को केसर का टीका लगाना चाहिए। मंगलीदोष एवं कालसर्प दोषों से भी यह विधि बचाव करती है।
2 नवम्बर से 11 नवम्बर के बीच जन्म लेने वाले जातकों का जन्माक्षर नू, ने, नो माना जाता है। नू, ने, नो वर्णाक्षरों से प्रारंभ होने वाले जातकों की राशि वृश्चिक होती है। इन स्त्री-पुरुषों के इष्ट ‘नारायण’ होते हैं। लक्ष्मीपति नारायण की अर्चना-उपासना-साधना आदि करने से तथा संबंधित यंत्र के धारण करने से इस दशांश में जन्म लेने वाले जातकों को अभीष्ट की प्राप्ति होती है। वृश्चिक राशि के द्वितीय दशांश में जन्म लेने वाले या नू, ने, नो अक्षरों से नाम का प्रारंभ होने वाले स्त्री-पुरुषों को प्रतिमाह श्री सत्यनारायण कथा का श्रवण करना, विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करना, गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ करना, हितकारक है। ॐ नमो भगवते नारायणाय’, ॐ नारायणाय नमो नम:’ आदि में से किसी एक मंत्र का जाप करते रहना श्रेयस्कर है। इन जातकों को ‘नारायण यंत्र, ‘क्षीर शयनी यंत्र’ या गोपाल यंत्र’ में से किसी एक यंत्र को अवश्य ही धारण करना चाहिए।
नू, ने, नो जन्माक्षरों से प्रारंभ नाम वाली युवतियों का वैवाहिक जीवन प्राय: कष्टमय बीतता है। विवाह पूर्व भी इन्हें अनेक मानसिक-शारीरिक परेशानियां आ सकती हैं। इन्हें एक बिल्वपत्र नित्य प्रात: काल चबाकर खाना चाहिए। युवकों को नित्य ग्यारह बिल्वपत्र शिवलिंग पर चढ़ाते रहना चाहिए। 12 नवम्बर से 20 नवम्बर के बीच जन्म लेने वाले ऐसे जातकों को जिनका नाम ‘यो, यु, यू’ से प्रारंभ होता है उनकी राशि वृश्चिक होती है और ये तृतीय दशांश के जातक माने जाते हैं। इनकी इष्ट ‘दुर्गा’ होती हैं जिनकी आराधना-पूजादि से इनकी सभी कामनाएं सिद्ध होती हैं। वृश्चिक रात्रि के तृतीय दशांश में जन्म लेने वाले स्त्री-पुरुषों को दुर्गासप्तशती दुर्गास्तोत्र, दुर्गाचालीसा, कील, कवच, अर्गला स्तोत्र आदि में से किसी भी एक का नियमित पाठ करते रहना चाहिए। नवरात्र के दिनों में व्रतपूर्वक गायत्री मंत्र का जप या ॐ ऐं हऊीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ मंत्र का जाप करना चाहिए। देवी मनसा की पूजा करने से विशेष लाभ होता है। ‘चंडी यंत्र’, ‘जननी यंत्र’ ‘जगदम्बा यंत्र’ में से किसी एक यंत्र का धारण अवश्य करना चाहिए।
इस दशांश में जन्म लेने वाले स्त्री-पुरुषों का चरित्र अत्यन्त पवित्र होता है, साथ ही उनमें त्याग की भावना कूट-कूटकर भरी होती है। नित्य पांच तुलसी पत्ते बिना चबाए निगलते रहने से बहुत ही लाभ होता है।