Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 May, 2024 08:44 AM
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भगवान ‘दुध्र’ हैं। परमात्मा पुरुषों के लिए ‘दुर्धरणीय’ हैं। उनके दुष्टों को रुलाने वाले रुद्ररूप को पापी पुरुष सहन नहीं कर
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भगवान ‘दुध्र’ हैं। परमात्मा पुरुषों के लिए ‘दुर्धरणीय’ हैं। उनके दुष्टों को रुलाने वाले रुद्ररूप को पापी पुरुष सहन नहीं कर सकते। जो पापी हैं, उनके कार्यों में भगवान का यह दुध रूप सफलता नहीं आने देता। पापी की सफलता स्थायी नहीं होती। उसे अंत में गिरना ही होगा और फिर कुछ अर्से के लिए दिखने वाली यह सफलता भी उसके पूर्व संचित पुण्य कर्मों का ही फल होती है, पाप कर्मों का नहीं।
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सफलता तो उन्हीं को प्राप्त होती है जो धर्म के सत्यमय मार्ग पर चलते हैं क्योंकि भगवान स्वयं सत्य हैं। मंत्र कहता है वे निश्चय से सत्य हैं। भगवान के सत्य से ही सारा विश्व भगवान हम सदा आपके प्यारे बने रहें प्रार्थना करता है।
आप से सच्चा प्रेम होने पर आपके सत्य, न्याय, दया, नियम परायणता, ज्ञान, बल, सहनशीलता, प्रयत्न आदि गुण हम में भी आ जाएंगे। प्रेमपात्र के गुण प्रेमी में आना स्वाभाविक ही हैं और जब ये गुण हम में आ जाएंगे तो हमारे कार्यों में आप सफलता देंगे ही, क्योंकि आप तो पापी के कार्यों में ही सफलता नहीं देते।
इस प्रकार आपके सच्चे प्यारे बनने पर हम हर एक क्षेत्र में उत्तम पराक्रमी वीर हो जाएंगे। शारीरिक बल के क्षेत्र में, मानसिक विद्या-बुद्धि के क्षेत्र में, आत्मिक उन्नति के क्षेत्र में, व्यावहारिक उन्नति के क्षेत्र में सभी क्षेत्रों में हम उत्कृष्ट वीर हो जाएंगे और तब हमारी वह स्थिति हो जाएगी जिसमें ज्ञान के और यज्ञ के प्रवचन करेंगे, उन्हीं के विषय की बातें किया करेंगे। हम सदा किसी न किसी बात के ज्ञान के ग्रहण में लगे रहेंगे और हमारा यह ज्ञान ऐसा होगा जिससे हमारे यज्ञों अर्थात भांति-भांति के लोकोपकारी पवित्र व्यवहारों की सिद्धि होगी। हारा ज्ञान लोक सेवा में लगेगा।
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हे इंद्र! हमें अपना प्यारा बना।
सत्यनारायण भगवान सत्य पर आश्रित लोगों के कार्यों में ही सफलता दे सकते हैं। असत्य के तो वे घोर द्वेषी हैं। भगवान को ‘सत्य’ कहने का एक और भाव भी है। वह यह है कि भगवान एक कल्पना की वस्तु नहीं हैं। वे सत्य वस्तु हैं। उनकी त्रैकालिक सत्ता है। वे पहले भी सदा रहे हैं, अब भी हैं, और भविष्य में भी सदा रहेंगे।
मंत्र में कहा है कि वे निश्चय से सत्य हैं। कोई नास्तिक और संशयवादी भले ही अपने अधूरे ज्ञान के भरोसे बड़े से बड़े ज्ञानी का ज्ञान भी वस्तु तत्व के विषय में असल में अधूरा है-भले ही परमात्मा की सत्ता के विषय में संदेह प्रकट करते रहें, पर वास्तविक निश्चित सच्चाई यह है कि जगत के निर्माता, संचालक और अंत में प्रलयकर्ता भगवान एक त्रैकालिक सत्य वस्तु हैं।
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