किसने सबसे पहली बार सुनी थी भागवत कथा?

Edited By Jyoti,Updated: 22 Dec, 2018 05:07 PM

who was the first person to listen bhagwat katha

हिंदू धर्म में श्रीमद्भागवत ग्रंथ को कितना महत्व दिया जाता है, कोई इस बात से अंजान नहीं है। इसकी महत्वता को देखते हुए ही लगभग हर कोई अपने घर इसका पाठ आदि करवाने लगा है।

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हिंदू धर्म में श्रीमद्भागवत कथा को कितना महत्व दिया जाता है, कोई इस बात से अंजान नहीं है। इसकी महत्ता को देखते हुए ही लगभग हर कोई अपने घर इसका पाठ आदि करवाने लगा है। श्रीमद्भागवत कथा सुनने के लिए लोग बड़े से बड़े संत को बुलाते हैं, जिसे सुनने के लिए लाखों श्रद्धालु आते हैं, लेकिन ये कोई नहीं जानता होगा कि आख़िर श्रीमद्भागवत कथा सुनने की प्रथा को शुरू किसने किया था। तो चलिए आज हम आपको इससे जुड़े एक ऐसे प्रसंग के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में किसी न सोचा भी नहीं होगा।

PunjabKesari, Bhagwat katha पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रृंगी अपने पिता ऋषि शमीक के आश्रम में अन्य ऋषिकुमारों के साथ रहकर अध्ययन कर रहे थे। एक दिन की बात है कि सब विद्यार्थी जंगल गए हुए थे और आश्रम में शमीक ऋषि समाधि में अकेले बैठे हुए थे। तभी अचानक वहां प्यास से व्याकुल राजा परीक्षित पहुंचे। वो प्यास से बहुत व्याकुल थे और आश्रम में पानी खोजने लगे। जब उन्हें कहीं से पानी नहीं मिला तो उन्होंने समाधि में बैठे शमीक ऋषि को प्रणाम कर विनम्रता से कहा- मुझे प्यास लगी है, कृपा मुझे पानी दीजिए। राजा के दो-तीन बार कहने पर भी ऋषि न उन्हें कोई जवाब नहीं दिया, उन्हें बहुत बुरा लगा और तो और उन्हें लगा कि ऋषि ध्यान का ढोंग कर रहे हैं। क्रोध में आकर राजा परीक्षित ने एक मरा सांप उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया और वहां से चले गए परंतु उन्हें आश्रम से जाते हुए एक ऋषि कुमार ने देख लिया और जाकर श्रृंगी को इसके बारे में खबर दी। सभी राजा के स्वागत के लिए आश्रम पहुंचे। परंतु जब तक सब पहुंचे राजा वहां से जा चुके थे और ध्यान में बैठे शमीक ऋषि के गले में मरा सांप पड़ा था। ये देखकर ऋषि श्रृंगी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने हाथ में पानी लेकर परीक्षित को शाप दे दिया कि मेरे पिता का अपमान करने वाले राजा परीक्षित की मृत्यु आज से सातवें दिन नागराज तक्षक के काटने से होगी। इसके बाद ऋषिकुमारों ने ऋषि शमीक के गले से सांप निकाला जिस बीच शमीक की समाधि टूट गई। शमीक ऋषि ने पूछा, क्या बात है? तब श्रृंगी ने सारी बात बताई।

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शमीक बोले, बेटा, राजा परीक्षित के साधारण अपराध के लिए तुमने जो सर्पदंश से मृत्यु का भयंकर शाप दिया है, यह बहुत बुरा है। हमें यह शोभा नहीं देता। इसका मतलब ये है कि अभी तुझे ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ। अब तू भगवान की शरण जा और अपने अपराध की क्षमा मांग। राजा परीक्षित को राजभवन पहुंचते-पहुंचते अपनी गलती का अहसास हो चुका था। थोड़ी देर बाद शमीक ऋषि का एक शिष्य राजा परीक्षित के पास पहुंचा और उसने कहा, राजन, ब्रह्मसमाधि में लीन शमीक ऋषि की ओर से आपका उचित सत्कार नहीं हो पाया, जिसका उन्हें बहुत दुख है। किंतु, आपने बिना सोचे-समझे जो मरे सांप को उनके गले में डाल दिया। इस कारण उनके पुत्र श्रृंगी ने आपको आज से सातवें दिन सांप काटने से मृत्यु का शाप दे दिया है जो  असत्य नहीं होगा। इसलिए आप मेरी बात मानें तो सात दिन तक अपना पूरा समय ईश्वर-चिंतन में ताकि आपको मोक्ष मिल सके। ये सुनकर राजा को संतोष हुआ कि मेरे द्वारा हुए अपराध के लिए मुझे उचित दंड मिलेगा। इसके बाद राजा परीक्षित व्यासपुत्र शुकदेव मुनि के पास पहुंचे और उन्हें भागवत कथा सुनाने के लिए कहा। शुकदेवजी ने परीक्षित को सात दिन भागवत-कथा सुनाई। कहा जाता है कि तभी से भागवत सप्ताह सुनने की परंपरा प्रारंभ हुई थी।
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