Edited By Lata,Updated: 27 Nov, 2018 05:24 PM
भारत में गणेश जी से अधिक ‘लोकप्रिय’ शायद ही कोई देवता होगा। हर काम का शुभारंभ ‘श्री गणेशाय नम:’ से होता है। मान्यता है कि वह विघ्नहर्ता हैं, मार्ग की सारी अड़चनों को दूर करने वाले हैं। विनायक हैं जिन्हें किसी दूसरे का आदेश मानने की मजबूरी नहीं है।
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भारत में गणेश जी से अधिक ‘लोकप्रिय’ शायद ही कोई देवता होगा। हर काम का शुभारंभ ‘श्री गणेशाय नम:’ से होता है। मान्यता है कि वह विघ्नहर्ता हैं, मार्ग की सारी अड़चनों को दूर करने वाले हैं। विनायक हैं जिन्हें किसी दूसरे का आदेश मानने की मजबूरी नहीं है। वह गणाधिपति हैं अर्थात गणतंत्र की आत्मा का मूर्तिमान स्वरूप!
वह गजानन हैं क्योंकि उनके शरीर को हाथी का सिर सुशोभित करता है, जो प्रतीक है असाधारण स्मरणशक्ति का और अपार जानकारियों के भंडार का। गणेश जी को बुद्धि-ज्ञान-विवेक का स्वामी माना जाता है परन्तु अक्सर हम इस बात की अनदेखी करते हैं कि ये सारे विशेषण गणेश की छवि एक आदर्श शिक्षक की ही प्रस्तुत करते हैं।
वह प्रसंग कम रोचक नहीं, जब महाभारत की कथा को लिखने के लिए वेदव्यास को किसी की आवश्यकता थी। जब गणेश जी का नाम सुझाया गया, तब उन्होंने यह काम इस शर्त पर स्वीकार किया कि ऋषि व्यास बोलना शुरू करने के बाद सोचने के लिए विश्राम नहीं करेंगे। यह आनाकानी वाली शरारत नहीं थी- उस अनुशासन का उदाहरण था, जिसके बिना कोई भी शिक्षक-अध्यापक या उसका शिष्य-विद्यार्थी सफल नहीं हो सकता।
गणेश जी को बुद्धि के साथ-साथ सिद्धि का स्वामी तथा दाता भी माना जाता है। यह इस बात को स्पष्ट करता है कि सरस्वती और लक्ष्मी का वास्तव में कोई बैर नहीं। बुद्धि के अभाव में संयोगवश कुछ प्राप्त हो भी जाए तो वह समृद्धि टिकती नहीं है। विद्या ही अक्षय धन है। ‘अष्ट सिद्धि’ ‘नव निधि’ की चमक-दमक में आज हम इस बात को भूल चुके हैं।
हाथी के सिर वाले भारी-भरकम गजानन गोविंद से पहले पूजे जाने योग्य समझे गए हैं। वे लम्बोदर हैं- सारा ज्ञान पचा चुके हैं, एकदंत हैं तो इसलिए कि टूटे दांत को उन्होंने लेखनी बना लिया है। एक हाथ में अंकुश है तो एक और हाथ में पाश। गणेश जी को छोटे से चूहे पर विराजमान दिखाया जाता है। हाथी जैसी सूंड को ही लें-यह एक ऐसा अंग है जिसका प्रयोग भारी से भारी वस्तु को ढोने के लिए या संहारक वार के लिए किया जा सकता है। बड़े पंखे जैसे कान समझाते हैं सबकी सब बातें सुनने की उपयोगिता।
गणेश पुराण के एक अन्य प्रसंग के अनुसार गणेश जी ने अपने माता-पिता को ही अपना संसार अर्थात सभी कुछ मान कर परिक्रमा कर डाली। यह देख माता पार्वती जी ने कहा कि, "समस्त तीर्थों में किया हुआ स्नान, सम्पूर्ण देवताओं को किया हुआ नमस्कार, सब यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब प्रकार के व्रत, मन्त्र, योग और संयम का पालन ये सभी साधन माता-पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर भी नहीं हो सकते इसलिए मेरा पुत्र गणेश सैकड़ों पुत्रों और सैकड़ों गणों से भी बढ़कर है।"
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