Mahakumbh: प्रयागराज को ही क्यों कहा जाता है तीर्थराज, पढ़ें अद्भुत महिमा के साथ कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Jan, 2025 03:11 PM

why is prayagraj called the king of pilgrimages

Mahakumbh 2025: प्रयागराज सनातन संस्कृति के प्राचीनतम नगरों में से एक है। प्रयागराज की महत्ता और प्राचीनता का विवरण ऋगवेद से लेकर पुराणों और रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्यों में मिलता है। सनातन के आराध्य प्रभु श्री राम के जीवन और वनवास प्रसंग से...

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Mahakumbh 2025: प्रयागराज सनातन संस्कृति के प्राचीनतम नगरों में से एक है। प्रयागराज की महत्ता और प्राचीनता का विवरण ऋगवेद से लेकर पुराणों और रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्यों में मिलता है। सनातन के आराध्य प्रभु श्री राम के जीवन और वनवास प्रसंग से प्रयागराज का विशेष संबंध है। रामायण में वर्णन मिलता है कि वनवास के लिए अयोध्या से निकल कर प्रभु श्रीराम प्रयागराज के श्रृंगवेरपुर धाम पहुंचे थे। वहां उन्होंने रात्रि निवास कर अपने बाल सखा निषादराज की मदद से गंगा नदी पार की थी और वहां से भरद्वाज मुनि के आश्रम पहुंचे थे।

Mahakumbh Prayagraj

वाल्मीकि रामायण के अनुसार माघ के महीने में त्रिवेणी संगम स्नान का यह रोचक प्रसंग कुंभ के समय साकार होता है। साधु-संत प्रात:काल संगम पर स्नान करके कथा कहते हुए ईश्वर के अलग-अलग स्वरूपों की चर्चा करते हैं। कुंभ भारतीय संस्कृति का महापर्व है और इस पर्व पर स्नान, दान, ज्ञान मंथन के साथ ही अमृत प्राप्ति की बात भी कही गई है। कुंभ का पौराणिक ज्योतिषी के साथ-साथ वैज्ञानिक आधार भी है। इसका वर्णन भारतीय संस्कृति के आदि ग्रंथ वेदों में भी मिलता है।

Mahakumbh Prayagraj
प्रयागराज की महत्ता वेदों और पुराणों में विस्तार से बताई गई है। एक बार शेषनाग से ऋषियों ने पूछा कि प्रयागराज को तीर्थराज क्यों कहा जाता है ?

Mahakumbh Prayagraj
इस पर शेषनाग ने उत्तर दिया कि एक ऐसा अवसर आया, जब सभी तीर्थों की श्रेष्ठता की तुलना की जाने लगी, उस समय भारत में सभी तीर्थों को तुला के एक पलड़े पर रखा गया और प्रयागराज को दूसरे पलड़े पर, फिर भी प्रयागराज का पलड़ा भारी पड़ गया। दूसरी बार सप्तपुरियों को एक पलड़े में रखा गया और प्रयागराज को दूसरे पलड़े पर, वहां भी प्रयागराज वाला पलड़ा भारी रहा। इस प्रकार प्रयागराज की प्रधानता होने से इसे तीर्थों का राजा कहा जाने लगा। इस पावन क्षेत्र में दान, पुण्य, कर्म, यज्ञ आदि के साथ-साथ त्रिवेणी संगम का अति महत्व है।

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रामायण के अनुसार यह संपूर्ण विश्व का एकमात्र स्थान है जहां तीन-तीन नदियां गंगा, यमुना, सरस्वती मिलती हैं, यहीं से अन्य नदियों का अस्तित्व समाप्त होकर आगे एकमात्र नदी गंगा का महत्व शेष रह जाता है। इस भूमि पर स्वयं ब्रह्मा जी ने यज्ञ आदि कार्य संपन्न कर ऋषि और देवताओं ने त्रिवेणी संगम में स्नान कर अपने आपको धन्य माना।

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मत्स्य पुराण के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने एक बार मार्कंडेय जी से पूछा, ऋषिवर यह बताएं कि प्रयागराज क्यों जाना चाहिए और वहां संगम स्नान का क्या फल है? इस पर मार्कंडेय जी ने उन्हें बताया कि प्रयागराज के प्रतिष्ठानपुर से लेकर वासुकी के हृदयोपरिपर्यंत कंबल और अश्वतर दो भाग हैं और बहुमूलक नाग है। यही प्रजापति का क्षेत्र है जो तीनों लोकों में प्रसिद्ध है।

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