Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 May, 2018 02:36 PM
उपनिषद वैदिक सनातन साहित्य के श्रुति धर्म-ग्रंथ हैं। उपनिषदों को वेदांत भी कहा गया है। उपनिषद का साधारण अर्थ है विद्या की प्राप्ति के लिए शिष्य का गुरु के समीप बैठना। वेद के मर्म का ज्ञान करवाने वाला उपनिषद ऋषि और शिष्य का संवाद है।
उपनिषद वैदिक सनातन साहित्य के श्रुति धर्म-ग्रंथ हैं। उपनिषदों को वेदांत भी कहा गया है। उपनिषद का साधारण अर्थ है विद्या की प्राप्ति के लिए शिष्य का गुरु के समीप बैठना। वेद के मर्म का ज्ञान करवाने वाला उपनिषद ऋषि और शिष्य का संवाद है। आध्यात्मिक चिंतन भारतीय सनातन संस्कृति का मूल आधार रहा है। आधुनिक समय में मुख्य रूप से ग्यारह उपनिषद माने गए हैं। इनमें से कठोपनिषद नचिकेता और यम के बीच संवाद है।
नचिकेता एक छोटे बालक थे। एक समय उनके पिता उद्दालक ने एक यज्ञ में सभी सांसारिक वस्तुओं को दान करना था। तब नचिकेता ने अपने पिता से प्रश्न किया कि सांसारिक वस्तुओं में तो मैं भी शामिल हूं। आप मुझे किसे दान कर रहे हैं। तब पिता ने क्रोधवश यम का नाम लिया। बालक ने अपने पिता की बात को गंभीरता से लिया। अपने पिता के सत्य वचन धर्म की रक्षा के लिए नचिकेता यमलोक पहुंच गए। उन्हें यमराज नहीं मिले। अपनी पितृ-भक्ति और कठोर संकल्प से प्रेरित बालक नचिकेता ने तीन दिन तक बिना अन्न, जल ग्रहण किए यमराज की प्रतीक्षा की।
जब यमराज वापस लौटे तो वह बालक नचिकेता की कर्तव्य-परायणता से अत्यंत प्रभावित हुए और उस बालक से तीन वर मांगने को कहा। बालक नचिकेता ने प्रथम वर में पिता का स्नेह, दूसरे वर में अग्रि तत्व का ज्ञान तथा तीसरे वर में आत्मज्ञान के विषय में प्रश्न किए। यमराज ने आत्मज्ञान के स्थान पर सांसारिक सुख-सुविधाएं प्राप्त करने के लिए कहा। परंतु बालक नचिकेता सांसारिक सुखों को नाशवान जानकर आत्मज्ञान प्राप्त करने पर ही अडिग रहे।
नचिकेता और यमराज के बीच हुए संवाद अध्यात्म जगत में कठोपनिषद के नाम से जगत प्रसिद्ध है। यमराज ने प्रसन्नतापूर्वक आत्मा के स्वरूप को विस्तारपूर्वक समझाया कि यह अजन्मा है, नित्य है, शाश्वत है, सनातन है, शरीर के नाश होने पर भी बना रहता है, जो मनुष्य मृत्यु से पूर्व इस ज्ञान को जान लेते हैं, वे मुक्त हो जाते हैं। भगवद गीता भी समस्त वेदों और उपनिषदों का सार है। उसमें भी भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को यही ज्ञान प्रदान कर रहे हैं।
‘‘न जायते म्रियते व कदाचिन्, नायं भूत्वा भविता वा न भूय:। ’’
अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।’’
इसका अर्थ वही है जो कठोपनिषद में यमराज अपने उपदेश में नचिकेता को समझा रहे हैं कि आत्मज्ञान को तर्क-वितर्क से नहीं जाना जा सकता। यह ज्ञान कल्याण मार्ग चुनने वाले ज्ञानियों के लिए है, सांसारिक विषयों में आसक्त मनुष्यों के लिए नहीं।
इस प्रकार यमराज से आत्मज्ञान प्राप्त कर उद्दालक पुत्र नचिकेता वापस लौटे तो तपस्वी समुदाय ने बालक नचिकेता का स्वागत किया। बालक नचिकेता की पितृ भक्ति, आत्मज्ञान के प्रति जिज्ञासु भाव, उनका यमराज के साथ हुआ आत्मज्ञान का संवाद चिरकाल से वेदांत-दर्शन के रूप में अपनी अद्भुत विलक्षण शैली के रूप में सुशोभित हो रहा है और तत्वज्ञानियों का मार्गदर्शन कर रहा है।