Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Nov, 2019 08:20 AM
कठोपनिषद में नचिकेता की जिज्ञाता आप देखें। वह कौमार्यावस्था का बालक उसके हृदय में सत्य के खोज के प्रति आकर्षण हुआ कि सत्य क्या है। आश्चर्य की बात है, क्या मृत्यु के बाद भी आत्मा रहती है। नचिकेता ने यमराज से प्रश्र किया :
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कठोपनिषद में नचिकेता की जिज्ञाता आप देखें। वह कौमार्यावस्था का बालक उसके हृदय में सत्य के खोज के प्रति आकर्षण हुआ कि सत्य क्या है। आश्चर्य की बात है, क्या मृत्यु के बाद भी आत्मा रहती है। नचिकेता ने यमराज से प्रश्र किया :
ये यं प्रेते विचिकित्सा मनुष्येऽस्तीत्येके नायमस्तीति चैके।
मनुष्य के शरीरांत के बाद कोई कहता है आत्मा रहती है, कोई कहता है नहीं रहती। यह आत्मविषयक ज्ञान मुझे दीजिए।
नचिकेता ने देखा कि उसके पिता उद्दालक यज्ञ कर रहे हैं जिसमें सब कुछ दान कर दिया जाता है परंतु उसने देखा पिता जी दक्षिणा में जो गाएं दे रहे हैं वे शक्तिहीन, दुग्धहीन और वृद्धा हैं, चारा नहीं खा सकतीं। उन बूढ़ी गौओं को पिता जी दान कर रहे हैं। ऐसे लोग अनंदा नाम लोक में नहीं जा सकते।
उसने सोचा कि उसके पिता इतने वृद्ध समझदार होते हुए ऐसी गलती कर रहे हैं। उसने अपने पिता से कहा कि आप ऐसा यज्ञ कर रहे हैं जिसमें सब कुछ दान दिया जाता है। मैं भी तो आपका अपना धन हूं, आप मुझे किसको देंगे?
तत्कस्मै मां दास्यसीति।
पिता ने क्रोध में आकर यम का नाम लिया। नचिकेता यमलोक चले गए। यमराज वहां नहीं मिले तो तीन दिन तक बिना अन्न, जल ग्रहण किए, वे उनकी प्रतीक्षा करता रहा। जब यमराज लौटे तो वह नचिकेता से बहुत प्रभावित हुए और उसे तीन वर मांगने को कहा।
नचिकेता ने पहले वर में पिता का स्नेह, दूसरे वर में अग्रि तत्व का ज्ञान तथा तीसरे वर में आत्मज्ञान से संबंधित उनसे प्रश्न किए।
यमराज ने कहा आत्मज्ञान के बजाय वे संसार के सुख-सुविधाएं ले सकता है। नचिकेता ने सांसारिक सुखों को नाशवान बताया और आत्मज्ञान देने के लिए प्रार्थना की।
इन दोनों के बीच का संवाद अध्यात्म जगत में कठोपनिषद के नाम से वर्ल्ड फेमस है। यमराज ने आत्मा के स्वरूप को विस्तार से समझाया कि यह अजन्मा है, नित्य है, शाश्वत है, सनातन है, शरीर के नाश होने पर भी बना रहता है, जो मनुष्य मृत्यु से पहले इस ज्ञान को जान लेते हैं, वे मुक्त हो जाते हैं।