माया चक्र से मुक्ति पाने के लिए इस तरह के गुरु का चयन है बहुत जरुरी

Edited By Prachi Sharma,Updated: 10 Dec, 2024 12:36 PM

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आज के समय में न तो योग गुरु होने का दावा करने वालों की कमी है और न ही बाजार में योग के विषय पर उपलब्ध पाठ्यक्रमों की। तरह-तरह की योग  शैलियां- डॉग योग, हॉट योग, पावर योग, बीच योग आदि, अस्वाभाविक

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The reality of yoga: आज के समय में न तो योग गुरु होने का दावा करने वालों की कमी है और न ही बाजार में योग के विषय पर उपलब्ध पाठ्यक्रमों की। तरह-तरह की योग  शैलियां- डॉग योग, हॉट योग, पावर योग, बीच योग आदि, अस्वाभाविक रूप से श्वास लेना, शरीर को तोडना- मरोड़ना, रोना-धोना, चीखना-चिल्लाना, नाचना-गाना, सर के बल खड़े होना और दिन में सपने देखना, अर्थात जितना अजीब नाम और करने का ढंग उतना ही अधिक लोकप्रिय कोर्स। स्वयं को योग गुरु कहने वाले प्रशिक्षकों की तो पूछो ही मत विचित्र लम्बी दाढ़ियां, स्त्रैण वस्त्र, अजीब से हेयर स्टाइल, जिनमें से कुछ तो अपना आशीर्वाद पोस्ट के माध्यम से भेजेंगे, तो कुछ गले लगाकर तथा कुछ इस तरह से कि उनकी करतूतें सुर्खियां बन जाती हैं। जिन्होनें ऐसे योग कोर्स किये हैं वही आपको बता सकते हैं कि वे स्वयं को हल्का महसूस कर रहे हैं या उनकी जेबें हलकी हुई हैं। जहां तक आध्यात्मिक अनुभव का सवाल है, आप पाएंगे की वे अभी भी खोज ही रहे हैं। 

ऋषि मार्कण्डेय ने महाभारत के वानपर्व अध्याय में बताया है कि कलयुग का यह चरण इस बात का गवाह होगा। जिसमें गुरु ही वेद बेचेंगे तथा अधिकतर उन पर विश्वास नहीं करेंगे। योग और तंत्र के पवित्र विज्ञान को गलत तरीके से पेश किया जायेगा और सबसे बड़ी विडंबना तो यह होगी कि कोई भी इन त्रुटियों की आलोचना नहीं करेगा। वास्तव में, आज यही हो रहा है। हर कोई योग की खोज कर रहा है किन्तु उसका वास्तविक ज्ञान किसी को भी नहीं है। इसी कारण अध्यात्म का व्यापार फल फूल रहा है तथा ज्ञान लुप्त हो रहा है। 

योग शक्ति का विषय है और उस शक्ति तक पहुंचने के लिए गुरु-रूपी  माध्यम की आवश्यकता होती है। इसलिए योग में पहला कदम रखने से पूर्व ‘गुरु’ बनाये जाते हैं। स्वयं भगवान राम और कृष्ण ने भी ‘गुरु’ बनाये थे। शिष्य के लिए गुरु को भगवान से भी श्रेष्ठ कहा गया है सलिए नहीं के वे परब्रह्मा से ऊपर हैं बल्कि इसलिए की शिष्य को उस परशक्ति से मिलाने का माध्यम तो वही हैं। गुरु न तो एक व्यापारी हैं और न ही एक उद्यमी, वे तो पांच इन्द्रियों से भी परे हैं क्योंकि वे  शारीरिक और भौतिक रूप से अपने लिए कोई भी  इच्छा नहीं रखते। वे तो ज्ञान, निःस्वार्थ प्रेम और परम आनंद के दाता हैं। वे आपकी भौतिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए नहीं हैं, उनका उद्देश्य तो आपका आत्मिक उत्थान है। केवल भौतिक और शारीरिक समस्याओं  के हल ढूंढने के लिए उनके पास जाना उचित नहीं है, वे  समस्याएं तो आपके अपने ही किसी नकारात्मक कर्म का परिणाम हैं जो किसी भी सरल सेवा तथा दान पुण्य करने से ही दूर हो जाएंगी। गुरु के पास तभी जाएं जब आप इस सृष्टि का सत्य जानना चाहते हैं। इस माया चक्र के परे जाना चाहते हैं, केवल वही विचार आपको आपके गुरु से मिला सकता है, जो आपको योग का सही ज्ञान दे सकते हैं । 

अश्विनी गुरुजी

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