Youth Day 2025: आज मनाई जाएगी युवाओं को राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरित करने वाले स्वामी विवेकानंद की जयंती

Edited By Prachi Sharma,Updated: 12 Jan, 2025 09:51 AM

youth day 2025

भारतवर्ष में समय-समय पर ऐसी महान विभूतियों का प्रादुर्भाव हुआ है, जिन्होंने भारत की अस्मिता और इसके गौरव की पराकाष्ठा को देश ही नहीं, विदेशों में भी बढ़ाया है।

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Youth Day 2025: भारतवर्ष में समय-समय पर ऐसी महान विभूतियों का प्रादुर्भाव हुआ है, जिन्होंने भारत की अस्मिता और इसके गौरव की पराकाष्ठा को देश ही नहीं, विदेशों में भी बढ़ाया है। ऐसे ही महान युवा संन्यासी और देश की युवा शक्ति में नव जागरण का संचार करने वाले युगद्रष्टा स्वामी विवेकानंद महान विद्वान तथा सच्चे अर्थों में सामाजिक सुधार के पक्षधर थे।

आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में माता भुवनेश्वरी देवी की कोख से हुआ। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था। इनके बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था। अति निर्धन परिवार में जन्म लेकर भी नरेंद्र दत्त ने पढ़ाई का साथ नहीं छोड़ा तथा अपनी बुद्धिमानी व कौशल से आध्यात्मिक तथा व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया। छोटी आयु में पिता की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी इनके कंधों पर आ गई तथा अथक परिश्रम से इन्होंने विद्या भी ग्रहण की तथा परिवार का पालन-पोषण भी किया। इनके जीवन में इनके गुरु स्वामी राम कृष्ण परमहंस, देवेंद्रनाथ टैगोर, केशवचंद्र सेन तथा ईश्वर चंद्र विद्यासागर का गहरा प्रभाव पड़ा।  

1871 ई. में जब बाल्यकाल में महान समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर के शिक्षण संस्थान में प्रवेश किया तो उनके विचारों तथा जीवन से विवेकानंद अत्यंत प्रभावित हुए। आगे चल कर प्रैसीडैंसी कालेज कोलकाता से इन्होंने दर्शन, साहित्य, कला तथा शारीरिक शिक्षा में डिग्रियां अव्वल स्थान पर  रहते हुए प्राप्त कीं, परंतु आध्यात्मिकता का गहरा प्रभाव इनके समस्त ज्ञान पर पड़ा तथा गुलामी की जंजीरों में जकड़े भारत में जनमानस की गरीबी तथा दुर्दशा ने इन्हें झकझोर कर रख दिया।

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भारतीयों के लगातार होते शोषण ने इनके विचारों पर गहरा प्रभाव डाला तथा देश की युवा शक्ति, विशेषकर नौजवानों को आगे आने तथा अपने देश के लिए ‘उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य न प्राप्त हो जाए’ का अमर नारा दिया, जिससे अनेकों युवा इनके साथ देश के पुनर्जागरण तथा सामाजिक सुधार के प्रयासों में जुट गए। 25 वर्ष की आयु तक पहुंचते इन्होंने समस्त वेदों, पुराणों, उपनिषदों, धार्मिक ग्रंथों को कंठस्थ कर लिया। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने इन्हें विवेकानंद नाम दिया जिससे यह प्रसिद्ध हुए।

बंगाल में फैले अकाल और महामारी के दौर में इन्होंने जनता की खूब सेवा-सहायता की जिससे यह अपने गुरु परमहंस के कृपा पात्र बन गए। 1886 ई. में अपने गुरु के देहांत पश्चात इन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया तथा देशवासियों को वास्तविकता तथा आध्यात्मिक ज्ञान से जोड़ा और समाज में नई क्रांति तथा नवजागरण का संदेश दिया।

1893 ई. में अनेक चुनौतियों का सामना करने उपरांत अमरीका के शिकागो नगर में विश्व धर्म संसद में पहुंचे। वहां मौजूद विश्व भर की महान धार्मिक विभूतियों के बीच उन्हें मंच से संबोधन के लिए सीमित समय तथा अवसर मिला तथा उनके संबोधन ने सारे सभागार को लगातार तालियों की गड़गड़ाहट से भर दिया तथा विदेश में भी भारतीय संस्कृति का डंका बजाया तथा खूब सम्मान हासिल किया।

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1 मई, 1897 ई. को इन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना बेलूर मठ कोलकाता में की, जिसका उद्देश्य देश भर के साधु-संन्यासियों को एकत्र कर देश में धार्मिक पुनर्जागरण तथा सामाजिक सुधार लाना था। अपने उद्देश्य में रामकृष्ण मिशन काफी हद तक सफल रहा तथा पूरे भारतवर्ष में सामाजिक नव चेतना का शंखनाद किया।

4 जुलाई, 1902 को स्वामी विवेकानंद ने महासमाधि ले ली और नश्वर देह का त्याग कर परम सत्ता में विलीन हो गए। 39 वर्ष के अल्पावधि जीवन में भी स्वामी विवेकानंद ने अपनी कीर्ति तथा यश से समस्त भारतवर्ष ही नहीं, अपितु विदेशों का ध्यान भी भारत के महान और गौरवशाली अतीत एवं भविष्य पर केंद्रित किया तथा एक महान संत व समाज सुधारक के रूप में अपने को स्थापित किया। 

राष्ट्रीय युवा दिवस
हर वर्ष स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस 12 जनवरी को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भारत के युवाओं व नौजवानों को समर्पित खास दिन है जिसे उन्हें प्रेरित करने और उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के उद्देश्य से मनाया जाता है।

इस दिन को मनाने का निर्णय भारत सरकार ने 1984 में लिया था। 12 जनवरी को युवा दिवस के रूप में मनाने का चयन करने के पीछे मुख्य उद्देश्य स्वामी विवेकानंद के विचारों और शिक्षाओं को युवाओं तक पहुंचाना था। पहली बार 12 जनवरी, 1985 को इसे मनाया गया था।

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