Edited By ,Updated: 16 Aug, 2016 10:38 AM
भोलेनाथ की शरण में जाने से भक्तों के प्रत्येक कष्टों का निवारण हो जाता है। हिमाचल के कांगड़ा से 54 कि.मी. और धर्मशाला से 56 कि.मी. की दूरी पर बिनवा नदी
भोलेनाथ की शरण में जाने से भक्तों के प्रत्येक कष्टों का निवारण हो जाता है। हिमाचल के कांगड़ा से 54 कि.मी. और धर्मशाला से 56 कि.मी. की दूरी पर बिनवा नदी के किनारे बैजनाथ धाम बसा है। इसके चारों अौर प्राकृतिक सुदंरता सबका मन मोह लेती है। यह शिव मंदिर महादेव के सबसे बड़े भक्त की भक्ति की कहानी सुनाता है। कहा जाता है कि मन्युक और आहुक नाम के दो व्यापारियों ने 12वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण अौर राजा संसार चंद ने जीर्णोंद्धार करवाया था।
पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेता युग में रावण ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। तप के बाद भी जब महादेव प्रसन्न नहीं हुए तो रावण ने एक-एक कर अपने शिश काटकर हवन कुंड में आहुति देकर भगवान शिव को अर्पित करने आरंभ कर दिए।जब वह अपने दसवें शिश की आहुति देने लगा तभी भगवान शंकर ने प्रकट होकर रावण का हाथ पकड़ लिया अौर उसके सभी सिर पुन: स्थापित कर दिए। भोलेनाथ ने रावण के तप से प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा। रावण ने कहा कि वह शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता है। भोलेनाथ ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिन्ह रावण को देने से पूर्व कहा कि इन्हें जमीन पर न रखें। लंका जाते हुए गौकर्ण क्षेत्र में पहुंचने पर रावण को लघुशंका लगी। वहां एक बैजु नाम का ग्वाला था। रावण ने उसे शिवलिंग पकड़ा कर सारी बात समझा दी अौर स्वयं चला गया। भोलेनाथ की माया से बैजु उन शिवलिंगों के भार को अधिक समय तक न सह सका अौर उसने उन्हें जमीन पर रख दिया अौर स्वयं पशु चराने चला गया। जिसके पश्चात दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। दोनों शिवलिंग जिस मंजूषा में थे उसके सामने जो शिवलिंग था, वह चन्द्रभाल अौर जो पीठ की ओर था वह बैजनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इस स्थान पर शिव के प्रति उनकी भक्ति के सम्मान स्वरूप दशहरे के महापर्व पर रावण का दहन नहीं किया जाता, अपितु भोलेनाथ के साथ उनके परम भक्त रावण को पूजा जाता है। बैजनाथ मंदिर नागरा शैली में बना है। मंदिर में प्रवेश के 4 द्वार हैं जो धर्म, अर्थ, कर्म व मोक्ष को दर्शाते है। कहा जाता है कि जो भक्त धर्म के रास्ते मंदिर में प्रवेश करता है अौर अर्थ एवं कर्म द्वार को पार करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यहां मुख्य मंदिर के अतिरिक्त अौर भी छोटे-छोटे मंदिर हैं। जिनमें भगवान गणेश, मां दुर्गा, राधा-कृष्ण व भैरव बाबा की प्रतिमाएं विराजमान हैं। कहा जाता है कि यहां भगवान शिव की पूजा तब तक पूरी नहीं मानी जाती जब तक भक्त राधा-कृष्ण मंदिर में माथा नहीं टेक लेते। यहां माघ कृष्ण चतुर्दशी को भव्य मेला लगता है, जिसे तारा रात्रि के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त महाशिवरात्रि और सावन के महीने में भी बहुत सारे भक्त भोलेनाथ के दर्शनों हेतु यहां आते हैं। यहां देश-विदेशों से भी शिवभक्त आते हैं।