Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 May, 2024 08:08 AM
सनातन धर्म के अनुसार धार्मिक क्रियाओं और सिद्ध मंत्रों से पत्थर में प्राणों को डाला जा सकता है। मंदिरों में प्राणों की प्रतिष्ठा करने के उपरांत ही प्रतिमाओं को श्री स्वरूप में परिवर्तित किया जाता है। प्रतिमाओं का
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Shani Shakti Peeth: सनातन धर्म के अनुसार धार्मिक क्रियाओं और सिद्ध मंत्रों से पत्थर में प्राणों को डाला जा सकता है। मंदिरों में प्राणों की प्रतिष्ठा करने के उपरांत ही प्रतिमाओं को श्री स्वरूप में परिवर्तित किया जाता है। प्रतिमाओं का वैदिक रीति के साथ अनुष्ठान पत्थर की प्रतिमाओं को जागृत करने के लिए ही किया जाता है। प्रतिमा का कई तरह से अभिषेक कर उसके दोषों का शमन किया जाता है। मंदिर जाकर जिस आत्मिक शांति का अनुभव होता है, वह वैदिक मंत्रों और शंख आदि की ध्वनि से ही उत्पन्न होता है। इसे ही प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं। श्रद्धालुओं की मान्यता होती है की अब यह प्रतिमा पत्थर की मूर्त नहीं रही बल्कि इनमें साक्षात देवी अथवा देवता का वास है। मानों तो भगवान हैं न मानों तो पत्थर की मूर्त।
आज भारत के छोटे शहर से लेकर बड़े शहर तक गली-मोहल्लों से लेकर सड़क के कोनों तक शनि देव के अनेकों मंदिरों का निर्माण हो चुका है। जहां शनिवार के दिन शनि देव की कृपा प्राप्ति के लिए श्रद्धालुओं की लंबी कतारें देखने को मिलती हैं। भक्त शनिवार के दिन शनि देव की विशेष पूजा आराधना करके अपनी सभी परेशानियों से मुक्ति पाते हैं और शनि की दशा के समय उनके भक्तों को कष्टों की अनुभूति नहीं होती। शनिदेव की कृपा किसी जातक पर हो जाए तो उसे विजय, धन, काम सुख और आरोग्यता की प्राप्ति होती है।
ऐसे शनि मंदिरों में सिर झुकाने का कितना महत्व है ? भारत में शनिदेव के बहुत से पीठ स्थापित हैं किंतु पूर्वकालीन केवल तीन ही चमत्कारिक पीठ हैं जिनकी अत्यधिक अहमियत है। मान्यता है कि केवल इन्हीं स्थानों पर जाकर ही शनि कृपा पाई जा सकती है। किसी अन्य स्थान पर नहीं।
आपके जीवन पर मंडरा रहा हो शनि का साया या कठिनाईयों से जूझ रहे हों आप तो केवल इन शनि मंदिरों में सिर झुकाने से हो सकता है, आपकी सभी समस्याओं का समाधान। यह तीन शक्तिपीठ हैं-
Shani Shingnapur शनि शिंगणापुर : यहां की लोक मान्यता है कि यहां देवता हैं लेकिन मंदिर नहीं। घर है लेकिन दरवाजे नहीं। वृक्ष हैं पर छाया नहीं। भय हैं पर शत्रु नहीं। इन सब से हटकर शिंगणापुर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां घरों में किवाड़ नहीं होते और शनिदेव स्वयं अपने भक्तों के घरों की रक्षा करते हैं। यहां स्त्रियों का शनि विग्रह की सेवा करना और तेलाभिषेक करना वर्जित था, लेकिन अब ऐसा नहीं है।
Shanishchara Temple शनिश्चरा मंदिर : यहां स्थापित शनि पिण्ड हनुमान जी ने लंका से फेंका था जो यहां आकर स्थापित हो गया। यहां पर अद्भुत परंपरा के चलते शनि देव को तेल अर्पित करने के बाद उनसे गले मिलने की प्रथा है। यहां आने वाले भक्त बड़े प्रेम और उत्साह से शनि देव से गले मिलते हैं और अपने सभी दुख-दर्द उनसे सांझा करते हैं। दर्शर्नों के उपरांत अपने घर को जाने से पूर्व भक्त अपने पहने हुए कपड़े, चप्पल, जूते आदि को मंदिर में ही छोड़ कर जाते हैं। भक्तों का मानना है कि उनके ऐसा करने से पाप और दरिद्रता से छुटकारा मिलता है।
Siddha Shanidev सिद्ध शनिदेव : जनश्रुति है कि उक्त स्थान पर जाकर ही लोग शनि के दंड से बच सकते हैं, किसी अन्य स्थान पर नहीं। इसके बारे में पौराणिक मान्यता है कि यहां शनिदेव के रूप में भगवान कृष्ण विद्यमान रहते हैं। मान्यता है कि जो इस वन की परिक्रमा करके शनिदेव की पूजा करेगा वही भगवान श्री कृष्ण की कृपा पाएगा और उस पर से शनिदेव का प्रकोप भी हट जाएगा। इसके बारे में पौराणिक मान्यता है कि यहां शनिदेव के रूप में भगवान कृष्ण विद्यमान रहते हैं।