Edited By ,Updated: 03 Jul, 2016 01:33 PM
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तिरूमाला वेंकटेश्वर अर्थात तिरुपति बालाजी का मंदिर प्राचीन और प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में से एक है। यह मंदिर आंध्र प्रदेश के तिरूमाला पर्वतों की 7 वीं
तिरूमाला वेंकटेश्वर अर्थात तिरुपति बालाजी का मंदिर प्राचीन और प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में से एक है। यह मंदिर आंध्र प्रदेश के तिरूमाला पर्वतों की 7 वीं चोटी पर स्थित है। इसे भारत के पुरातन एवं अमीर मंदिरों में से एक मानते हैं। यहां पर भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा की ऊंचाई 8 फुट है। तिरुपति बालाजी से संबधित कई मान्यताएं है जिनके बारे में कुछ ही लोग जानते हैं। आइए जानें इनके बारे में-
* मंदिर में स्थापित वेंकटेश्वर स्वामी की प्रतिमा पर लगे बाल वास्तविक हैं। कहा जाता है कि ये बाल सदैव मुलायम रहते हैं अौर इनमें उलझनें भी नहीं पड़ती।
* बालाजी की प्रतिमा का पिछला भाग अद्भुत है, यह सदैव नम रहता है। कान लगाकर ध्यान से सुनने पर सागरीय लहरों की ध्वनि सुनाई पड़ती है।
* मंदिर के द्वार की दाहिनी अोर एक छड़ी होती है। माना जाता है कि इसका प्रयोग बचपन में भगवान को मारने हेतु किया गया था। एक बार छड़ी से उनकी ठोड़ी पर चोट लग गई थी। जो चंदन के लेप से ठीक हुई। इस प्रकार बालाजी की ठोड़ी में चंदन का लेप लगाने की परंपरा की शुरुआत हुई।
* वैसे भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा मंदिर के गर्भ गृह के मध्य में है परंतु बाहर से देखने पर लगता है कि यह मंदिर के दाईं अोर स्थित है।
* प्रतिमा पर अर्पित किए गए फूल अौर तुलसी के पत्तों को भक्तों में नहीं बांटा जाता बल्कि इन्हें मंदिर के परिसर में निर्मित पुराने कुएं में डाला जाता है।
* प्रत्येक गुरुवार को भगवान की प्रतिमा पर सफेद चंदन का लेप लगाया जाता है। जब इस लेप को हटाया जाता है तो प्रतिमा पर माता लक्ष्मी के निशान बने रहते हैं।
* प्रतिमा पर अर्पित किए फूलों को पीछे फेंका जाता है, उस समय इन्हें देखा नहीं जाता क्योंकि इन पुष्पों को देखना अच्छा नहीं मानते।
* कहा जाता है कि इस मंदिर के कपाट 18 वीं शताब्दी में 12 सालों के लिए बंद कर दिए थे क्योंकि उस समय एक राजा ने 12 लोगों को मृत्युदंड देकर मंदिर की दीवार में लटकाया था। कहा जाता है कि उस वक्त वेंकटेश्वर भगवान स्वयं प्रकट हुए थे।
* कई वर्षों से मंदिर में एक दीया सदैव प्रज्वलित रहता है। इसके बारे में कोई नहीं जानता कि यह कब से जल रहा है।
* तिरुपति जी की प्रतिमा पर पचाई कर्पूरम अर्पित किया जाता है, जिसे कपूर मिलाकर बनाते हैं। अगर इस मिश्रण को किसी साधारण पत्थर पर चढ़ाएं तो वह कुछ समय पश्चात चटक जाता है परंतु तिरुपति जी की प्रतिमा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।