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जानिए, क्या है वास्तुदोष? किस तरह उत्पन्न करता है यह आपके जीवन में समस्याएं

Edited By ,Updated: 27 Jan, 2016 02:58 PM

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वास्तुशास्त्र पूर्णत: वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है, अत: वास्तु दोष का प्रभाव मानव जीवन पर अवश्य पड़ता है। वास्तु दोष रहित भवन में मनुष्य को शांति प्राप्त होती है। वास्तु दोष होने पर उस गृह में निवास करने वाले सदस्य किसी न किसी रूप में कष्ट...

वास्तुशास्त्र पूर्णत: वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है, अत: वास्तु दोष का प्रभाव मानव जीवन पर अवश्य पड़ता है। वास्तु दोष रहित भवन में मनुष्य को शांति प्राप्त होती है। वास्तु दोष होने पर उस गृह में निवास करने वाले सदस्य किसी न किसी रूप में कष्ट स्वरूप जीवन व्यतीत करते हैं। 

वास्तु दोष के कारण घर में असाध्य रोग, गृह क्लेश, मानसिक अशांति आदि समस्याएं भवन निर्माण के वास्तु दोष के कारण होती हैं। पूर्व-पश्चिम, उत्तर- दक्षिण, ईशान-वायव्य-नैऋत्य-आग्रेय, अद्य: अर्थात् पाताल एवं ऊर्ध्व अर्थात आकाश इन 10 तत्वों से मिलकर 10 दिशाओं का निर्माण होता है तथा पृथ्वी, जल, वायु, अग्रि, आकाश ये पंचतत्व मिलकर पंचमहाभूतों का निर्माण करते हैं। पृथ्वी की चुम्बकीय ऊर्जा किरणें उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रभावित होती हैं। यह वैज्ञानिक सिद्धांत है और ऊर्जा के विशाल स्रोत सूर्य की रश्मियां पूर्वी अक्ष से दक्षिणी अक्ष की ओर चलती हैं। प्रत्येक प्राणी पर इनका सीधा प्रभाव पड़ता है। 

पृथ्वी आदि पंचमहाभूतों के अस्तित्व में भी निश्चित अनुपात एवं नियम है। वास्तव में ऊर्जा स्रोतों के प्रवाह, दिशाओं और पंचमहाभूतों के समुचित अनुपात को ही वास्तु शास्त्र कहते हैं। वायव्य कोण उत्तर और पश्चिम के संयोग से निर्मित होने वाला कोण या स्थान है। हमारे शास्त्रों के अनुसार यहां चंद्रमा का आधिपत्य होता है। इसके दूषित होने से संतान कष्ट होता है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार जन्म लग्र कुंडली के पंचम भाव एवं षष्ट भाव में दोष होने से वायव्य कोण में दोष पैदा होता है क्योंकि जन्म कुंडली में पंचम भाव एवं षष्ठम भाव इसके कारक भाव हैं।

ज्योतिष विज्ञान के अनुसार जन्म लग्र कुंडली में पंचम भाव संतान की स्थिति का विवरण देता है। इसका विस्तृत अर्थ यह हुआ कि यदि किसी भवन में वास्तु का वायव्य कोण दूषित है तो उस गृह स्वामी की जन्म लग्र कुंडली में भी पंचम एवं षष्ठम भाव भी दूषित व दोषयुक्त होंगे अथवा जिस जातक की जन्म कुंडली में ये दोनों भाव दूषित होंगे वह अवश्य ही वायव्य दोष अर्थात् वास्तु दोष से भी पीड़ित होगा। 

ज्योतिष विज्ञान में जन्म लग्र कुंडली में पंचम व  षष्ठम भाव दोष रहित होने के कारण भवन में वायव्य कोण दोष रहित होता है। यदि किसी व्यक्ति के भवन में वायव्य कोण वास्तु दोष युक्त है तो जातक को सर्वप्रथम संतान पक्ष से बाधा या रुकावट एवं समस्या हो सकती है। संतान नहीं होना, होकर मर जाना, गर्भ धारण नहीं करना, लड़कियां अधिक होना तथा संतान पक्ष से संबंधित आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त वास्तु दोष रहने से परिवार के सदस्यों में असाध्य रोगों का दौर बना रहता है। आइए देखें कि किसी जातक की जन्म लग्न कुंडली में पंचम व षष्ठम भाव दोष रहित होने पर उसके भवन में वास्तु दोष किस रूप में उत्पन्न होता है-

* यदि वायव्य कोण में उत्तर से सटाकर बड़े चबूतरे का निर्माण कर दिया गया हो तो वायव्य कोण में वास्तु दोष का कारण बनता है। यह वास्तु दोष गांवों में अधिकतर होता है।

*  यदि भवन में वायव्य कोण उत्तर-पूर्व के ईशान कोण से नीचा हो तो भवन में वास्तु दोष होता है। इस दोष के कारण संतान एवं पारिवारिक शांति में रुकावट व बाधा उत्पन्न होती है।

* यदि भवन या भूमि पर वायव्य कोण अर्थात् उत्तर पश्चिम के कोण में कुआं या कोई गड्ढा हो।

*  यदि वायव्य कोण में घने, कंटीले वृक्ष उगे हों।

*  यदि किसी भवन में उत्तर-पश्चिम वायव्य कोण में रसोई हो तो वास्तु दोष होता है। इस दोष के कारण परिवार में संतान पक्ष से, कष्टों एवं दुखों का सामना करना पड़ता है। संतान नहीं होना अर्थात् बांझपन में यह वास्तु दोष मुख्य कारण बनता है।

* यदि किसी कारखाने आदि में बॉयलर या ट्रांसफार्मर की अथवा  बिजली मीटर और हाईपावर इलैक्ट्रॉनिक्स मशीन की स्थापना वायव्य कोण में हो।

* परिवार के मुखिया या किसी भी सदस्य का शयनकक्ष वायव्य कोण में नहीं होना चाहिए। इससे वास्तु दोष होता है। इस दोष के कारण संतानहीनता, असाध्य रोग, आपसी मन-मुटाव आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

* वायव्य कोण से उत्तर तक कोई भी भारी निर्माण कर दिया गया हो।

* वायव्य कोण के मुख पर भवन का मुख्य द्वार होने पर भी भवन में वास्तु दोष होता है जो परिवार की वृद्धि में बाधक होता है। परिवार की अभिवृद्धि का अवरोध करता है।

* भवन में पानी का निकास उत्तर- पूर्व की ओर होना वस्तु शास्त्र सम्मत है परन्तु वायव्य कोण में भवन के पानी का निकास होना भी वास्तु दोष है। उपरोक्त दोषों के कारण भवन में वास्तु दोष होता है। वास्तु दोष के फलस्वरूप संतान संबंधी कष्ट, पीड़ा और संतानहीनता का कष्ट देखना पड़ता है। इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि मजबूरी या अनजाने में तथा स्वेच्छा से रसोई घर का निर्माण यदि वास्तु शास्त्र के नियम व सिद्धांतों के विरुद्ध कर दिया गया हो तो यह वास्तु दोष गृहस्वामिनी की गर्भधारण क्षमता को प्रभावित करते हुए बार-बार गर्भपात की स्थिति का निर्माण करता है अथवा संतानहीनता या बांझपन का शिकार बनाता है। 

—महर्षि डा. पं. सीताराम त्रिपाठी शास्त्री

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