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रिक्शा चालक का बेटा 21 साल की उम्र में बना IAS

Edited By Sonia Goswami,Updated: 27 Mar, 2019 01:41 PM

ias govind jaiswal success story

गोविंद जायसवाल जिन्होंने मेहनत से न सिर्फ अपने माता-पिता का नाम रौशन किया बल्कि अपने सपने को भी साकार किया। गोविंद का परिवार बेहद साधारण परिवार है।

एजुकेशन डेस्क: गोविंद जायसवाल जिन्होंने मेहनत से न सिर्फ अपने माता-पिता का नाम रौशन किया बल्कि अपने सपने को भी साकार किया। गोविंद का परिवार बेहद साधारण परिवार है। घर में गोविंद के अलावा उनकी तीन बहनें भी हैं। गोविंद सबसे छोटे हैं। पढ़ाई में किसी तरह की रुकावट न हो इसके लिए गोविंद ने हर परिस्थिती में खुद को मजबूत बनाए रखा।

 

रेंट पर 12x8 के कमरे में रहने वाले गोविंद ने उस्मानपुर के गर्वमेंट स्कूल से पढ़ाई की है। जिसके बाद उन्होंने मैथ्स में ग्रेजुएशन किया। उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन वाराणसी के सरकारी कॉलेज से की है। गोविंद जायसवाल ने यूपीएससी की परीक्षा में 48वीं रैंक हासिल की। खास बात यह है कि उन्होंने सिर्फ 21 साल की उम्र में ही ये सफलता हासिल की थी। बता दें कि गोविंद के पिता एक रिक्शा चालक थे, घर में बुनियादी सुविधाओं के लिए उनके पिता ही एकमात्र सहारा थे।

 

परीक्षा की तैयारी के दिनों में उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता था। पढ़ाई के दौरान कई बार लाइट चली जाती थी, जो कि 14-14 घंटे तक गायब रहती। एक परेशानी कम नहीं हो रही थी कि गोविंद के सामने एक और परेशानी खड़ी हो जाती। दरअसल पड़ोस में ही जेनेरेटर चलता था जिसकी वजह से काफी शोर होता था। पढ़ाई में किसी तरह के रुकावट न हो इसके लिए वह सभी खिड़कियों पर पर्दा लगा देते और कानों में रूई डालकर पढ़ाई करते।

 

ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद गोविंद सिविल सर्विस की तैयारी के लिए वाराणसी से दिल्ली चले आए। कुछ दिनों तक रहने के बाद मेट्रो सिटी में गोविंद का रहना मुश्किल होने लगा। ऐसे में उनके पिता नारायण जायसवाल ने अपनी एक जमीन बेच दी जिसके लिए उन्हें 4 हजार रुपए मिले।

 

गोविंद ने इस दौरान अपना परिश्रम जारी रखा और उन्होंने मैथ्स की कोचिंग की। रोजाना 18 से 20 घंटे पढ़ाई करने के बाद गोविंद पहली बार साल 2006 में आईएएस की परीक्षा में बैठे। जब रिजल्ट आया तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। रिजल्ट देखने के बाद उनके हाथ कांप रहे थे, उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि इस खुशखबरी को अपने पिता तक कैसे पहुंचाए। यही नहीं रिजल्ट आने के 10 दिन पहले से ही गोविंद सोना भूल चुके थे। गोविंद डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम को अपना आइडल मानते हैं। 

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