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मनोरंजन के नाम पर श्रद्धा का बन रहा मज़ाक: 10 साल के अभिनव अरोड़ा को भगवान के प्रति आस्था पड़ रही भारी?

Edited By Diksha Raghuwanshi,Updated: 19 Apr, 2025 01:36 PM

abhinav aroras faith in god proving costly

सोशल मीडिया पर लोग अश्लीलता को मनोरंजन और श्रद्धा का बना रहे मज़ाक: 10 साल के अभिनव अरोड़ा को भगवान के प्रति आस्था पड़ रही भारी?

मुंबई। इन दिनों सोशल मीडिया पर एक नाम तेजी से चर्चा में है अभिनव अरोड़ा। मात्र 10 वर्ष की आयु में वह एक बाल कथावाचक के रूप में श्रीराम जन्मभूमि की कथा सुनाते हैं। जब वह मंच पर बैठते हैं, तो उनके भीतर की श्रद्धा, समर्पण और ज्ञान देख कर कई लोग नतमस्तक हो जाते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, आज के डिजिटल युग में जहां अच्छाई को सम्मान मिलना चाहिए, वहीं देश के सबसे युवा अध्यात्मिक वक्ता अभिनव को उनके शरीर, बोली, उम्र और भक्ति के कारण ट्रोल किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर उनके वीडियो पर भद्दे कमेंट किए जा रहे हैं, मीम बनाए जा रहे हैं और उनका मज़ाक उड़ाया जा रहा है। क्या अब बच्चों की मासूम श्रद्धा भी उपहास का विषय बन गई है?

सोचने वाली बात यह है कि क्या केवल इसलिए कि यह कथावाचक मात्र 10 साल के हैं, उनका ज्ञान अमान्य हो जाता है? क्या मोटापा किसी की समझ और भक्ति को कम कर देता है? क्या कोई तोतली भाषा उसकी सोच को कमजोर बनाती है? ये सारे प्रश्न हमें अपने समाज के बदलते चरित्र की ओर ले जाते हैं। और इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि आज सोशल मीडिया अश्लीलता का सबसे बड़ा केंद्र बन चुका है। जहां एक ओर नाच-गाने और भड़काऊ कंटेंट को लाखों फॉलोअर्स और लाइक्स मिलते हैं, वहीं जब कोई बच्चा भक्ति और संस्कृति की बात करता है तो उसका मज़ाक उड़ाया जाता है। जो लोग अपनी श्रद्धा से कुछ अच्छा करने का प्रयास करते हैं, उन्हें नीचा दिखाने में समाज जरा भी संकोच नहीं करता।

अभिनव अरोड़ा को मीडिया चैनलों पर स्थान इसलिए नहीं मिल रहा कि वह कोई वायरल चेहरा है, बल्कि इसलिए कि वह एक प्रतिभाशाली और जागरूक बालक है, जो कम उम्र में ही धर्म और संस्कृति की गहराई को आत्मसात कर रहा है। भारत में इससे पहले भी कई उदाहरण रहे हैं बालक ध्रुव, प्रहलाद और विवेकानंद जैसे नाम जिन्होंने बचपन में ही समाज को नई दिशा दी। अभिनव उन्हीं परंपराओं की अगली कड़ी है। यदि हम आज ऐसे बच्चों को प्रोत्साहित नहीं करेंगे, तो आने वाली पीढ़ियाँ हमारे मूल्यों से कटती जाएंगी।

यह समय है आत्ममंथन का। क्या हम उस दिशा में बढ़ रहे हैं जहाँ अश्लीलता को मनोरंजन और श्रद्धा को मज़ाक बना दिया जाए? यदि हाँ, तो यह केवल अभिनव की नहीं, हमारी सोच, संस्कृति और समाज की भी हार है। हमें तय करना होगा कि हम कैसी पीढ़ी को आगे बढ़ाना चाहते हैं वो जो व्यंग्य और उपहास की आड़ में प्रतिभा को कुचल दे, या वो जो सच्चाई, श्रद्धा और संस्कृति को सम्मान दे।

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