Movie Review: गंदी राजनीति के खेल की रियल और जबरदस्त पॉलिटिकल ड्रामा फिल्म है Jahangir National University, पढ़ें रिव्यू

Updated: 21 Jun, 2024 11:43 AM

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यहां पढ़ें कैसी है फिल्म जहाँगीर नेशनल यूनिवर्सिटी

फिल्म: जहाँगीर नेशनल यूनिवर्सिटी (Jahangir National University)
कलाकार: उर्वशी रौतेला (Urvashi Rautela), सिद्धार्थ बोडके (Siddharth Bodke), रवि किशन (Ravi Kishan), पीयूष मिश्रा (Piyush Mishra), विजय राज (Vijay Raaz), रश्मि देसाई (Rashmi Desai)
निर्देशक: विनय शर्मा (vinay sharma)
प्रोड्यूसर: प्रतिमा दत्ता (Pratima Datta)
रेटिंग : 3.5*

 

Jahangir National University: बॉलीवुड में देश में हुई कई विवादित घटनाओं पर फिल्में बन चुकी हैं। वहीं अब देश में घटित सत्य घटनाओं पर फिल्में बनाने का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है। इसी बीच 'जहाँगीर नेशनल यूनिवर्सिटी एक पॉलिटिकल ड्रामा फिल्म जो ट्रेलर के साथ ही पोस्टर को लेकर भी लगातार मीडिया सुर्ख़ियों में रही हैं। वहीं सेंसर बोर्ड ने भी लंबे समय तक सर्टिफिकेट के लिए भी रोक कर रखा था कुछ दृश्यों के काँट छाँट  के बाद फ़िल्म आज रिलीज हो रही हैं। इस फिल्म की पृष्ठभूमि में कुछ साल पहले दिल्ली की एक यूनिवर्सिटी में हुई कुछ विवादास्पद घटनाएं हैं जिनको मीडिया में बहुत सुर्खियां मिली थी उन्हें दिखाया गया है। 

 


कहानी
फिल्म जहाँगीर नेशनल यूनिवर्सिटी एक छोटे शहर के रहने वाले सौरभ शर्मा (सिद्धार्थ बोडके) की कहानी है जो इस विश्वविद्यालय का छात्र है। वहाँ वह वामपंथी छात्रों की गतिविधियों से बेचैन हो जाता है जो राष्ट्र-विरोधी हैं और उनके खिलाफ आवाज उठाता है। सौरभ को अखिलेश पाठक उर्फ बाबा (कुंज आनंद) का सहयोग मिलता है जो यूनिवर्सिटी में वामपंथी वर्चस्व का विरोध करने में उसका मार्गदर्शन करते हैं। इस रास्ते पर सौरभ को ऋचा शर्मा (उर्वशी रौतेला) एक सहायक रूप में मिलती है। वामपंथी गिरोह को सौरभ ने कड़ी चुनौती दी, जिससे वे बेचैन हो गए क्योंकि सौरभ ने यूनिवर्सिटी में एक इतिहास रचते हुए चल रहे चुनावों में से एक जीतकर जेएनयू की राजनीति में प्रवेश किया। काउंसलर के पद पर रहते हुए, वह वामपंथियों के राष्ट्र-विरोधी एजेंडे का विरोध करता है और यूनिवर्सिटी के छात्रों के पक्ष में काम का समर्थन करता है; जिससे उसे छात्रों के बीच लोकप्रियता हासिल होती है। 2014 में, सौरभ विश्वविद्यालय के जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर हावी वामपंथी पार्टी के खिलाफ चुनाव जीतता है। 2019 में, जब जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष के रूप में आरुषि घोष के छात्रों की फीस बढ़ाने के फैसले की घोषणा सरकार द्वारा की गई थी,  वामपंथी छात्रों द्वारा जबरदस्त विरोध किया गया। फिल्म में और कौन-कौन सी घटनाएं और किस्से दिखाए गए हैं इसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

 


एक्टिंग
फिल्म में कई कलाकार हैं जिन्होंने अपने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है। किसना कुमार के रोल में अतुल पांडेय और सौरभ शर्मा की भूमिका में सिद्धार्थ बोकडे ने गज़ब की अदाकारी की है। वहीं बाबा के रोल को कुंज आनंद ने भी खूब जंचे हैं।  गुरु जी के रूप में पीयूष मिश्रा ने हमेशा की तहर अपने किरदार को बखूबी निभाया और गहरा असर छोड़ा है। रवि किशन और विजय राज की जोड़ी फिल्म में कमाल लगी है। सायरा के रोल को शिवज्योति राजपूत, नायरा के रोल को जेनिफर और युवेदिता मेनन की भूमिका रश्मि देसाई ने निभाई है जिन्होंने अपने रोल अच्छे से निभाए हैं।

 

निर्देशन 
फ़िल्म का निर्देशन विनय शर्मा ने बेहतर किया है। सभी कलाकारों से बखूबी काम लिया है इसके साथ ही  कॉलेज और छात्रों से भरा अच्छा माहौल बनाया है जिसकी वजह से फ़िल्म काफी रियल और रॉ लगती है और यही वजह है कि इसमें पब्लिक से जुड़ने की क्षमता है। वहीं फिल्म के सवांद भी असर छोड़ने वाले हैं।

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