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ईमानदारी बनाम राजनीति का टकराव है Khakee The Bengal Chapter, यहां पढ़ें रिव्यू

Updated: 20 Mar, 2025 05:47 PM

khakee the bengal chapter review in hindi

यहां पढ़ें कैसी है सीरीज खाकी द बंगाल चैप्टर

सीरीज: खाकी द बंगाल चैप्टर (Khakee: The Bengal Chapter)
निर्देशक: देबात्मा मंडल और तुषार कांति रे (Debatma Mandal and Tushar Kanti Ray)
स्टारकास्ट: जीत (Jeet), सास्वता चटर्जी (Saswata Chatterjee), प्रोसेनजीत (Prosenjit), चित्रागंदा सिंह (Chitrangada Singh)
ओटीटी: नेटफ्लिक्स (Netflix)
रेटिंग: 3*

खाकी द बंगाल चैप्टर: Khakee: The Bihar Chapter की सफलता के बाद, नीरज पांडे एक बार फिर लौटे हैं। इस बार बैकड्रॉप है बंगाल। Khakee: The Bengal Chapter’ में उन्होंने फिर से दिखा दिया कि एक मजबूत कहानी और ट्रीटमेंट कैसे दर्शकों को बांधे रख सकता है। इस सीरीज की सबसे बड़ी खासियत यही है कि आप इसे बिना स्किप किए अंत तक देखना चाहेंगे और आज के शॉर्ट-कंटेंट के दौर में यही सबसे बड़ी जीत है।

कहानी
राजनीति और अपराध का गठजोड़ कोई नया विषय नहीं है, लेकिन ‘Khakee: The Bengal Chapter’ में इसे नए एंगल से पेश किया गया है। कहानी घुमती है एक ताकतवर नेता बरुण दास के इर्द-गिर्द, जो अपने स्वार्थ के लिए गैंगस्टर्स को मोहरा बनाता है। उसकी राह में खड़ा होता है एक ईमानदार और तेजतर्रार पुलिस अधिकारी अर्जुन मोइत्रा (भूमिका में जीत), जो सिस्टम की सड़ांध के खिलाफ अकेले लड़ता है। जैसे-जैसे घटनाएं आगे बढ़ती हैं, शहर में खून-खराबा, राजनीतिक षड्यंत्र और कई चौंकाने वाले राज सामने आते हैं। यह लड़ाई सिर्फ अपराधियों से नहीं, बल्कि सत्ता के साये में पल रही व्यवस्था से है।

अभिनय
इस सीरीज की सबसे मजबूत कड़ी इसकी स्टारकास्ट की परफॉर्मेंस है। जीत ने पुलिस ऑफिसर के रोल में जबरदस्त प्रभाव छोड़ा है। उनका अंदाज़, बॉडी लैंग्वेज और संवाद अदायगी किरदार को मजबूत बनाते हैं। प्रोसेनजीत चटर्जी का पॉलिटिशियन किरदार दमदार है। निगेटिव शेड को उन्होंने बड़े रिफाइंड तरीके से निभाया है। रित्विक भौमिक इस सीरीज का असली सरप्राइज हैं। आदिल जफर खान का प्रदर्शन भी  प्रभावी है। सास्वता चटर्जी चित्रांगदा सिंह का काम भी अच्छा है।

निर्देशन
सीरीज का निर्देशन देबात्मा मंडल और तुषार कांति रे ने किया है, जिन्होंने हर किरदार को स्पेस देने और कहानी को रफ्तार देने में अच्छी पकड़ दिखाई है। स्क्रिप्ट पर नीरज पांडे, देबात्मा मंडल और सम्राट चक्रवर्ती की मेहनत साफ झलकती है। संवाद असरदार हैं और कई सीन लंबे समय तक याद रह जाते हैं। संक्षेप में कहें तो राजनीति और थ्रिल का अच्छा संगम है अगर राजनीतिक कंटेंट पसंद आता है तो आप इस सीरीज को समय दे सकते हैं।

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