Updated: 22 Jun, 2024 12:56 PM
फिल्म के बारे में नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने पंजाब केसरी/नवोदय टाइम्स/जगबाणी/हिंद समाचार से खास बातचीत की।
नई दिल्ली/ टीम डिजिटल।बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी एक पुलिस अफसर की भूमिका में दर्शकों का मनोरंजन करने अपनी नई फिल्म 'रौतू का राज' के साथ लौट रहे हैं। इस मिस्ट्री थ्रिलर फिल्म में राजेश कुमार, अतुल तिवारी और नारायणी शास्त्री भी सहायक भूमिकाओं में हैं। यह फिल्म एक गांव रौतू की बेली में नेत्रहीनों के स्कूल के वार्डन की रहस्यमयी मौत के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म 28 जून से ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म जी5 पर उपलब्ध होगी। फिल्म के बारे में नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने पंजाब केसरी/नवोदय टाइम्स/जगबाणी/हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश...
Q फिल्म का नाम काफी अलग है, इसके बारे में क्या कहना चाहेंगे?
- ‘रौतू का राज’ फिल्म का नाम है। रौतू मतलब जो रावत होते हैं, उनका गांव। उत्तराखंड का एक गांव हैं, जहां पर एक घटना हो जाती है। चूंकि वहां कभी कोई घटना हुई नहीं हुई होती तो पुलिस विभाग इसके लिए तैयार नहीं होता। वहां 15 साल से कोई अपराध नहीं हुआ। फिर धीरे-धीरे छानबीन शुरू होती है, तब उनके कौशल और प्रतिभा का पता चलता है कि कितना मुस्तैदी से वह लोग छानबीन करते हैं। इस तरह से आखिर में केस का हल निकालते हैं।
Q आप एक बार फिर पुलिस का किरदार निभा रहे हैं तो एक जैसे किरदार में अलग दिखना कितना मुश्किल होता है?
-अगर हम पहनावे से देखें तो सब कुछ एक जैसा ही होता है। पुलिस की वही वर्दी होती है लेकिन वर्दी के पीछे का इंसान अलग किस्म का होता है। जैसे अगर मैं ‘रात अकेली है’ या ‘रईस’ कि बात करूं तो वो जो पुलिसवाला था, वह बहुत अलग था। तो रोल भले ही एक जैसे हों लेकिन कहानी, तरीका और तैयारी अलग होती है।
Q इंडस्ट्री में सालों के अनुभव के बाद क्या अब आपका किसी किरदार को निभाने को कोई खास तरीका है?
-जिंदगी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है तो जीवन का अनुभव तो काम आता ही है। बदलाव होना भी जरूरी है क्योंकि पहले हम अलग तरीके के किरदार निभाते थे, अब काम करने का तरीका थोड़ा अलग है। आपकी जिंदगी में भी कई चीजें घटित होती हैं तो आपका काम करने का अंदाज भी बदल जाता है। आप इतना सीख जाते हो कि आपको इतनी मेहनत करने की जरूरत नहीं होती है। आपको थोड़ा आइडिया हो जाता है कि किस किरदार को कैसे करना है या क्या कुछ उसके लिए खास करना है। किरदारों पर भी निर्भर करता है क्योंकि हर किरदार की प्रक्रिया एक जैसी नहीं होती है। हर किसी के लिए अलग-अलग तरीके होते हैं।
Q आपका अपने सह कलाकार के साथ काम करने का अनुभव और बॉडिंग कैसी है?
-किसी भी कलाकार के साथ काम करने पर उनके साथ बॉडिंग इस पर निर्भर करती है कि वह कलाकार कैसा है। इस फिल्म में राजेश की बात करें तो वह बहुत प्रतिभाशाली हैं। साथ काम करने में किसी भी अभिनेता के साथ गिव एंड टेक बहुत जरूरी होता है। आप अगर किसी अभिनेता के संवाद सुन रहे हैं तो कई सारी चीजें आपको वहीं से मिल जाती हैं। इसके साथ ही हम खुद भी कुछ चीजों में सुधार या बदलाव करते हैं।
Q आज आप हिंदी सिनेमा का बड़ा नाम हैं। क्या अब आप खुद को इंडस्ट्री में फिट मानते हैं?
-नहीं, मैं अभी भी इस इंडस्ट्री के रंग में रंगा नहीं हूं। मैं बहुत ही अकेला रहना पसंद करता हूं। अलग रहना पसंद करता हूं। न ही मैं कभी किसी पार्टी में जाता हूं क्योंकि मुझे अंदर से ही शौक नहीं है इन सबका। इतने साल बाद भी मैं इस इंडस्ट्री में रंग नहीं पाया हूं।
Q काम को लेकर आपके लिए संघर्ष के क्या मायने हैं?
-मैं किसी तरह के लक्ष्य में यकीन नहीं करता हूं कि कोई चीज लक्ष्य तय करके ही हो। मेरा मानना है कि जिंदगीभर तक कोशिश करते रहो। मैं तो इस तरह का था कि हम कोई लक्ष्य लेकर नहीं आए थे। कभी नहीं सोचा कि दो साल मुझे कुछ नहीं मिला तो मैं चला जाऊंगा। मैं तो यह सोचकर आया था कि 50 साल भी कुछ नहीं मिला तो भी हार नहीं मानूंगा और तब भी काम करूंगा। मैं जिद्दी किस्म का इंसान था। अगर सफलता मुझे 70 साल में भी मिलती तो मैं लगा रहता क्योंकि मैं चाहता ही यही करना था।
Q इस फिल्म से क्या लेकर आप अपने जीवन में आगे बढ़ने वाले हैं?
-इस फिल्म से बहुत खूबसूरत चीजें ली हैं मैंने। शूटिंग के दौरान खूबसूरत वादियां थीं। आप पहाड़ों से बात कर सकते थे। अलग ही तरह का सुकून था। सबसे अच्छी बात जो ली मैंने वह है शांति। आप शांति से घंटों तक पहाड़ों में बैठे ही रहते हैं। अभिनय करते समय भी खुद की आवाज खुद सुन सकते थे। पहाड़ों की मैगी भी खाई। इसके अलावा रौतू की बेली का पनीर बहुत मशहूर है, मैंने तो खूब खाया।