Updated: 04 May, 2024 03:29 PM
संजय लीला भंसाली की डेब्यू वैब सीरीज 'हीरामंडी: द डायमंड बाजार' 1 मई 2024 को नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो चुकी है। सीरीज के ट्रेलर के बाद से फैंस के बीच इसे लेकर काफी चर्चा बनी हुई थी।
नई दिल्ली/टीम डिजिटल। संजय लीला भंसाली की डेब्यू वैब सीरीज 'हीरामंडी: द डायमंड बाजार' 1 मई 2024 को नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो चुकी है। सीरीज के ट्रेलर के बाद से फैंस के बीच इसे लेकर काफी चर्चा बनी हुई थी। सीरीज में तवायफों की दुनिया के राज, जुनून, ड्रामा और देशभक्ति का जज्बा देखने को मिलने वाला है। इसमें एक ऐसी दुनिया का जिक्र किया गया है, जहां तवायफें महारानियों की तरह राज करती हैं।
सीरीज में शेखर सुमन और उनके बेटे अध्ययन सुमन नवाबों की भूमिका में नजर आए हैं। इस सीरीज के बारे में शेखर सुमन और अध्ययन सुमन ने पंजाब केसरी/नवोदय टाइम्स/जगबाणी/हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश:
‘एक्टर होने का तजुर्बा किरदारों की पकड़ में बहुत मदद करता’ : शेखर सुमन
Q.नवाब जुल्फिकार का किरदार आपको जब ऑफर हुआ था, क्या रिएक्शन था आपका?
मेरा रिएक्शन बहुत कमाल का था क्योंकि मैं बचपन से ही नवाब बनना चाहता था। नवाबों को देखकर मैं बहुत खुश होता था और लोग कहते भी थे कि बड़ी नवाबीयत है तुम में। हर काम अपनी मर्जी से करते हो, नवाब हो क्या। तब मैं कहता था कि हम नवाब हैं। नवाब का किरदार समझने और करने में मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी क्योंकि नवाबों के मिजाज से, उनकी कैफियत से मैं बहुत पहले से वाकिफ हूं। इस किरदार को मैंने समझा और किया। इसमें लोगों की प्रतिक्रिया भी मुझे काफी अच्छी मिली। इसके अलावा हमने सबने मिल के बहुत मेहनत से काम किया है।
Q.नवाब जुल्फिकार के रोल के लिए किस तरह से खुद को तैयार किया?
मैं नवाबों के ऐसे किरदारों से पहले से ही वाकिफ हूं क्योंकि हमने पहले भी कई फिल्में देखी हैं, जिनमें नवाबों का जिक्र था। उनमें उनकी अदायगी, जुबान और अदब को देखा है। वो चीजें मेरे अंदर कहीं न कहीं इमोशनली टच हुईं। मुझे मेरे किरदार के लिए बताया गया था कि वह किस तरह का है, इससे किरदार निभाने में सहूलियत मिलती है। उसकी बारीकियां निर्देशक भी समझा देते हैं तो काम आसान हो जाता है। वहीं, एक्टर होने का तजुर्बा किरदारों की पकड़ में बहुत मदद करता है। जब आप नवाबों की वेशभूषा पहनते हैं ना तो आप में अपने आप नवाबीयत आ जाती है। गेटअप, माहौल और सेट इन सब का बहुत असर पड़ता है।
Q.सीरीज में आपने अपने बेटे के साथ स्क्रीन शेयर की है, तो आप दोनों का प्रोफेशनल रिलेशन कैसा रहा? आपने उन्हें क्या कुछ सिखाया?
मैंने अध्ययन को मूल खाका समझाया था क्योंकि वह उस दौर से, उन किरदारों से वाकिफ नहीं है। मैंने उसे वो बारीकियां समझाईं। नवाबों का रहन-सहन, नवाबों का शान, उनके शौक, बात करने का तरीका और साथ ही उनका अहम, इन चीजों के बारे में सिखाया। उर्दू के उच्चारण बारे में समझाया। जब वह सेट पर गया तो उसमें पूरा आत्मविश्वास था। भंसाली साहब ने कहा कि लगता है बाप से सीख के आए हो क्योंकि इस पीढ़ी से मैं उम्मीद नहीं करता हूं कि वो ऐसे बात करे। इस पर अध्ययन ने कहा कि डैड के साथ मैंने काफी रिहर्सल की है।
Q.संजय लीला भंसाली के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
मुझे लगता है कि जो काम करने में सक्षम होता है ना, उसके साथ काम करने में हमेशा मजा ही आता है। आप एक ऐसे माहौल में प्रवेश करते हैं, जहां सब कुछ कायदे और सोच-विचार के साथ किया गया हो। अब वो चाहे सेट हो, वेशभूषा हो या म्यूजिक हो। संजय लीला भंसाली देश के मुकम्मल निर्देशक हैं। स्क्रीन प्ले, किरदार, डायलॉग, सेट और बैकग्राउंड स्कोर सभी पर उनकी बराबर पकड़ है। ऐसे लोगों के साथ काम करने में उत्साह और बढ़ जाता है। वह एक उस्ताद हैं।
‘मुझे अभी भी लग रहा है, मैं सपना देख रहा हूं’ : अध्ययन सुमन
Q. फर्स्ट लुक के बाद से ही आपको लोगों का इतना सारा प्यार मिल रहा है, कैसा लग रहा है?
मुझे अभी भी लग रहा है कि मैं सपना देख रहा हूं। कभी नहीं सोचा था कि मैं इतने बड़े निर्देशक जो मेरे भी पसंदीदा हैं, संजय लीला भंसाली सर के साथ काम करूंगा। मैं जिस पोजीशन पर था, उसे देखकर यह ख्वाब लग रहा है लेकिन मेरी मां की दुआएं और मेरी मेहनत है कि मैंने ऑडिशन किया। ऑडिशन के बाद भी मुझे ये शो नहीं मिला था। मैं पहाड़ों पर था, उस समय अपने मम्मी-पापा की एनिवर्सरी सेलिब्रेट करके हम नीचे आ रहे थे। तब मुझे ऑडिशन के लिए कॉल आया था। मेरे पापा हमेशा कहते हैं कि जो आपकी किस्मत है, उसे कोई छीन नहीं सकता। मुझे उनकी इस बात पर पूरा भरोसा है और जिसकी किस्मत में ये रोल था, उसे मिल गया। इसके लिए साइन किसी और को किया गया था लेकिन बाद मैं मुझे मिला। एक ही नहीं, दूसरा किरदार भी मुझे मिला। जहां तक प्यार की बात है, तो वो हर एक्टर चाहता है। 15 साल से मेरी मेहनत रही है कि लोग मेरे काम को सराहें और वो दुनिया तक पहुंचे।
Q. एकदम से जब आपको ऑडिशन का कॉल आया तो आपने उसकी तैयारी कैसे की?
जब इंसान के पास कोई रास्ता नहीं होता और उसे मालूम होता है कि ये मौका दोबारा नहीं आएगा तो उससे जो बन पड़ता है, वो करता है। वो सारी शक्तियां लगा देता है। इतने सारे लोग लाइन में थे इस रोल के लिए। मेरे दिमाग में चल रहा था कि अगर मेरी जगह सर किसी और को पसंद कर लें तो क्या होगा? मैं अपना ऑडिशन बना लूं गाड़ी में। उनको ये न लगे कि इन्होंने तो किया ही नहीं। मैंने हर वो कोशिश की, जो मुझसे बनी।
Q. पहले आपको सीरीज में रोल मिला बाद में आपके पिता शेखर सुमन भी इसका हिस्सा बन गए। कैसा लगा था कि अब सेट पर कोई होगा आपके साथ?
पापा का सीरीज में मेरे साथ भी ट्रैक है लेकिन हम दोनों का सीन सिर्फ एक है। दोनों अलग टाइम पर शूट करते थे लेकिन ये बहुत अच्छी बात थी कि बाप-बेटा दोनों एक सीरीज में काम कर रहे हैं। मम्मी का सपना था कि हम दोनों साथ काम करें। पापा तो सेट पर मुझसे मिलने और सर को हैलो-हाय करने आए थे। लेकिन संजय सर ने उनमें कुछ देखा और बोले कि मुझे शेखर को भी लेना है। फिर पापा भी सीरीज में शामिल हो गए। मेरे लिए यह चमत्कार ही है।
Q. आप चाहे कितना भी होमवर्क कर लो, संजय लीला भंसाली के सामने कम ही पड़ जाता है। ऐसे में आपके लिए कितना चुनौतीपूर्ण रहा उनकी उम्मीदों पर खरा उतरना?
उनके फिल्म स्कूल से अच्छा दुनिया में कोई फिल्म स्कूल नहीं है क्योंकि आपको वहां पर इतनी हार्ड ट्रेनिंग मिलती है कि आप जिंदगी में कहीं भी, कुछ भी कर सकते हैं। मैं खुद को बहुत खुशकिस्मत मानता हूं कि बतौर एक्टर और डायरेक्टर मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला।