Updated: 13 Feb, 2025 11:47 PM
शौर्य की गर्जना, बलिदान की कहानी- 'छावा' सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि इतिहास का जश्न है!
फिल्म : छावा (Chhaava)
स्टारकास्ट : विक्की कौशल (Vicky Kaushal), रश्मिका मंदाना (Rashmika Mandanna), अक्षय खन्ना (Akshaye Khanna), आशुतोष राणा (Ashutosh Rana), दिव्या दत्ता (Divya Dutta), विनीत कुमार सिंह (Vineet Kumar Singh), डायना पेंटी (Diana Penty)
डायरेक्टर : लक्ष्मण उतेकर (Laxman Utekar)
रेटिंग : 4*
छावा मूवी रिव्यु: शौर्य की गर्जना, बलिदान की कहानी- 'छावा' सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि इतिहास का जश्न है! विक्की कौशल की दमदार स्क्रीन प्रेजेंस और लक्ष्मण उतेकर का भव्य निर्देशन इसे मराठा वीरता का जीवंत चित्रण बना देता है।फिल्म का हर दृश्य, हर संवाद और हर युद्ध आपको उस दौर में ले जाता है जहां धर्म, कर्तव्य और राजनीति की टकराहट ने एक महान योद्धा को जन्म दिया। फिल्म 'छावा' को सिर्फ देखने का नहीं, इसे महसूस करने का अनुभव मिलेगा!
कहानी
छत्रपति शिवाजी महाराज के जाने के बाद मराठा साम्राज्य मुश्किल दौर से गुजर रहा था। मुगलों की नजर अब इस वीरभूमि पर थी। औरंगजेब ने पूरी ताकत लगा दी, लेकिन मराठाओं के हौसले को तोड़ना इतना आसान नहीं था। क्योंकि अब कमान संभाल चुके थे छत्रपति संभाजी महाराज—एक ऐसा योद्धा, जिसने न कभी हार मानी और न ही दुश्मनों के आगे घुटने टेके।
संभाजी महाराज सिर्फ एक राजा नहीं थे, वो एक रणनीतिकार, एक वीर सेनानी और अपने लोगों के लिए ढाल थे। उन्होंने हर मोर्चे पर मुगलों को मात दी, लेकिन उनके खिलाफ एक ऐसी साजिश रची गई, जिसने पूरे मराठा साम्राज्य को हिला कर रख दिया। आखिर क्या थी वो साजिश? क्या संभाजी महाराज इस षड्यंत्र से खुद को बचा पाए…?
अभिनय
विक्की कौशल का ‘छावा’ अवतार—एक राजा, एक योद्धा, और एक कहानी जो भुलाए नहीं भूलेगी। संभाजी महाराज के रूप में विक्की कौशल की यह परफॉर्मेंस सिर्फ ऐतिहासिक किरदार का चित्रण नहीं, बल्कि एक युग को फिर से जीने जैसा अनुभव है। उनका हर एक एक्शन और हर एक डायलॉग इतिहास के पन्नों से सीधे स्क्रीन पर उतरता महसूस होता है। युद्ध का जुनून और भावनात्मक गहराई, दोनों को जिस तरह विक्की निभाते हैं, वो उन्हें बॉलीवुड के सबसे दमदार अभिनेताओं में शुमार कर देता है।
‘छावा’ में रश्मिका मंदाना ने महारानी येसूबाई के किरदार को जीवंत कर दिया है। वह सिर्फ एक सुंदर रानी नहीं, बल्कि संभाजी महाराज की सबसे बड़ी प्रेरणा और शक्ति का प्रतीक थीं। रश्मिका की परफॉर्मेंस ने इस किरदार को गहराई और मजबूती दी है, जिससे येसूबाई सिर्फ इतिहास का नाम नहीं, बल्कि एक जीवंत व्यक्तित्व के रूप में उभरती हैं। फिल्म में उनकी भूमिका सिर्फ एक सहायक की नहीं, बल्कि एक सशक्त योद्धा की है, जो हर मोड़ पर अपने राजा के साथ खड़ी होती हैं।
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अक्षय खन्ना ने औरंगज़ेब के किरदार को इतनी बारीकी और तीव्रता से निभाया है कि हर सीन में उनकी मौजूदगी सिहरन पैदा कर देती है। उनके डायलॉग भले ही कम हों, लेकिन उनकी निगाहें और हाव-भाव ही सबकुछ कह देते हैं। अक्षय ने औरंगज़ेब को सिर्फ एक क्रूर शासक के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसे शख्स के रूप में पेश किया है जो डर और सत्ता की भूख से संचालित होता है। उनके शांत लेकिन खौफनाक अंदाज में जो असर है, वो शब्दों से ज्यादा गहरा है। जब वह पर्दे पर आते हैं, तो हर एक पल में एक अजीब सी बेचैनी और भय महसूस होता है। उनकी खामोशी ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है, और यही उनके किरदार को बेहद प्रभावशाली बनाती है।
फिल्म में सिर्फ मुख्य किरदार ही नहीं, बल्कि सहायक कलाकार भी अपनी दमदार अदायगी से कहानी में जान डालते हैं। आशुतोष राणा ने सरलष्कर हंबीरराव मोहिते के रूप में मराठा सेना की निष्ठा और ताकत को बखूबी जिया है। उनकी मौजूदगी पर्दे पर एक अलग ही रौब पैदा करती है। वहीं, दिव्या दत्ता ने राजमाता के किरदार में जबरदस्त सूक्ष्मता लाई है—उनका हर संवाद और हर हावभाव ऐसा है कि दर्शक उनके हर कदम पर शक करने लगते हैं।विनीत कुमार सिंह ने कवी कलश के रूप में कहानी में काव्यात्मक गहराई जोड़ी है, जो फिल्म के भावनात्मक पहलुओं को और भी प्रभावी बना देती है। वहीं, डायना पेंटी, औरंगज़ेब की बेटी जीनत-उन-निस्सा बेगम के रूप में एक अनोखी परत जोड़ती हैं, जिससे कहानी में और भी रोमांच बढ़ जाता है।
एक्शन
फिल्म की जान इसके एक्शन सीक्वेंस में बसती है, और ये वाकई शानदार हैं। फाइट सीक्वेंस की कोरियोग्राफी इतनी बेहतरीन है कि हर लड़ाई एक कला की तरह लगती है। जबरदस्त प्लानिंग के साथ फिल्माए गए ये युद्ध दृश्य न केवल भव्य हैं, बल्कि रणनीतिक रूप से भी गहरे सोच-समझकर रचे गए हैं। घात लगाकर किए गए हमलों से लेकर बड़े पैमाने पर छिड़े युद्ध तक, हर एक्शन सीन एक मास्टरपीस की तरह तैयार किया गया है। खासकर मराठाओं की गोरिल्ला वॉरफेयर तकनीक और दुश्मनों को मात देने के लिए उनकी चतुर रणनीतियां रोमांच को और भी बढ़ा देती हैं। फिल्म में चार बड़े युद्ध दृश्यों को इतने शानदार तरीके से प्रस्तुत किया गया है कि हर अगला युद्ध पहले से ज्यादा दमदार और रोमांचक लगता है।
फिल्म सिर्फ तलवारों की टकराहट तक सीमित नहीं है, बल्कि यह रणनीति और दिमागी खेल का भी बेहतरीन प्रदर्शन करती है। मराठाओं की 25,000 सैनिकों की सेना को एक संगठित और कुशल रणनीतिक मशीन के रूप में दिखाया गया है, जो संख्या में कहीं बड़ी मुगल सेना को चकमा देती है। एक सीन में जब डायना पेंटी का किरदार, जीनत, मज़ाक में कहती है, "हमारे यहां सैनिकों से ज्यादा बावर्ची हैं," तो यह दोनों सेनाओं के बीच के अंतर को साफ़ दिखा देता है। मराठाओं की चतुर युद्ध नीति हर सीन में वाहवाही लूटती है और दर्शकों को तालियां बजाने पर मजबूर कर देती है।
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संगीत
फिल्म का संगीत सिर्फ सुनने भर के लिए नहीं, बल्कि हर भावनात्मक लम्हे और युद्ध के जोश को जिंदा करने के लिए रचा गया है। इसकी धुनें कभी गहरे जज्बात जगाती हैं, तो कभी युद्ध के मैदान में लड़ने का जोश भर देती हैं। यह बैकग्राउंड स्कोर नहीं, बल्कि फिल्म की आत्मा का एक अहम हिस्सा बन जाता है, जो हर दृश्य को और भी प्रभावशाली बना देता है।
अब बात करते हैं उस हिस्से की, जो आपको अंदर तक झकझोर कर रख देगा। फिल्म जिस क्षण की ओर बढ़ती है, वह क्रूरता की पराकाष्ठा है—एक ऐसा मंजर जो आपकी रूह तक को हिला देगा। औरंगज़ेब द्वारा संभाजी महाराज पर ढाए गए अत्याचार इतने अमानवीय हैं कि देखने भर से दिल कांप उठे। लेकिन यह सिर्फ शारीरिक पीड़ा की कहानी नहीं है, बल्कि विश्वासघात और अपनों को खोने का वह दर्द है, जो किसी भी योद्धा की आत्मा को तोड़ सकता है। यह दृश्य बेहद दर्दनाक, गहराई से भावनात्मक और लंबे समय तक याद रहने वाला है।
‘छावा’ एक ऐसी फिल्म है, जो क्रूर युद्ध, गहरी भावनाओं और ऐतिहासिक भव्यता के बीच बेहतरीन संतुलन बनाती है। दमदार कलाकारों, शानदार निर्देशन और सांसें थाम देने वाले एक्शन सीक्वेंस के साथ यह फिल्म उन सभी के लिए ज़रूरी है, जो शौर्य और बलिदान की गाथाओं को पसंद करते हैं। यह सिर्फ इतिहास को दिखाने की कोशिश नहीं करती, बल्कि उन योद्धाओं की याद दिलाती है, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। फिल्म सिर्फ एक गाथा नहीं, बल्कि स्वराज की अमर भावना को सलाम करने का जरिया है।
निर्देशन
मैडॉक फिल्म्स के बैनर तले दिनेश विजन द्वारा निर्मित ‘छावा’ एक बार फिर यह साबित करता है कि वह मनोरंजक और बेहतरीन सिनेमा बनाने में माहिर हैं। ऐतिहासिक भव्यता और आधुनिक कहानी कहने की कला को शानदार तरीके से मिलाकर, इस फिल्म को इतना दमदार बनाया गया है कि हर फ्रेम न सिर्फ देखने में भव्य लगे, बल्कि दिल को भी छू जाए। यह फिल्म इतिहास की गहराई, भव्य सिनेमैटोग्राफी और भावनात्मक गहराई का ऐसा मेल है, जो बड़े पर्दे पर देखने का एक अनूठा अनुभव देता है। दिनेश विजन की यह पेशकश एक बार फिर यह दिखाती है कि वह न सिर्फ कहानी चुनने में माहिर हैं, बल्कि उसे पर्दे पर जीवंत करने में भी।