19 अक्टूबर को NMACC अपनी परफॉर्मेंस से चार चांद लगाएंगे पुरान चंद वडाली और लखविंदर वडाली

Updated: 17 Oct, 2024 05:14 PM

wadali brothers to perform at nmacc

मुंबई के NMACC में मशहूर सूफी गायक उस्ताद पुराण चंद वडाली और लखविंदर वडाली अपने खास अंदाज में लाइव परफॉर्म करेंगे।

नई दिल्ली। सूफी म्यूजिक की रूह को महसूस करने का मौका मुंबई के NMACC (नीता मुकेश अंबानी कल्चरल सेंटर) में 19 अक्टूबर को मिलेगा। इस दिन मशहूर सूफी गायक उस्ताद पुराण चंद वडाली और लखविंदर वडाली अपने खास अंदाज में लाइव परफॉर्म करेंगे। अपने हिट गानों के साथ वे दर्शकों की फरमाइशों को भी पूरा करेंगे। परफॉर्मेंस से पहले लखविंदर वडाली ने एक खास बातचीत में बताया कि कैसे उन्होंने सूफी को नई पीढ़ी से जोड़ने के लिए रिक्रिएशन किए और संगीत की इस पवित्र परंपरा को बनाए रखा।

1. NMACC में जो आपका प्रोग्राम होने वाला है, क्या कुछ है उसमें ख़ास?
पहले तो हम सूफियाना कलाम से ही शुरुआत करेंगे लेकिन बाद में देखेंगे कि क्या-क्या फरमाइशें हैं। उसी हिसाब से पूरा प्रोग्राम होगा। जितने भी हमारे हिट गाने हैं, वो सारे पेश करेंगे।

2. किस तरह की और कौन-कौन सी मेलोडी सुनने को मिलेंगी?
जितने भी हिट नंबर्स हैं वो तो सुनाएंगे ही। साथ ही कुछ नई चीज़ें भी हैं जो पहले नहीं गाईं, अगर टाइम मिला तो वो भी जरूर पेश करेंगे।

3. आज के दौर में अलग-अलग म्यूजिक जॉनर के बीच भी सूफी म्यूजिक के लिए प्यार बरकरार है। लाइव परफॉर्म करते वक्त कैसा लगता है?
बहुत अच्छा लगता है। बचपन में जब पापा जी और चाचा जी के साथ जाता था, तब भी देखता था कि लोग सूफी को बड़ी शिद्दत से सुनते थे। ये म्यूजिक सॉलिड, खालस और पुख्ता है, इसलिए इसका प्यार कभी कम नहीं हुआ।

4. यंग जेनरेशन को सूफी से जोड़ने के लिए आपने रिक्रिएशन किए हैं। इसमें कितनी चुनौतियां आईं?
जो 30-60 साल की उम्र वाले हैं, वो तो आसानी से सूफी को पसंद करते हैं, लेकिन यंग जेनरेशन को साथ लाने के लिए हमें मॉडर्न बीट्स के साथ कुछ प्रयोग करने पड़े। उदाहरण के लिए, हमारी रिक्रिएटेड धुन ‘तू माने या ना माने दिलदारा’ पर काफी रील्स बनीं। इसके अलावा, बादशाह का गाना ‘तेरा इश्क नचौंदा वे सजना’ भी काफी चला। ये प्रयोग यूथ के लिए किए ताकि उन्हें भी सूफी से जोड़ा जा सके और ये कोशिश काफी हद तक सफल रही है।

5. जब आप लाइव परफॉर्म करते हैं, तो सबसे ज़्यादा कौन से गानों की फरमाइश आती है?
‘तू माने या ना माने,’ ‘चरखा,’ ‘दमा दम मस्त कलंदर,’ और ‘रंगरेज’ जैसे गानों की डिमांड सबसे ज्यादा होती है। इनके बीच हम बाबा बुल्ले शाह, बाबा शाह हुसैन और बाबा फरीद साहिब जैसे सूफी संतों की रचनाएं भी पेश करते हैं, ताकि लोग उनकी बाणी और शायरी से जुड़ सकें।

6. पुराण चंद वडाली जी के साथ परफॉर्म करते वक्त अगर कोई गलती हो जाए, तो क्या वो एक उस्ताद की तरह समझाते हैं या पिता की तरह?
वो एक उस्ताद की तरह समझाते हैं। पहले तो डांट भी पड़ती थी, क्योंकि गलती हो ही जाती है। कभी-कभी गाते-गाते ही सुधार कर देते थे।

7. क्या कभी महसूस हुआ कि जिस घराने से आप हैं, उसकी शान बनाए रखना बहुत बड़ा प्रेशर है?
शुरुआत में बहुत प्रेशर था। यंग एज में मैं दो चीज़ों के बीच कंफ्यूज था – एक तरफ सूफी संगीत और दूसरी तरफ क्रिकेट। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि किस दिशा में जाऊं। लोग भी कंफ्यूज थे और उन्हें लगा कि मैं इस सफर को आगे नहीं ले जा पाऊंगा। लेकिन मैंने मेहनत से जवाब दिया, और अब लोग मेरे सोलो शो को भी पसंद करते हैं और बार-बार बुलाते हैं।

8. रियाज को आप कितनी अहमियत देते हैं?
रियाज बेहद जरूरी है। सुर ऐसे होते हैं जैसे रेत की दीवार – ये रोज़ गिरते हैं और रोज़ बनते हैं। इसलिए इन्हें हर दिन बनाना पड़ता है।

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